दादाजी के जन्मदिन पर
सोचा था कार्ड बनाऊँगी
जैसे कार्ड सबको देती हँू
दादू को भी देके दिखाऊँगी
सोच रही थी कुछ अलग ढंग से
अपना प्यार जताऊँगी
जिसे देखकर दादू खुश हों
ऐसा कुछ दिखलाऊँगी
इसी सोच की उधेड़ बुन में
प्यारा समय याद आ गया
दादू ने कितना लाड़ किया
सोच के मन इतरा गया
दादू के कंधों पर बैठकर मैं
मेला देखने जाती थी
रोज स्कूल की छुट्ठी पर मैं
आइसक्रीम लेकर खाती थी
ये सब सोचकर समझ में आया
मैं वो वक्त दोबारा नहीं ला सकती
जो दादू जितना प्यार दिखाएगा
मैं ऐसा कार्ड नहीं बना सकती ।
अनवी पाॅल
कक्षा - चार सी
एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
Bahut pyari rachna hai.
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