शनिवार, 6 अप्रैल 2019

शून्य से शिखर तक : मंजू श्रीवास्तव




नमन के पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी |  नमन ने सोचा कुछ छोटा मोटा काम करके घर मे मदद करूं|
दूसरे दिन वह एक ऑफिस मे गया| ऑफिस के मालिक ने नमन से पूछा क्या तुम्हें कम्प्यूटर आता है? नमन ने कहा, आता तो नहीं पर सीख लूंगा |
ऑफिस के मालिक ने कहा इतना समय तो नहीं है मेरे पास| नमन निराश हो गया | ऑफिस से निकलकर वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया | वह सेव का पेड़ था |
    बैठे बैठे उसके मन मे एक खयाल आया | उसने पेड़ से कुछ सेव तोड़े और घर घर जाकर सेव बेच आया | सेव ताजे थे| सबने खुशी खुशी खरीद लिये |उसे सौ रूपये मिले| बाजार जाकर फिर सौ रुपये के सेव खरीदे | इस बार सेव बेचने पर उसे डेढ़ सौ रूपये मिले | बड़ा खुश हुआ |फिर उसने सौ रूपये के सेव खरीदे और शाम तक ३०० रूपये कमा लिये|
धीरे धीरे उसका काम बढ़ने लगा और उसने एक छोटी दुकान खोल ली |
वह अच्छी किस्म के सेव लाता था और ग्राहकों से व्यवहार बहुत अच्छा था | इसलिये उसकी दुकान मे भीड़ लगी रहती थी |
छोटी दुकान से बढ़ते बढ़ते  नमन ने कई दुकाने बना लीं और कई सेव के बगीचे भी खरीद लिये  |
आज वह बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था | अब उसके पास कार बंगला सब कुछ था |
करीब १० साल बाद नमन उसी बगीचे के पास से गुजर रहा था जहां वह पहली बार पेड़ के नीचे बैठा था| कार रुकने की आवाज सुनकर बगीचे का मालिक बाहर आया | नमन को देखकर बहुत अचम्भा हुआ |
इसके पहले कि बगीचे का मालिक कुछ पूछे नमन ने खुद ही कहा साहब आज जो कुछ मैं हूँ सिर्फ आपकी वजह से |
बगीचे के मालिक ने कहा कि यदि आज तुम्हें कम्प्यूटर आता होता तो तुम ऑफिस बॉय ही बनकर रह जाते |
बच्चों कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता| मन मे हौसला होना चाहिये कुछ कर गुजरने के लिये |


                               मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
      

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