शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

महेन्द्र देवांगन माटी की रचना चिड़िया की पुकार




























देख रही है बैठी चिड़िया,  कैसे अब रह पायेंगे ।
काट रहे सब पेड़ों को तो , कैसे भोजन खायेंगे ।।

नहीं रही हरियाली अब तो , केवल ठूँठ सहारा है ।
भूख प्यास में तड़प रहे हम , कोई नहीं हमारा है ।।

काट दिये सब पेड़ों को तो , कैसे नीड़ बनायेंगे ।
उजड़ गया है घर भी अपना , बच्चे कहाँ सुलायेंगे ।।

चीं चीं चीं चीं बच्चे रोते  , कैसे उसे मनायेंगे ।
गरमी हो या ठंडी साथी , कैसे उसे बचायेंगे ।।

छेड़ रहे प्रकृति को मानव , बाद बहुत पछतायेंगे ।
तड़प तड़प कर भूखे प्यासे , माटी में मिल जायेंगे ।।


महेन्द्र देवांगन "माटी " (शिक्षक) 
पंडरिया (कवर्धा) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

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