हिंदी दादी अमर रहेगी
अंग्रेजी चाची ने हिंदी,
दादी पर हमला बोला|
डर के मारे दादी जी का,
सिंहासन थर थर डोला|
धीरे धीरे दादी अम्मा,
घर में से बाहर आई|
“मैं वेदों की महरानी हूँ,”
जोरों से थी चिल्लाई|
“बड़े बुजुर्गों ने तो मुझको ,
धर्म करम में ढाला था|
बहुत प्यार से बड़े लाड़ से ,
स्मृतियों ने पाला था|
मेरे पुरखों दादों ने ही,
जग को जीना सिखलाया|
सत्य अहिंसा दया धर्म का,
मार्ग जहाँ को दिखलाया|
तुम सब नाती पोते, दादी ,
हिंदी को क्या पहचानों|
तुम अधकचरे मात पिता की,
हो अधकचरी संतानो|
दादी का अस्तित्व अभी तक,
कोई मिटा न पाया है|
नहीं मिटेगी किसी तरह भी ,
अमर हो चुकी काया है|
हिंदी दादी अमर रहेगी ,
इंग्लिश चाची के घर में|
गूंजेगी आवाज़ हमेशा ,
थल में जल में अंबर में|
प्रभु दयाल श्रीवास्तव
छिंदवाड़ा
मध्य प्रदेश
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