सुशील शर्मा की बालकविता ठंडी
मौसम कितना ठंडा ठंडा
मुर्गी भूली देना अंडा।
ओस की बूंदें जैसे मोती ,
धूप सुनहली दिन में सोती।
शाल ओढ़ दादाजी आये ,
दादी मन मंद मुस्काये।
गर्म पकोड़े तलती मम्मी,
गर्म जलेबी यम्मी यम्मी।
पापा कहते रोज नहाओ,,
कोई इनको तो समझाओ।
सुशील शर्मा
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