शनिवार, 6 मई 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा: नया एक्वेरियम






नया एक्वेरियम


नन्ही के  पापा कल बाजार से एक नया एक्वेरियम  खरीद कर  लाए हैं  ।    सब कुछ  नया है उसमे ।  खूबसूरत  पेड़, चट्टानें   नया  पम्प , बुलबुले  निकालते  हुए  एक  गोताखोर गुड्डा और उसमे छह-सात  रंगीन  मछलियां भी है  ।   नन्ही  को यह मछलीघर बहुत अच्छा   लग रहा है,  परन्तु  पापाजी  ने  उसे चेतावनी  दे  रखी  है  कि  वह मछलीघर  के  बिल्कुल  पास नहीं  जाये नहीं  तो  ठोकर लगने से  एक्वेरियम  टूट सकता  है  ।   लेकिन  नन्ही  को  चैन  नहीं  था  ।   वह चाहती  थी   कि  वह इन मछलियों  के  पास  जाये , उनसे खेले और  उनसे बात  करे ।   इनमें   सुनहले रंग  वाली  मछली  तो सबसे ज्यादा  चंचल  है  और ब्लू वाली  थोड़ा  स्लो  है ।   शायद  यह  सुनहली वाली  मछली ही इनकी  राजकुमारी  है ।   

 एक्वेरियम  ड्राइंगरूम   में  रखा  हुआ  था  ।     नन्ही एक्वेरियम  के  पास  जा नहीं  सकती  है  क्योंकि  उस    के  दादी बाबा,   टीवी  पर  प्रसारित  होने  वाले  प्रोग्राम वहाँ  देखते रहते  हैं ।   नन्ही क्या  करती,  बस मछलीघर टूटने  के   डर के कारण  दूर  से  ही उस प्यारे  से   मछलीघर  को  देख रही थी ।      एक्वेरियम को देखते  देखते   उसे  लगा  कि जैसे   उसके डैने  निकल आये हैं  और वह नदी में  तैर  रही  है  ।   तैरने में  उसे बहुत  मजा  आ  रहा  था  ।    उसके  साथ  और मछलियां  भी  तैर रही  थीं ।     वहाँ  एक कछुआ भी  था ।   वह   गर्दन उठा  कर  नन्ही  की  तरफ  देख रहा  है  ।  इतने मे  एक सुन्दर  सी  सुनहली मछली उसके  पास  आई  ।  नन्ही उस मछली  को अपने बिल्कुल  पास  पास देखकर   थोड़ा  डर गई  लेकिन फिर   उसने  देखा  कि  वह मछली   रोते हुए  नन्ही  से  कोई   बात  कह रही है ।  उस मछली  ने  नन्ही  से  कहा  कि  नन्ही  तुम  बहुत  अच्छी  लडकी  हो  ।   प्लीज  मेरी बच्ची  को  कैद से  छुड़ाने मे मेरी सहायता  करो ।   नन्ही  को  कुछ  समझ  में  नहीं  आ रहा  थी    ।  वह उस मछली से  पूछने लगी  तुम  रो क्यों  रही हो अपनी बात ठीक  से समझा  कर  बता भी  सकती हो  ।    मछली तो रोती रही परन्तु तभी  कछुए  ने  अपनी  गर्दन  उचका कर कहा कि  तुम्हारे  पापा  जी  आज एक्वेरियम  में  एक  सुनहरे  रंग  की   मछली  लाए हैं  वह इसी मछली  की दुलारी  बेटी है ।    उस कछुए  ने फिर  कहा   कि  जरा  पीछे  मुड़  कर  देखो  ब्लू  कलर की  मछली और बहुत  सी  मछली  तुमसे कुछ  कह रही है


 नन्ही  ने जब  पीछे  मुड़कर  देखा  तब उसे पता  चला कि  वह  सोफे पर ही  सो गई थी ।    उसे समझ  में  आ  गया  था  कि  वह  एक  सपना  देख  रही थी ।  थोड़ी  देर  में  उसे   अपने  सपने की  सारी बातें ध्यान  में  आने लगी  ।   उन बातों  के   ख्याल मे  आते  ही   वह रोने लगी  ।  वह  सिर्फ  रो रही थी  ।    उसे रोता देख कर   उसकी  दादी  उसे   चुप  कराने  की  कोशिश  करने  लगी ।   वह उसे उसकी  पसंदीदा  चाकलेट , स्नैक्स  देना  चाह रही  थी  परंतु  वह किसी  भी  प्रकार  से चुप नहीं  हो रही  थी ।   उसने अपनी  दादी  जी से कहा  कि  मै चुप हो जाऊँगी  पर  आप  को एक   प्राॅमिस करने होगा  । जब  दादी प्राॅमिस के  लिए  राजी हो  गईं  तब  नन्ही  ने सपने  की  बात  उन्हें  बताई और पापा के  आने पर  उसने  अपनी  दादी  की  मदद से  उन मछलियों  को जब तक नदी में  वापस  नही  छोड़वा दिया  तब तक वह नही मानीं  ।   नदी में जाते समय सब छोटी मछलियाँ उससे  प्यार  से धन्यवाद कहते हुए  विदा  हो रहीं  थीं और बडी वाली  सुनहले रंगों  वाली   नदी  में  दूर से नन्ही  को धन्यवाद  कहा रही थीं ।



                                  शरद कुमार  श्रीवास्तव 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें