शनिवार, 6 जुलाई 2019

मंजू श्रीवास्तव की कविता : गर्मी आई गर्मी आई








गर्मी आई,गर्मी आई...


गर्मी आई, गर्मी आई,
धूप की तपिश, लू भी आई |
दूर दूर तक कोई पेड़ नहीं है,
छांव का कहीं भी |नाम नहीं है
चढ़ता सूरज, तपती दुपहरी,
तन को कोई राहत नहीं है |
घर के अंदर कुछ राहत है,
बिन बिजली के वह भी घातक है|

कूलर, एसी देता कुछ आराम,
बिन बिजली के वह भी नाकाम |
तपती गर्मी मे जल का ही सहारा,
प्यास बुझे और तन भी रहे ठंडा|
अमरस, शरबत और ठंडाई,
आईस्क्रीम भी सबके मन भाई|
गर्मी आई, गर्मी आई
पानी पीकर प्यास बुझाई |




             मंजू श्रीवास्तव
              नोएडा

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