भरी दुपहरी डाकिया बाबू , चिठ्ठी लेकर आया ।
अपनी चिठ्ठी ले लो बाबू , दरवाजे पर चिल्लाया ।
कभी सुख तो कभी दुख का चिठ्ठी ले कर आता,।
गर्मी सर्दी बरसातों में अपना फर्ज निभाता ।
दूर दूर की चिठ्ठी को वह, अलग अलग है करता ।
सील मुहर लगा लगाकर, थैले में वह भरता ।
जब तक बांट न ले वह चिठ्ठी , कभी आराम न करता।
इस गली से उस गली तक, दिन भर घूमते रहता।
रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम ( छ ग ) Email --priyadewangan1997@gmail.com
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो
जवाब देंहटाएं