गुरुवार, 6 जुलाई 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : टिंकपिका की सैर









नन्ही  चुनमुन  ' प्रिन्सेज डॉल '  फेरी टेल्स, की  पुस्तक  में  से "टिंकपिका का जादूगर "  वाली   कहानी  अपनी  दादी  से सुन चुकी  थी  ।  उसने सोचा  कि  कितना भयानक  होगा  टिंकपिका ।   उसे सोफे पर  बैठे  बैठे  ही दीवार  पर  एक मकड़ी  दिखाई  दी  ।  वह  पहले  घबरा  गई  लेकिन  उसने  फिर  सोचा कि वह  क्यों  घबरा रही है  ।  वह  तो अपने  स्कूल  का  सारा काम  जो घर मे करने के  लिए  दिया जाता  है  वह खुद अपने  आप  कर लेती है   बस  कभी कभी  अपने  पापा से  मदद  लेती है  ।   यह कोई भी  बुरी बात  नहीं  है  ।   तभी   उसे लगा कि दीवार की मकड़ी  बस उसे ही देखे जा रही है ।   उसने  अपनी  निगाह  मकड़ी  की  तरफ  से  फेर ली और  अपने मोबाइल  पर  गेम  खेलने मे बिजी  हो गई  ।




  गेम खेलते  हुए    न जाने  क्या  हुआ  कि  वह  मोबाइल की स्क्रीन  पर वह  एक अजनबी  जगह  पहुँच गई  ।    वह जगह  एक पुराना किला था  ।  उसके  दरवाजे  पर  भयानक  दिखने वाले  पहरेदार  खड़े  थे  जिनकी  बड़ी  बड़ी  मूछें थी ।  बडे-बडे  बाहर की  ओर  निकले दाँत  थे ।    इस किले में  घुसते  ही  एक बड़ा  सा  कमरा  था ।  उस कमरे मे काली  पोशाक  में  ऊँची  लम्बी  जादूगर  वाली कैप पहने  एक जादूगर  बैठा था  और उसके  सामने  मक्खी,  मकड़ी,  काकरोच, चींटे सहित कई  अन्य  कीड़े मकोड़े खडे होकर  अपनी  बातें   सुना रहे  थे ।     ज्यादातर  कीड़े उन बच्चों  की   खबर  लाए थे जो अलग अलग  वजह  से  कमजोर  हो रहे थे  ।     जादूगर  उनसे  कहा रहा  था  कि  ठीक  है वे उन बच्चों  को  उलझाए  रखें  ताकि  वे थोड़ा  और  कमजोर  हो  जाएँ तो जादूगर  खुद   जाकर  आसानी  से  उन्हें  टिंकपिका ले आए  और  रोबोट  बना  कर  उनसे  काम  कराए  ।    नन्ही  चुनमुन  ने इन कीडों  को यह कहते आगे सुना  कि  ज्यादातर  बच्चे  होमवर्क  तो कर लेते  हैं  परन्तु  मोबाइल  से चिपके  रहते  हैं  ।   वे  बाहर  खेल कूद  नहीं  कर सकते  हैं ।   इसलिये   ताकत मे कमजोर  हो  रहे हैं , हमारी  उनपर नजर  है ।   नन्ही  चुनमुन ने मोबाइल  फोन  पर  से नजर  हटाई  तो ऊपर मकड़ी   अपनी  आँखें  मटका  कर उसे  घूरते  नजर आई मानो वह कहते रही हो कि यही था  टिंकपिका का जादूगर  जो टिंकपिका  मे अपने किले मे बैठा था ।  अब तक  चुनमुन सचेत हो गई थी  और  वह मोबाइल  फोन  को छोड़कर   साइकिल  चलाने  लगी।


                        शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

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