सोमवार, 6 नवंबर 2017

डॉ. प्रदीप शुक्ल  की रचना : घुर्रम – घुर्रम – घर्र



दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र
लिए नगाड़ा मुन्नी पीछे 
कुर्रम – कुर्रम - कर्र  

दौड़ रहा वो पूरे घर में 
पहने केवल चड्ढी 
उसके आगे से हट जाओ 
बहुत तेज़ है गड्डी




थक कर दादी बैठ गयी हैं 
मचिया बोली चर्र 
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र

आगे आगे मुन्ना पीछे 
दीदी हाँथ पसारे 
गिर ना जाए चबूतरे से 
पहुँचा हुआ किनार




बहुत जोर से तभी पास में
मेढक बोला टर्र 
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र

मम्मी बोली रुक जा मुन्ना 
खाना तो खा ले 
पर निगाह में तितली उसके 
पहले वो पा ले 

मुश्किल से छू पाया मुन्ना 
तितली भागी फ़र्र 
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र







                                  डॉ. प्रदीप शुक्ल 
   

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