गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

सिया राम शर्मा की बाल कथा : भालू की आफत 





                  

     
     नंदन वन में एक भालू 'भूरा 'बहुत घंमड में इतराता फिरता । जब देखो तब वो किसी न किसी को तंग करता । कभी ' गप्पू ' खरगोश की माँद  में हाथ डाल देता । कभी  ' :चिनिया ' बुलबुल का और कभी ,'तीखी' तीतर का पीछा करता । एक दिन तो हद हो गयी जब उसने 'गौरी 'गौरया के घोंसले को अपने पंजे से तहस-नहस कर डाला । गौरी चीं चीं करती उसके सिर पर मंडराती रही पर उस बदमाश पर कुछ असर नहीं हुआ ।

   नंदन वन के सभी पक्षियों और दूसरे छोटे प्राणियों ने   आपस में इस पर विचार करने को  मीटिंग बुलाई ।सब सोच म डूबे पर कोई हल समझ में नहीं आ रहा था। गप्पू खरगोश ने कहा कि में चुपचाप उसकी पूंछ को काट लूंगा ।तीतर ने कहा में उसके सोते समय कान में कंकर डाल दुंगा ।सब अपनी अपनी योजना बता रहे थे । इतनी देर में 'सयानी 'लोमडी 'उधर से गुजरी । वह भीड. देखकर रुक गयी । गप्पु खुश होते हुए लोमडी. को देख कर बोला -' भाईयो ,बहनों !अब डरने की कोई बात नहीं ।सयानी ताई जरुर कोई तरकीब सुझा देंगी ।' सयानी ने कहा क्या बात है ? सब इतने घबराये हुए क्यों हो ?' गप्पू ने भूरे भालू की शैतानियों का खुलासा करते हुए सारी बात बतायी । सयानी ने सोचते हुए कहा कि एक उपाए है। 
    सयानी ताई के कहे अनुसार  गप्पू खरगोश भूरे भालू की मांद के पास पहूंच कर तीतर के साथ जोर जोर से बातें करने लगा कि आज तो निचली तलैया किनारे मंदिर के पीपल पर मीठा मीठा शहद खाकर जीभ अभी तक चटकारे ले रही है,कितना मजा आया ।" यह सब सुनकर भालू दादा भी उछल पडे. ।अब क्या था ,लपक लिए पीपल के पेड. की तरफ । बहाँ पहुंचते ही उनकी जीभ लपलपाने लगी ।भूरे ने जैसे ही हाथ छत्ते की ओर उठाया झट से एक मधुमक्खी ने उसकी नाक पर तीखा प्रहार किया ।दर्द से तिलमिलाते हुए उसने अपने तीखे पंजो से जैसे ही  छत्ते को तोड.ने के लिए हाथ आगे किया उसी समय मधुमक्खियों के झुंड के झुंड ने एक साथ उसपर हमला बोल दिया । अब क्या था ,उसका सारा शरीर जगह जगह से सूज गया ।जान बचाना मुश्किल हो गया ।किसी तरह तलाब में घुस कर उसने अपने को बचाने की कोशिश की ।बहाँ भी मधुमक्खियों ने पीछा नहीं छोडा ,उपर उपर मंडराती रहीं । दूसरों को परेशान करने की उसकी बुरी  आदत ने उसे अच्छी सीख दे दी थी कि छोटा जानकर किसी को नहीं सताना चाहिए ।



                             सिया  राम शर्मा 

मंजू श्रीवास्तव की रचना। बन्दर मामा पहन पजामा


बन्दर मामा पहन पाजामा,
दावत खाने आये,
ढीला कुरता, लम्बा मोजा
पहन बहुत इतराये।

पीछे पीछे उसके देखो
 बन्दरिया चली आई,
रंग बिरंगा लहंगा चोली,
पहन बहुत इठलाई।

चूहे राजा सूट पहनकर,
मानो बन गये जेन्टलमेन,
चुहिया रानी फ्रॉक पहनकर,
मानो बन गई अंग्रेजी मेम।

बिल्ली मौसी सजधज कर,
महरानी जैसी बनकर आई
म्याऊँ म्याऊँ करती करती,
मटक मटक कर चली आई।

आखिर मे भालू चाचा ने सबको,
नाच नाच कर खूब हँसाया।
सबने मिलकर दावत खाई,
और दावत का आनन्द उठाया।



                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

डाक्टर अनुपमा गुप्ता की रचना : छठ में पटना जाएंगे! 


माँ ! दिल्ली में मनी दिवाली 
छठ में पटना जाएंगे 
दादी ने जो रक्खे ठेकुए 
उनको जी भर खाएंगे। 

दादी के संग करें सफ़ाई 
पिंकी से कुछ लड़ें लड़ाई 
चाचा की प्यारी बेटी वह 
रूठी अगर मनाएंगे! 

खरना वाली खीर उड़ा के 
दादी संग फ़ल-फूल सजा के 
ढलते सूरज की पूजा को 
हम भी संग में जाएंगे! 

दादी पूजा पाठ करेंगी 
लगता 
दादी जब सोने को जाएं 
उनके पैर दबाएंगे! 

सुबह नदी के पास नज़ारा 
कितना होगा प्यारा-प्यारा 
माँ 
गंगा वहाँ नहाएंगे! 

सूरज को जब अरघ चढ़ेगा 
पुण्य हमारा खूब बढ़ेगा 
दादी जी जो पुण्य कमाएं 
हम आधा ले आएंगे! 

दिल्ली वाली गाड़ी ले कर 
यादें प्यारी-प्यारी ले कर 
ढेर पठौनी दादी से ले 
हम दिल्ली आ जाएंगे।




                         डॉक्टर  अनुनमा गुप्ता 

सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

डॉक्टर पशुपति नाथ पाण्डेय की रचना : हिन्दी दिवस









 14 सितंबर  को हम हर वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं ।    इस विषय में  विस्तार से जानकारी दे रहे हैं डाक्टर पशुपति नाथ पाण्डेय जी


प्रत्येक  वर्ष  14 सितम्बर, हिन्दी दिवस हम बड़े  धूमधाम से  मनाते हैं  पिछले माह डॉ  पशुपतिनाथ  पान्डे जी इस विषय  पर  एक  रचना  प्राप्त  हुई  थी  जिसे कतिपय  कारणों  से हम प्रकाशित  नहीं  कर  पाये थे जिसे हम बच्चों के लिए  प्रकाशित  कर  रहे  हैं 


पूरे भारत में हिन्दी दिवस को बहुत ही उत्साह के साथ 14 सितम्बर को मनाया जाता है। यह एक एतिहासिक दिन होता है जिस दिन हम अपने हिन्दी भाषा को सम्मान देते हुए मनाते हैं।


यह इस दिन इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी लिपि यानि की हिन्दी भाषा को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत किया गया था।


हिन्दी दिवस पुरे भारत में हिन्दी भाषा के सम्मान और महत्व को समझने के लिए मनाया जाता हैं। हिन्दी भाषा का एक बहुत ही गहरा इतिहास है जो इंडो-आर्यन शाखा और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से जुदा हुआ है।


भारत की आज़ादी के बाद भारत सरकार ने हिन्दी भाषा को और भी उन्नत बनाने के लिए जोर दिया और इसमें कुछ सुधार और शब्दाबली को बेहतर बनाया गया। भारत के साथ-साथ देवनागरी भाषा अन्य कई देशों में बोली जाती है जैसे – मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिडाड एंड टोबैगो और नेपाल


हिन्दी भाषा विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।


स्वाधीनता के बाद भारत के संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी भाषा को अनुच्छेद 343 के अंतर्गत भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में पहले स्वीकार किया गया।


हिन्दी दिवस सभी स्कूल, कॉलेजों और दफ्तरों में मनाया जाता है। इस दिन लगभग सभी शैक्षिक संस्थानों में कई प्रकार के प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता हैं जिनमें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी भाग लेते हैं।


इस दिन हिन्दी कविताएँ, कहानियाँ और शब्दावली के ऊपर प्रतियोगिताएं आयोजन किये जाते हैं। भारतब में हिन्दी भाषा लगभग सभी राज्यों में बोली जाती है परन्तु ज्यादातर उत्तर भारत में हिन्दी भाषा का ज्यादा बोल-चाल है।


इस दिन भारत के राष्ट्रपति हिन्दी साहित्य से जुड़े कई लोगो को अवार्ड प्रदान करते हैं और उनको सम्मानित करते हैं। हिन्दी दिवस के अवसर पर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार, और राजभाषा गौरव पुरस्कार जैसे पुरस्कार दिए जाते हैं।


भारत जैसे विशाल देश में अनेक जाती, धर्म, भाषा के लोग रहते हैं। इस पुरे देश के लोगों का रिश्ता किसी ना किसी प्रकार से एक राज्य से दुसरे राज्य के साथ जुड़ा होता है। व्यापार, सामाजिक, सांस्कृतिक चीजों के कारण सभी लोगों में लेन-देन चलता ही रहता है।


अगर एक राज्य दूसरे राज्य से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखेगा तो इसमें राज्यों की प्रगति में असर पड़ता है। इसलिए सभी राज्य अन्य सभी राज्यों से किसी ना किसी कारण जुड़ें हैं।


ऐसे में उन सभी के बीच सही प्रकार से व्यवहारिकता को कायम रखने के लिए एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सबकी समझ आये और आसानी हो। भारत में हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो एक ओर देश में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली, पढ़ी, और समझी जाने वाली भाषा है और अन्य भाषाओं की तुलना में आसान भी है।


भारत में कई प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं – असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, अंग्रेजी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मराठी, मणिपुरी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू। यह भाषाएँ अपने-अपने प्रदेशों के लिए मुख्य होती हैं और राज्य का अधिकांश कार्य इन्हीं भाषाओँ के आधार पर होता है।


किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा चुनने से पहले उसके कुछ विशेष गुण होने चाहिए। उस भाषा को देश के ज्यादातर भागों में लिखा पढ़ा जाता हो या उन्हें समझ हो। उस भाषा की शब्दाबली इतनी समर्थ हो की उससे सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञानं के विषयों को अभिव्यक्त किया जा सके।


साथ ही ऐसी भाषा का के साहित्य का एक विशाल भंडार होना चाहिए तथा दर्शन ज्योतिष विज्ञानं, साहित्य और इतिहास के विषय में सभी पुस्तकें होनी चाहिए। भाषा का सुन्दर और सरल होना और भी आवश्यक है।


आज के भारत में हिन्दी ही एक मात्र भाषा है जिसमें यह सब गुण पाए गए हैं इसीलिए हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में चुना गया है। आज हिन्दी भाषा को पुरे विश्व भर में सम्मान के नज़रों से देखा जाता है। यहाँ तक की टेक्नोलॉजी के ज़माने में आज विश्व की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक भी हिन्दी भाषा को बढ़ावा दे रहे।


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने राष्ट्र संघ में अपना प्रथम वक्तव्य हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया। भारत के केंद्र में हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी भाषा का साहित्य पौराणिक और संपन्न है।


आज के दिन भी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें सभी प्रकार से राष्ट्रीय भाषा बनने में पूर्ण समर्थ है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए और साथ ही इससे और आगे ले कर जाना चाहिए।



डा. पशुपति पाण्डेय

गोमती नगर, लखनऊ ।

मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा शक्ति पुंज की दीवाली




गौरव एक प्रतिभा शाली छात्र था।हमेशा कक्षा मे अव्वल आता था । वैसा ही शांत और सरल स्वभाव था। शालीन स्वभाव के कारण ही वह छोटे बड़े सबका चहेता बन चुका था।
  दिवाली का पर्व नज़दीक ही था।उसने सोचा कि इस बार अपनी सोसाइटी शक्ति कुँज में क्यूँ न दिवाली का जश्न एक नये अन्दाज़ मे मनाया जाय। बहुत मजा आयेगा।
     उसने अपने सब साथियों को बुलाकर इस पर विचार करने को कहा।
      दूसरे दिन ही मीटिंग बुलाई गई।
सभी साथियों ने योजना पर अपनी सहमति प्रकट की।
     योजना थी कि
    १) दीवाली पर पटाखों का पूर्ण वहिष्कार ।
    २) मिटटी के दीये का प्रयोग
     ३) सजावट के लिये रंग बिरंगे फूलों का इस्तेमाल।
पटाखों मे जो पैसे खर्च होते, अब उन पैसों से गरीबों के लिये कपड़े,मिठाई  लाकर बांटी जायगी। जिससे हम उनके घर मे खुशी व चेहरे पर मुस्कान ला सकें।
दिवाली पूजन के एक दिन पहले रंगारंग कार्यक्रम होगा जिसमे बच्चे अपनी क्षमतानुसार कविता, चुटकुले आदि प्रस्तुत रहेंगे।
   कार्यक्रम का अध्यक्ष गौरव को बनाया गया।
   योजना सबको बहुत पसन्द आईं।
दिवाली मे अब दो ही दिन बाकी थे।
जोरों से तैयारी शुरू हो गई। बच्चों मे बहुत उत्साह था।
दीपावली का जश्न योजनानुसार बहुत धूमधाम से मनाया गया।
गणेश लक्ष्मी पूजन के पश्चात  सभी लोग क्लब मे एकत्रित हुए। आपस मे मिठाईयाँ  एक दूसरे को खिलाई।  एक दूसरे के गले मिलकर शुभ कामनायें दीं।बच्चों ने बड़ों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया।
शक्ति कुँज की पटाखे रहित दीपावली की सभी ने खूब सराहना की। आस पास की सोसाइटी वालों ने भी संकल्प लिया कि अगली बार से  हमलोग भी पटाखें रहित दीवाली मनायेंगे।
गौरव को  उसके बेहतरीन कार्यों के लिये सोसाइटी की तरफ से सुन्दर उपहार से सम्मानित किया गया।
कहानी का सार है कि पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने के लिये दिवाली मे पटाखों का पूर्ण वहिष्कार करें। ।


                        मंजू श्रीवास्तव 
                        हरिद्वार

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना : एक एक दीप जलायेंगे


चलो मनायें खुशियाँ साथियों,  मिलकर दीप जलायेगे ।
हर घर में उजियारा लाकर , खुशियाँ साथ मनायेंगे ।
पढ़ लिखकर सब आगे बढे, अज्ञानता को मिटायेंगे ।
हर हाथ को काम मिले , देश को आगे बढायेंगे ।

चमक उठे सबका किस्मत, ऐसे दीप जलायेगे ।
दूर करें हम अंधकार को , सबको राह दिखायेंगे ।
भेद भाव को दूर करेंगे, मन में कपट न लायेंगे ।
जब तक दूर न हो जाये अंधेरा, एक एक दीप जलायेगे ।

                        प्रिया देवांगन "प्रियू"
                        पंडरिया  (कवर्धा )
                       छत्तीसगढ़ 

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : चीकू को सड़क पार करना आता है




चीकू को सड़क पार करना आता है


नानाजी के साथ चीकू भैया बाजार गए थे।   मां ने शायद सेब मंगाए थे।   चीकू भैया रोड पर हाथ  छुड़ा कर भागने लगे।    नाना जी ने उनका हाथ जोर  से पकड़ लिया और सड़क पर जहां काली सफ़ेद लकीरें बनी थी वहाँ से चीकू का हाथ  पकडे बड़ी सावधानी से सड़क पार किया।
चीकू भैया ने बाज़ार में घोडा गाड़ी देखी। घोडा गाड़ी को खींच रहा था  गाडी में कई व्यक्ति बैठे थे तथा बहुत सामान लादा भी हुआ था चीकू भैया ने नाना जी से पूछा यह क्या है नानाजी ने बताया कि यह एक  घोडा गाड़ी है इसको घोडा खींच रहा है घोडा बड़ा ताकत वाला प्राणी है चीकू भैया ने कहा  इस पर तो बहुत सामान भी लदा है और बहुत सारे लोग बैठे भी है फिर चीकू ने पूछा नानाजी इसे इतनी ताकत कहाँ से मिलती है नाना जी ने कहा कि  यह तुम्हारी तरह नहीं है दूध और  खाना देख कर भाग खड़ा हो यह खूब खाता है तभी वह  खूब काम भी कर पाता है नानाजी यह क्या खाता है चीकू भैया ने पूछा! नाना जी ने बतलाया कि यह घास खाता है चीकू भैया ने धीरे से कहा, तभी तो!  अगर दूध  पीना पड़ता तो पता चलता।

नाना जी और चीकू भैया  सेब लेकर घर चले आये घर आने पर चीकू ने नानू से पूछा कि  आप रोड पर  मेरा हाथ क्यों पकडे रहे अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ. अकेले चल सकता हूँ ! हाँ बेशक बड़े हो गए हो परन्तु रोड पार करने के मामले में अभी तुम बहुत छोटे हो, रोड पार करने  में  बहुत बातों का ध्यान रखना पड़ता है अच्छा यह बतलाओ कि रोड पर कई  रंगो कि लाइटे लगी है जो गाडी को आने जाने का सिग्नल देती हैं उनके बारे में तुम क्या जानते हो ?
चीकू को पता था।  उनकी मम्मी ने बता रखा था कि ऊपर रेड लाइट होती है जिस के जलने से गाड़ियां रुक जाती है बीच में येलो लाइट, वेट करने के लिए  तथा नीचे ग्रीन लाइट होती है जिसे देख कर गाड़ियां चल पड़ती है।   आशी बोली नानाजी आपको एक बात बताऊँ कल रेड लाइट पर खड़े पुलिस अंकल ने  पापा से रुपये लिए थे। चीकू बोला हाँ नानू, पापा की गाडी रेड लाइट से थोडा आगे गाडी निकल गयी तो  पुलिस अंकल ने पापा को फाइन किया बड़े गंदे हैं पुलिस अंकल ! ठीक है ठीक है अच्छा बच्चों, यह बताओ, अगर गाडी थोडा आगे बढ़ जाती और दूसरी तरफ से  आती गाडी से भिड़ जाती तो क्या एक्सीडेंट नहीं हो जाता । गाडी टूटती और एक आध लोगो को चोट भी लग सकती थी ।  इसलिए पुलिस अंकल ने फाइन करके अपनी डियूटी भी की  और पापा को आगे से सावधान भी किया।
अच्छा बताओ, छोटे  बच्चो  को सड़क पर किस तरह चलना चाहिये । चीकू भैया ने कहा कि हम बच्चों को बड़ों के साथ ही सड़क पर जाना चाहिए और रोड  ज़ेबरा क्रोस्सिंग पर या सबवे पर ही पार करनी चाहिए जहां ओवरब्रिज हैं वहाँ उनका इस्तेमाल करना चाहिए । नाना जी ने कहा, शाबाश बच्चों, तुम्हे तो सब मालूम है
अच्छा तो यह भी मालूम होना चाहिए कि सड़क के एकदम बाएं चलते हैं और साईकिल रिक्शा की घंटी और कार मोटर के हॉर्न कि आवाज़  का ध्यान  रखते है!  हैं ना बच्चों ?



                                   शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव के संकलित चुटकुले





राजू — नमन मै कभी झूट नही बोलता हूँ.
नमन — अभी तुम कल ही रामू के आने पर कह रहे थे
कि उससे कह दो कि तुम कहीं बाहर गये हो
राजू — मै झूट नहीं बोलता हूँ लेकिन तुम्हे बोलने की
मनाही नहीं है.

2 लड़का दुकानदार से- यें बन्दर की फोटो कितने की है?
दुकानदार चुप
लड़का फिर से- ये बन्दर की फोटो कितने की है?
दुकानदार फिर चुप
लड़का- अरे सुन नही रहे हो , बताओ ना यह बन्दर वाली फोटो कितने की है?
दुकानदार-ये फोटो नहीं आईना है.

3 रमेश अपने दार्शनिक मित्र से अरे इस फटी मच्छरदानी मे पाइप क्यो लगा रहे हो.
मित्र ताकि एक सिरे से मच्छर आयें तो दूसरी तरफ निकल जाएं.
20151024_182345
4 एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: “भारतीय स्त्रियाँ हाथ क्यों नहीं मिलाती हैं .
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया: “क्या आपके देश में कोई साधारण व्यक्ति आपकी महारानी से हाथ मिला सकता है???”
अंग्रेज: “नहीं”
स्वामी विवेकानंद: “हमारे देश में हर स्त्री एक महारानी होती है।”

सपना मांगलिक का बालगीत : राकेट



























पेन्सिल को रॉकेट बनाकर

जरा देखूं बैठ,उड़ेगा क्या?

कान खींचकर टीचर बोली

गोलू नहीं सुधरेगा क्या?




















सपना  मांगलिक

प्रभु दयाल श्रीवास्तव का बाल गीत : प्यारी दादी





प्यारी दादी
 प्यारी दादी अम्मा मुझको,
 चंदा जरा दिखादे।
 चमक रहे हैं नभ् में तारे,
 उनसे बात करा दे।


 मोबाईल पर पूरी घंटी,
 दे देकर मैं हारी।
 पर तारों ने कभी आज तक,
 बात न सुनी हमारी।

 चन्दा को मामा कहने का,
 अर्थ समझ न आया।
 जो माँ से राखी बंधवाने,
नहीं आज तक आया।



                  प्रभु दयाल श्रीवास्तव
                   छिन्दवाड़ा

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : भाई-भाई का प्यार





रमेश और उमेश दो भाई आपस मे बहुत प्यार से रहते थे। रमेश बड़ा और उमेश छोटा भाई था। 
उमेश बचपन से ही पोलियो की वजह से चलने फिरने मे असमर्थ हो गया था। दोनों साथ साथ स्कूल जाते थे।
     बहुत आराम से दिन बीत रहे थे।
उमेश थोड़ा कमजोर था इसलिये मम्मी पापा उसपर ज्यादा ध्यान देते  थे ।  उसकी जरूरतें तुरत पूरी की जाती थी पर रमेश की बाद में। इससे रमेश के मन मे थोड़ी ईर्ष्या  होने लगती थी। हालांकि रमेश अपने भाई उमेश को गोद मे उठाकर स्कूल ले जाता था। इसलिये उमेश के मन मे अपने भाई के लिये बहुत इज्जत और प्यार था।
     एक दिन रमेश ने पापा से कहा "पापा मेरे जूते फट गये हैं। दूसरे नये जूते ला दीजिये" । पापा ने कहा" बेटा अभी इसीसे काम चलाओ। जब पैसे होंगे  तब नये जूते ला दूँगा"।
     रमेश का मन उदास हो गया। उसने मन मे सोचा कि उमेश की तो हर इच्छा तुरत पूरी होती है और मेरे लिये पापा के पास पैसे नहीं हैं। रमेश के मन मे उमेश के प्रति थोड़ी ईर्ष्या होने लगी। वह कभी कभी उमेश को बुरी तरह डांट भी देता था।
       हर महीने दोनों भाईयों को जेब खर्च के लिये पैसे मिलते थे। दोनो ही उसे जमा करते थे।
       जब महीना बीतने के बाद भी जूते नहीं आये तो रमेश ने अपने जमा किये पैसों से जूता लेने की सोची। पर जूते की कीमत के हिसाब से उसके पास पैसे कम थे। रमेश बहुत निराश हो गया। उसकी हालत उमेश भी देख रहा था। 
     उमेश के मन मे एक विचार आया कि क्यों न मैं अपने जमा किये पैसे भैया को दे दूँ। उसने रमेश को पैसे देते हुए कहा " भैया आप ये पैसे ले लो। हम दोनों के पैसों से आपके जूते अवश्य आ जायेंगे।" रमेश ने कहा तुम्हें भी तो जूते चाहिये। उमेश बोला मुझे अभी जूतों की उतनी जरूरत नहीं जितनी आपको है।
आप तो पैदल जाते हो। मैं तो आपके साथ जाता हूँ।
      यह सुनकर रमेश का मन ग्लानि से भर उठा। मन मे सोचा मेरा भाई मेरे लिये कितना सोचता है, कितना प्यार करता है। मैने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार  किया। धक्कार है मुझे।
   रमेश की आँखों मे आँसू आ गये। उसने उमेश को गले लगा लिया। मन की ग्लानि आँसू बनकर बह निकली।
       
     

                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

    

महेंद्र देवांगन माटी की रचना : एक दीपक बन जाऐं








करो कुछ ऐसा काम साथियों,घर घर खुशियां लायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें |
चारों तरफ है आज अंधेरा,किसी को कुछ न सूझे।
पथराई है सबकी आंखें,आशा की किरण बुझे ।

कर दें दूर अंधेरा अब,नया जोश हम लायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें ।
शोषित पीड़ित दलित जनों का,हम सेवक बन जायें ।
सभी हैं अपने बंधु बांधव,इसको मार्ग दिखायें ।

कोई रहे न भूखा जग में,मिल बांटकर खायें ।
भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें ।
शिक्षा का संदेश लेकर,घर घर पर हम जायें ।
अशिक्षा अज्ञानता के, तम को दूर भगायें ।

नही उपेक्षित कोई जन अब,अपना लक्ष्य बनायें ।
भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें ।
ऊंच नीच और जाति पांति के,भेद को दूर भगायें ।
अमावश की कालरात्रि में,मिलकर दीप जलायें ।

त्योहारों की खुशियां हम सब,मिलकर साथ मनायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें ||










महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला-कवर्धा (छ.ग)
मो. 8602407353