एक घने जंगल में एक विशाल सांप रहता था। वह मेढक, छिपकली, छोटे खरगोश, चूहा आदि छोटे जीवों और उनके अंडों को खाया करता था । इस तरह वह छोटे जानवरों अपना दबदबा भी बनाए रखता था । जब चाहा, जिसे डरा दिया , जब चाहा जिसे भगा दिया, करता था।
एक बार, जंगल में घूमते-घूमते, एक बड़े पेड़ के नीचे, चीटियों की एक बड़ी बाम्बी, दिखाई पड़ी । इस बाम्बी में ढ़ेर सारी चीटियां रहती थी । साँप ने सोचा कि यह जगह तो बहुत बढ़िया है । अगर मै इस जगह को हथिया लूँ तो बहुत मजा आ जाए । शिकार के लिये, इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं है । पेड़ के नीचे चूहों आदि के बिल और पेड़ के ऊपर पक्षियों के घोंसले मिल जाएंगे । तब जब चाहो, जैसी चाहो, दावत उडाओ ।
अब उसने मन बनाया और प्रायः हर हफ्ते, चीटियों की बाम्बी के पास जाकर एक चेतावनी दे आता था कि बाम्बी खाली करो, मैं रहने आने वाला हूँ । उसकी धमकी सुनकर भी चीटियां कुछ नही कहती थी और अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती थी । बस, अपना काम करती रहती थीं । यह सब एक छोटी गिलहरी देखा करती थी । उस गिलहरी ने चीटियों से कहा कि साँप आप लोगों को हर हफ्ते डरा जाता है और आप लोग उसे कभी कुछ क्यों नहीं कहतीं है । चीटियों ने कहा कि बस तुम देखती रहो । एक दिन साँप चीटियों की बाम्बी मे प्रवेश कर गया वह बहुत गुस्से में था । उसने कहा यह घर खाली करो । बस फिर क्या था बहुत सारी चीटियों ने साँप के ऊपर हमला कर दिया । वे सब उसके शरीर से चिपक गई और उस को काटने लग गई । उन्होंने साँप को बुरी तरह जख्मी कर दिया और साँप जख्मों में तड़प कर मर गया।
आपने देखा बच्चों , साँप को झूठा अहंकार नही करना चाहिए था । उसे दुश्मन के बल को पहचानना चाहिए था । वहीं चीटियां बहुत छोटी होती हुई भी अपने धैर्य और अपनी एकता के कारण इतने बड़े साँप को मार गिराई । एकता में बल है ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें