बहुत समय पहले की बात हैं|झींगा और केकड़ आपस में बहुत अच्छे मित्र थे|वे आपस में खूब हंसी मजाक करते|और एक दूसरे का भी मजाक बनाते पर फिर भी आपस में वे बहुत अच्छे मित्र थे|वे एक दूसरे के बिना कुछ न करते|
एक बार ठंड में नदी मे पानी बहुत कम था|केकड़े को ठंड लग रही थी|इसलिए उसने नदी किनारे धूप सेंकने की सोची|अचानक झींगा आया और उछल-उछल कर केकड़े को चिढाने लगा|
"ओ केकड़े, तुम क्या मेरी तरह उछल सकते हो?मैं कितना चुस्त और तेज हूँ|'
केकड़े ने उत्तर दिया,"हाँ मैं जानता हूँ कि तुम उछल सकते हो|पर क्या तुम मेरी तरह शांत पड़े रह सकते हो?क्या तुम मेरी तरह पानी के बाहर आ धूप का आंनद ले सकते हो?आओ, मेरे दोस्त मेरी तरह तुम भी आंनद लो|"
इस तरस झींगा केकड़े को अक्सर परेशान करने लगा|"देखो मेरी तरफ देखो|क्या तुम वो सब कर सकते हो जो मैं करता हूँ?"झींगा उसके आराम में खलल पहुँचाता|
केकड़ा अक्सर एक गीत गाता,"मेरी ओर देखो मेरे दोस्त|हम लोगों के लिये बने हैं|जो आकृ हमें पड़ लेगे और खा जायेंगे|इसलिये इस तरह की बहस की जरूरत नही|जब तक जीवित हो खुश हो|"
केकडा कह ही रहा था कि कुछ गांव वाले आये|जो बांस की टोकरियाँ पकडे थे|नदी के कम पानी के कारण उन्होंने सारे केकड़े और झींगा पकड़ लिये|ओर गाँव लौट उनका भोजन किया|
इस प्रकार केकड़े की बात सच साबित हुई|कि जब तक जीवन हैं सुखपूर्वकजीयो
अंजू निगम
सुंदर कहानी...बधाई.. अंजू जी को..।
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