काट रहे सब पेड़ों को तो , कैसे भोजन खायेंगे ।।
नहीं रही हरियाली अब तो , केवल ठूँठ सहारा है ।
भूख प्यास में तड़प रहे हम , कोई नहीं हमारा है ।।
काट दिये सब पेड़ों को तो , कैसे नीड़ बनायेंगे ।
उजड़ गया है घर भी अपना , बच्चे कहाँ सुलायेंगे ।।
चीं चीं चीं चीं बच्चे रोते , कैसे उसे मनायेंगे ।
गरमी हो या ठंडी साथी , कैसे उसे बचायेंगे ।।
छेड़ रहे प्रकृति को मानव , बाद बहुत पछतायेंगे ।
तड़प तड़प कर भूखे प्यासे , माटी में मिल जायेंगे ।।
महेन्द्र देवांगन "माटी " (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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