अ-आ ,इ-ई,उ-ऊ पढ़कर ,
हुए साक्षर चूहेराम |
कागज कलम किताबें लेकर,
किया शुरू लिखने का काम |
दिन भर कड़ा परिश्रम करते ,
पैसे खूब कमाते |
शाम ढ़ले ही किसी बैंक में ,
|जाकर जमा कराते |
उन्हें बैंक से एक पास बुक ,
और चैक बुक आई |
बड़े जतन से, बहुत सुरक्षित ,
बिल में ही रखवाई |
दिवस दूसरे सुबह उठे तो ,
देखा खेल निराला |
हाय! चेक बुक और पास बुक
को खुद ने खा डाला |
माथा रहे पीटते दिन भर ,
अपना चूहा भाई |
अपनी ही आदत खुद को ही ,
हो जाती दुखदाई |
प्रभु दयाल श्रीवास्तव
छिंदवाड़ा
मध्य प्रदेश
बहुत बढ़िया कविता श्रीवास्तव जी मजा आ गया
जवाब देंहटाएंबधाई हो