चरणों में शीश झुकाता हूँ
माता पिता के चरणों में, मैं अपना शीश झुकाता हूँ ।
तन मन सब अर्पण है मेरा , उस पर ही बलि जाता हूँ ।
सागर सी गहराई छुपा है, ममता मयी आंखों में ।
पुण्य प्रताप का तेज छुपा है, उसके दोनों हाथों में।
कहां जाऊं मैं दर दर फिरे, ओ तो चारों धाम है ।
माता पिता के चरणों में, सौ सौ बार प्रणाम है ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया
छत्तीसगढ़
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