शनिवार, 16 दिसंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : दोस्ती



    विपुल और वीरू  आपस मे बहुत गहरे दोस्त थे।  दोनो एक ही होस्टल मे पर अलग अलग कक्षा मे पढ़ते थे। रूम भी अलग अलग थे।  एक दिन भी एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह सकते थे।
      दिन बीत रहे थे। एक दिन बड़ा हादसा हो गया। विपुल बाजार जा रहा था साइकिल से।पीछे से  तेज  रफ्तार से आती हुइ कार ने विपुल की साइकिल को जोरदार धक्का मारा। वह सड़क पर गिर पड़ा। सिर मे काफी चोट लगी थी। बहुत खून निकल गया था। तुरत अस्पताल पहुँचाया गया।
        वीरू को जैसे ही पता लगा दौड़ता हुआ अस्पताल पहुँचा। विपुल की हालत देखकर बहुत दुखी हो गया। डॉक्टर ने कहा घबराने की कोई बात नहीं।
       खून चढ़ाने की जरूरत थी। विपुल का blood group rare था। लेकिन वीरू ने डा. से कहा कि उसका खून विपुल के blood group से match करता है। उसका खून लेकर विपुल को चढ़ाया गया।
         धीरे धीरे विपुल की हालत सुधर रही थी। वीरू ने दिन रात एक करके विपुल की सेवा की।उसका हौसला भी बढ़ाता रहा।
         वीरू की सेवा की बदौलत विपुल शीघ्र स्वस्थ हो गया।
          स्वस्थ होने के बाद सबसे पहले वपुल ने वीरू को गले से लगाकर उसका शुक्रिया अदा किया। वीरू ने कहा ये सब क्या है। दोस्ती मे शुक्रिया, अहसान,धन्यवाद जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती । एक बात बता यदि मै तेरी जगह होता तो तू क्या मुझे यूं ही छोड़ देता ?
        दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खुशी के  आँसू बह निकले।
      दोस्ती हो तो ऐसी जो एक दूसरे के लिये मर मिटने को तैयार हों।


                             मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
  

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