रविवार, 6 दिसंबर 2020

नन्ही चुनमुन और यूनीकार्न :शरद कुमार श्रीवास्तव


 




रात हो गई  थी नन्ही चुनमुन  अपने खिलौनो के साथ  बिस्तर  मे सोने का प्रयास  कर  रही थी वह सोच  रही थी उसका यूनीकार्न  अगर घोड़ा होता तो वह उसकी पीठ पर सवार होकर सपनो के देश  की सैर कर  आती ।  अचानक यूनीकार्न  सजा सजाया घोड़ा बनकर तैयार  हो गया और चुनमुन से बोला चलिए  बेबी आप को सैर कराता हूँ।   नन्ही चुनमुन  तुरन्त  उसकी पीठ पर जा बैठी ।  वह घोड़ा  हवा से बाते करता हुआ कभी बादलो  के ऊपर तो कभी नीचे उडने लगा ।   चुनमुन  को बहुत मजा आ रहा था  ।  अब वे चाकलेट के बगीचे मे थे  ।  यह बगीचा  असल मे एक जादूगर  का था ।   चुनमुन  ने  चाकलेट  के पेड से एक चाकलेट  तोड़नी चाही तब वहाँ चौकीदार  ने पकड़  लिया ।  नन्ही चुनमुन  क्या करती और  घोड़ा  भी क्या  करता चाकलेट  तो बेबी ने तोड़ी थी तो पकड़ी भी वही जायेगी ।

यूनीकार्न  चुपचाप  वहाँ से गायब हो गया वह चुनमुन की मम्मी को फोन भी नहीं कर पा  रहा था।   चुनमुन  मम्मी जी से पूछकर नहीं आई  थी । इसलिए  उसे इसके लिए  भी डाँट  पड़ती ।  चुनमुन  अब अकेली पड़ गई  थी यह देखकर वह  रोने  लग गई  कि अचानक  उसकी आँखें खुल गई  ।  आँखों के खुलते ही उसने यूनीकार्न  को ढूंढना चाहा लेकिन  यूनीकार्न तो  वहाँ नही था ।  चुनमुन  को सब बातें किसी पहेली से कम नहीं  लग रही थी ।  कि वह चाकलेट  के पेड़ के चौकीदार  से कैसे बचकर आई कैसे ।   यूनीकार्न पर  भी बहुत  क्रोध  आ रहा था जो उसे अकेला छोड़कर  भाग गया था।   तभी उसकी नजर बिस्तर  से नीचे पड़ी जहाँ यूनीकार्न  महोदय  धराशाई  पड़े थे ।




शरद कुमार श्रीवास्तव 

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