शुक्रवार, 16 मार्च 2018

मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा : इन्सान का दुश्मन क्रोध



रमेश और कमल बचपन के गहरे दोस्त थे|  लेकिन स्वभाव बिल्कुल विपरीत |
सबेरे सबेरे रमेश  कमल के घर आया  और कमल को उठाते हुए बोला ,चल कमल आज संडे है कहीं दूर सैर के लिये चलते हैं |
  कमल फटाफट तैयार होकर आया और दोनो दोस्त सैर को निकल पड़े | थोड़ी दूर जाने के बाद दोनो को भूख लगी | इत्तेफाक से सड़क के किनारे एक फलवाला ठेले पर फल बेच रहा था |  रमेश कार से उतरकर फल लेने लगा |फलवाले ने गलती से रमेश के खरीदे हुए फल के पैकेट मे एक खराब सेव डाल दिया था |
जब रमेश ने खाने के लिये पैकेट मे से सेव निकाला तो उसके हाथ मे खराब सेव आ गया | अब रमेश का चेहरा देखने लायक था | गुस्से से आग बबूला हो रहा था | उसने फलवाले का ठेला सड़क पर ही उलट दिया | सारे फल सड़क पर बिखर गये |  कमल बोला ये क्या किया तुमने ? उस गरीब का इतना नुकसान कर दिया| इतना गुस्सा ठीक नहीं |
रमेश ने कमल को भी डांटकर चुप करा दिया| और कहा ये लोग इसी लायक होते हैं |
खैर कुछ देर बाद दोनो शान्त हुए और आगे बढे |
अभी कुछ ही दूर गये होंगे कि साइड से निकलती हुई कार ने कमल की कार मे जोर का धक्का मार दिया जिससे   कार मे डेन्ट पड़ गया | लेकिन कमल कुछ नहीं बोला और हंसते हुए आगे निकल गया |
रमेश यह सब देख रहा था | उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कमल की इस चुप्पी पर | रमेश ने कमल से कहा कि  तेरा इतना बड़ा नुकसान हुआ और तू चुप रहा | 
कमल बोला गुस्सा करने से क्या होता | कार के डेन्ट  को ठीक तो कार मेकेनिक ही करेगा | अपने आप तो ठीक होने से रही |
वैसे भी मैं शान्ति प्रिय इन्सान हूँ | बेकार मे गुस्सा करके मैं मन की शान्ति भंग नहीं करना चाहता |
रमेश को चुप हो जाना पड़ा |
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बच्चों क्रोध मनुष्य का सबसे बडा दुश्मन है |  गुस्सा करने से कोई भी कार्य सही नहीं होता बल्कि और बिगड़ जाता है| इसलिये छोटी छोटी बातों मे गुस्सा करना उचित नहीं है| 


                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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