गुरुवार, 30 जुलाई 2020

कोरोना - सब जगह है रोना : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना




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आज देश विदेश सभी जगह एक ही बात का चर्चा है।कोरोना वायरस।कोरोना वायरस का कहर चीन से निकल कर दुनिया के 122 देशों में फैला है।यह सबसे बड़ा वायरस है।इसके प्रकोप से लगभग 5000 से ज्यादा आदमी जान गवां चुके हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन {WHO}इसे महामारी घोषित कर चुके हैं।

कोरोना वायरस क्या है - कोरोना वायरस एक ऐसे सूक्ष्म वायरस है जिससे आदमी के शरीर मे पहुंच कर जल्दी अपना प्रभाव दिखाता है।यह चीन के वुहान नगर से शुरू हुआ है।

बीमारी के लक्षण - कोरोना वायरस का लक्षण सर्दी ,खाँसी , बुखार , गले मे खराश , सांस लेने में तकलीफ यही इसका लक्षण है।यह बीमारी हवा के माध्यम से एक दूरसे में बहुत जल्दी फैलता है।अगर किसी को सर्दी , खांसी या बुखार आये तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिये।

कोरोना वायरस से बचने का उपाय -
1. हाथ , पैर , मुँह को अच्छे से साबुन से धोना चाहिए।
2. खाँसते या  छींकते समय मुँह में रुमाल रखना चाहिये।
3. भीड़ भाड़ में नही जाना चाहिये।
ये सब सावधानी सभी को करना चाहिये।
सावधानी ही इसका प्रमुख दवाई है।

प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


मंगलवार, 28 जुलाई 2020

अनोखी बिरियानी

बाल रचना
  
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एक   दिवस  चूहे   राजा  ने
बनवाई              बिरियानी
घी  में भूनी  प्याज़ साथ  में
नमक       मिर्च    मनमानी
उबले चावल डाल  मिलाया
पकने       लायक      पानी
करके  ढक्कन बंद  देरतक
पकने      दी       बिरियानी
खुशबू  से  अंदाज़ लगाकर
बोली              चुहियारानी 
पक जाने पर  तश्तरियों  में 
परसी       तब    बिरियानी
इसे  देख बिल्ली  मौसी  के
मुख      में     आया   पानी
चूहों  ने  आपस   में  सोचा
सही        नहीं       नादानी
इस  बिरियानी के चक्करमें
पड़े     न    जान     गवानी
उल्टे पैर  छुपे  जा  बिल  में
छोड़ी       दावत       खानी
मौका  देख स्वयं  बिल्ली  ने
चट  कर    दी     बिरियानी।
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             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                मुरादाबाद/उ,प्र,
                9719275453
                 27/07/2020

रविवार, 26 जुलाई 2020

ईश्वर की श्रृष्टि : शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना






बच्चों तुम भी सत्य को जानो
भगवान् की श्रृष्टि को पहचानो
ईश्वर ने पहले विश्व बनाया
सागर बागों से खूब सजाया

कीट पशु पक्षी जीवजंतु सारे
उसके द्वारा ही निर्मित हैं सारे
मानव को वह विश्व मे लाया
उसको विधिवत् रोल बताया

तुम चाहे जिस काम को करना
प्रथम लक्ष तुम जीवित रहना
शेर सांप बिच्छू अरि कोरोना 
इनमे अपने जीवन मे न ढोना

जीवन रक्षण मूल लक्ष था
सब खाया जो भी भक्ष था
समाज बन गया भरा पेट जब
रोटी मकान की चिन्ता हुई तब

घर बिजली जल वायु प्राण बन
इन्हे पाने,कटे बन,हुआ प्रदूषण
मानव अब लो सचेत हो गया
माना थोड़ा वो सा लेट हो गया

वन रक्षण का प्रण भी वह लेगा
नस्लों को सांसे भी तो वह देगा
प्रभु की अनुशंसा है बहुत जरूरी
उस से आओ हम करें कम दूरी




       शरद कुमार श्रीवास्तव 

प्रिन्सेज डॉल की डॉल : शरद कुमार श्रीवास्तव




प्रिन्सेज डॉल की डॉल

प्रिन्सेज घर मे दुखी बैठी उसकी प्यारी बिल्ली ने प्रिन्सेज से उसके भाई के बारे में पूछ लिया था . डॉल को मालूम नही कि उसका कौन भाइं है. उसका कोई भाई है भी कि नहीं उसे मालूम नहीं है. उसकी मम्मी भी बस गोल मोंल जवाब देती हैं कभी वह कृष्ण भगवान को राखी बंधवा देती है . वैसे तो मौसी बुआ मामा दादी के घर मे उसके भाई बहन सब हैं परन्तु वे सब दूर रहते है काफी दूर दूर मे रहते हैं . वे लोग बहुत बहुत दिनो पर आते है तब प्रिन्सेज किससे खेले . रूपम का भाई तो उसक़े पास रहता दोनो साथ खेलते हैं . यह बात अलग है कि रूपम और उसके भाई मे कभी कभी झगड़ा भी होंता है उनकी मम्मी एक ही तरह की बॉल / खिलौने लाकर देती है परन्तु रूपम को तो वही गुडिया चाहिये होती है जो रूपम का भाई खेल रहा होता हैं अथवा उसके भाई को वही बॉल चाहिये होंती है जो रूपम खेल रही होती है. प्रिन्सेज ने सोचा कि उसका भी कोई भाई होता तो वह उससे रूपम डॉल की तरह झगड़ा नहीं करती दोनो लोग बहुत प्यार से खेलते.

प्रिन्सेज को उदास देख कर बिल्ली भी उदास हो गई वह बोली तुम्हारे पास भाई नहीं है तो क्या हुआ मै तो हूँ हम लोग साथ खेलते है . प्रिन्सेज बोली हाँ हाँ ठीक है पूसी जी . प्रिन्सेज पूसी के साथ वही पुराना, बाल थ्रो एन्ड पिक का खेल ,खेल रही थी. इतने मे किसी ने दरवाजा खटखटाया . प्रिन्सेज ने दरवाजा खोला तो देखा कि मम्मी आई है और उसके हाथ मे एक बोलने वाली सुन्दर सी डॉल है. प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि चलो भाई नही है तो क्या हुआ यह प्यारी सी डॉल उसके पास आ गयी है जिससे वह बात कर सकती है. पूसी तो साथ मे खेलती है पर ठीक से बात नहीं कर सकती . यह डॉल तो बड़े मजे की है स्टोरी सुनाती है राइम भी सुनातीं है . अब वह नई डॉल के साथ व्यस्त रहने लगी. एक दिन प्रिन्सेज की मम्मी पापा बाहर उसे घुमाने के लिये ले गये थे . प्रिन्सेज का होमवर्क करना छूट गया था . बिना होमवर्क किये प्रिन्सेज सो गयी थी. उसे लगा कि वह बोलने वाली डॉल उसे उठा कर कह रही है कि प्रिन्लेज का कुछ खो गया है . प्रिन्सेज झटपट बिस्तर से उठ बैठी उसने डॉल की तरफ देखा तो वह मुस्करा कर स्कूल बैग की तरफ देख रही थी तब उसी समय प्रिन्सेज को अपना छूटा हुआ होमवर्क याद आया और उसने झटपट होमवर्क कर लिया . उस समय पूसी को प्रिन्सेज का लाइट जलांना अच्छा नहीं लगा उसने एक बार प्रिन्सेंज को आँख खोल कर देखा फिर मुँह फेर कर सो गयी. प्रिन्सेज ने नई बोलने वाली डॉल जिस को वह प्यार से डॉल ही बुलाती थी को सोने से पहले थैन्क्स दिया नहीं तो स्कूल मे अगले दिन काम नहीं करने के लिये टीचर से डांट सुननी पड़ती .
डॉल तो वैसे एक गुड़िया थी लेकिन प्रिन्सेज को वह बहुत अच्छी लगती थी . वह इसलिये नहीं कि वह देखने मे बहुत खूबसूरत थी ऒंर बोलने वाली थी बल्कि इसलिये भी कि कोई जरुरी बात प्रिन्सेज करना भूल जाती थी तब डॉल को देखते ही याद आ जाती थी . इसलिये प्रिन्सेज कहीं जाते समय डॉल को बाई बाई कहना नहीं भूलती थी।।




                        शरद कुमार श्रीवास्तव
                       शीलकुंज. मेरठ

सुन लो करुण पुकार





माना पशु हैं हम मगर,हम में भी हैं प्राण।
हमें मार इंसानियत,का दे दिया प्रमाण।

हमें जानवर जान कर,किया पेट पर वार।
किन्तु जानवर कौन है,कर लो स्वयं विचार।

एक अजन्में जीव की,सुन लो जरा कराह।
संग तड़प कर मर रहा,मेरा भी शिशु आह!

सजा मौत की है मिली,जो बिल्कुल निर्दोष।
जो था जन्मा ही नहीं, उसका क्या था दोष?

नीचे का कानून यदि,करे भले ही माफ।
लेकिन अब तो होयगा,ऊपर ही इंसाफ।





                           👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
                            व्याख्याता-हिन्दी
                            अशोक उ०मा०विद्यालय,
       लहार,भिण्ड,म०प्र०

नाना की पिटारी रचना डॉ रामगोपाल भारतीय



 नाना की पिटारी से आए नाना
एक पिटारी लाए नाना
बच्चों को आते देखा तो
मंद मंद मुस्काए नाना


बंटी का अरमान है इसमें
बबली की भी जान है इसमें
खोलेंगे तो पता चलेगा
किस किस का सामान है इसमें
रखके घर के बीच पिटारी
सबको पास बुलाए नाना

पहले निकला भालू भाई
बंटी ने बांहे फैलाई
जापानी गुड़िया निकली तो
बबली खुश होकर चिल्लाई
चमक देख उनकी आंखों में
फूले नहीं समाए नाना

एक बैग में भरी मिठाई
मम्मी पापा सबने खाई
सोने से पहले नाना ने
कई कहानी हमें सुनाई
बच्चों की नन्हीं आंखों में
सपने बड़े सजाए नाना

दूर देश से आए नाना
एक पिटारी लाए नाना


            डॉ रामगोपाल भारतीय,मेरठ
            मो ‪8126481515‬




माखन मुख लिपटा हुआ , मैया पकड़े कान।
बाल रूप है कृष्ण का , करे सभी सम्मान।।

बैठे कदम्ब पेड़ पर , करे राधिका तंग।
सुना रहे मुरली मधुर , बैठ गोपियों संग।।

कृष्ण प्रेम की बाँसुरी , है राधा के नाम।
पावन सच्चा प्रेम है , जैसे चारों धाम।।

गीत प्रेम के गा रहें , सारे मिलकर आज।
दौड़ी आई राधिका ,छोड़ें सारे काज।।

धड़कन में है राधिका , नस नस में है प्रीत ।
वृन्दावन में गूँजता , कृष्णा का संगीत।।

भोली भाली राधिका , पनियाँ भरने जाय।
छेंड़े मोहन राह में , गोपी भी शरमाय।।

राधा बैठी राह में, करे कृष्ण की आस।
छलिया मन को कर गयी , कैसे करूँ विश्वास।।














प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़







सुबह सुबह हर रोज के,  आता है अखबार ।
चुस्की लेते चाय की, पढ़ते बाबा द्वार ।।

ताजा ताजा रोज के,  खबरों का भंडार ।
बच्चे बूढ़े प्रेम से,  पढ़ते हैं अखबार ।।

सभी खबर छपते यहाँ,  अलग अलग हैं पृष्ठ ।
शब्दों का भंडार हैं,  कहीं सरल तो क्लिस्ट ।।

फैल रहा है विश्व में,  कोरोना का रोग ।
बता रहे अखबार में,  कैसे जीयें लोग ।।

कोई देखे चित्र को, कोई देखे खेल ।
कोई देखे भाव को, कोई देखे रेल ।।


महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़

mahendradewanganmati@gmail.com

कालू बन्दर : नीरज त्यागी की बाल कविता





कालू बंदर है  बहुत परेशान,
भारी गर्मी से वो होता हैरान।
बादल कभी - कभी है दिखते,
ना जाने फिर क्यों नही टिकते।

प्रभु से फिर करने लगा गुहार,
प्रभु कर दो बारिश की बौछार।
उमड़ - घुमड़ कर बादल आये,
कालू झूम-झूम कर नाचे गाये।

तन - मन कालू के हो गए तृप्त,
बारिश जंगल मे हुई जबरदस्त।
दूर हो गयी जंगल से गर्मी की मार,
कई  दिन  बरसे  बादल  बारम्बार।




नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल ‪09582488698‬
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

प्रिंसेज डाल और चूज़ा :: रचना शरद कुमार श्रीवास्तव




प्रिंसेज डाल और चूज़ा

सुबह सुबह प्रिन्सेज डाल को लगा कि  बालकनी  से  उसे कोई  पुकार  रहा है ।  वह बालकनी  में  आयी और जब  उसने इधर उधर देखा , तो उसे कोई  नहीं दिखा ।  फिर बहुत  धीमी  एक  आवाज  आयीं ' प्रिन्सेज डाल बिलेटेड हैप्पी  बर्थडे' ।  इस  बार  प्रिन्सेज डाल ने ध्यान  से देखा । बालकनी  के  गमले पर कबूतर का छोटा  सा चूजा उसे बधाई  दे  रहा  है ।  वह चूजा बोला  कि तुमने  मुझे  नहीं  बुलाया  लेकिन मैंने यहीं  से  तुम्हारा  जन्मदिन देख  लिया था । खूब रौनक  थी! तुम्हारे  जन्मदिन पर तुम्हारे घर तुम  जैसे तो बहुत सारे   बच्चे  आये थे ।  प्रिन्से

ज डाल बोली हाँ रूपम डाल, अनुश्री, गायत्री, वसुधा, सुयश  सहित  मेरे  क्लास के  बहुत सारे  बच्चे  आये थे ।  आशी,  शौर्य और  चीबू भैया  भी  आये थे  ।  मेरे  बाबा.दादी जी मौसी  जी भी  मौसा जी के  साथ  आए  थे ।   पता  है ! अब मै छह  साल की हो गई  हूँ ।  अब मै एक साल  बड़ी  हो गई  हूँ 
    

चूजा बोला  लेकिन तुम्हारे जन्मदिन  पर  रिदम नहीं  आया था?   प्रिन्सेज डाल ने  उससे  पूछा  कि  ये  रिदम कौन  है ?  मैं  तो उसे नहीं  जानती हूँ ।   कौन है वह और  तुम  उसे कैसे  जानते हो।   चूजे  ने  प्रिन्सेज डाल को बताया  कि  अरे वही जो  बूजो के  साथ  खेलता  है  और जिसके  साथ  बूजो ( कुत्ते के बच्चे  का नाम ) रहता  है  ।  मेरी मम्मी कहती  हैं  अपने दोस्तों  का नाम  जानना  चाहिये ।   मैं भी  तो उसको नहीं जानता था , लेकिन  मेरी  मम्मी   ने  मुझे  बताया  था ।   वो तो उड़ कर सब जगह  जाती  रहती  हैं  और सबको  पहचानती हैं ।  प्रिन्सेज डाल बोली मैं  उसे  जानती हूँ पर उसका नाम कभी  नही  पूछा  है । 

 

  प्रिन्सेज डाल फिर  बोली ' पता है कि मेरे  जन्मदिन  पर छह स्टोरी वाला केक आया था ।  अब मै छह साल  की  हो  गई हूँ इसलिए ।  पहले  तो  हम सब बच्चे अपने  आप खूब  खेले ।   कोल्ड  ड्रिंक्स  और चिप्स टाफी  बिस्कुट खूब  खाया ।  फिर हमें  मजेदार खेल खिलाने एक  और अंकल  आये थे ।  हम सबने  खूब मजा किया था ।   उन अंकल ने हमें  प्राइज  भी दिया ।  सबसे ज्यादा  तो आशी और सुयश ने प्राइज पाये  थे।  दादी बाबा और नाना  जी  के आ जाने  से  बहुत  अच्छा  लग रहा था ।   हम लोगों  ने  खूब  डान्स  भी  किया था।  इसके  बाद मैंने  केक काटा था  ।  सब लोगों  ने हैप्पी  बर्थडे वाला गाना गाया था ।   मुझे  खूब  गिफ्ट्स मिले और हमने भी  सभी  बच्चों  को रिटर्न गिफ्ट्स भी  दिये ।  सचमुच  बहुत  मजा  आया 



                    शरद कुमार श्रीवास्तव 

पहन पैजनिया : रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी



   
पहन  पैजनिया  बंदरिया  ने
ठुमका      खूब     -लगाया
दौड़-दौड़ कर मस्त हवा में
चूनर        को      लहराया
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मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम
कुचिपुड़ी          दिखलाया
घूम-घूम   कर उसने  सुंदर
घूमर      नाच      दिखाया
पीली-पीली बांध के पगड़ी
मस्त       भांगड़ा     पाया
पहन  पैजनिया--------------

गोपी का परिधान पहनकर
रास      नृत्य     दिखलाया
कभी डांडिया करके उसने
अद्भुत        रंग     जमाया
करके लुंगी डांस सभी  को
अपना      दास      बनाया।
पहन पैजनिया---------------

पश्चिम के कल्चर में ढलकर
बैले        डांस      दिखाया
भक्ति भाव में खोकर उसने
भक्ति      नृत्य     अपनाया
सच्ची श्रद्धा और लगन का
रूप       हमें     दिखलाया
पहन पैजनिया ---------------

देखा    बच्चो  बंदरिया   ने
हमको    यह     सिखलाया
तन,मन,धनसे जिसनेसीखा
कभी      नहीं      पछताया
सोनू ,मोनू ,सबने मिल कर
मंत्र       अनोखा      पाया।
 पहन पैजनिया--------------
         

                            वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी 
                            मुरादाबाद/उ,प्र,
                          9719275453  
            

बलजीत सिंह बेनामकी गजल रिमझिम रिमझिम आई बारिश





बलजीत सिंह बेनाम की बाल ग़ज़ल 



रिमझिम रिमझिम आई बारिश
सबके मन को भाई बारिश
देखो चेहरे भी हर्षाए
कितनी ख़ुशियाँ लाई बारिश
आई धूप किसी के हिस्से
और किसी के आई बारिश
थोड़ा हँस कर मुझसे बोली
थोड़ा सा शरमाई बारिश
सूखे खेतों पर बरसी कब
कितनी है हरजाई बारिश


रचनाकार के बारे में 

बलजीत सिंह बेनाम 
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी हरियाणा :125033 
मोबाईल:9996266210



मेरी माँ है सबसे प्यारी , करती मुझको प्यार।
गोदी में बिठाकर के , करती बहुत दुलार।।
भूख लगने पर माँ मुझको , हाथों से खिलाती।
प्यास लगने पर मेरी माँ , पानी मुझे पिलाती।।
जब भी नींद नही आती है , गोदी में सुलाती।
आँखे बंद करके माँ , लोरी वह सुनाती।।
जब भी मैं बाहर जाऊँ , इंतजार बहुत है करती।
मुझे सामने देख कर माँ , ठंडी आहे भरती।।
धूप लगने पर माँ अपनी , आँचल है फैलती।
खुद कष्ट सहकर माँ , मुझको बहुत हँसाती।।
माँ की ममता बहुत निराली , करती है वह काम।
थक जाने पर भी माँ , करती नही है आराम।।



                           प्रिया देवांगन "प्रियू"
                           पंडरिया
                           जिला - कबीरधाम
                           छत्तीसगढ़

महिमामयी नाक. :रचना अनंत पुरोहित अंनत





नाक हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बिना हम एक क्षण नहीं जी सकते। बहुत मजबूत अंग भी है। आपने सिर दर्द, कान दर्द, पेट दर्द अवश्य सुना होगा पर कभी किसी के नाक में दर्द हुआ हो ऐसा कम से कम मैंने तो सुना नहीं, मेडिकल का अध्ययन करने वालों ने सुना हो तो अलग बात है। संयोगवश किसी आम आदमी के नाक में दर्द हो भी जाए पर नेताओं के नाक में दर्द तो नहीं ही होता। हाँ, कभी-कभार नाक नीची होना जरूर सुना है मैंने। फलाने के बेटे ने ऐसा कर दिया, उसकी नाक नीची हो गई। काम बेटे ने किया, पर नाक उसकी नीची हुई। इससे यह प्रमाणित होता है कि नाक मजबूत और महत्वपूर्ण अंग होने के साथ-साथ संवेदनशील अंग भी है। ऐसे मजबूत अंग से भी यदि कोई चना न चबा सकता हो तो चना निश्चित ही बहुत कठोर होगा, तभी कभी-कभार यह सुनने को आता है कि उसने उसे नाकों चने चबवा दिए। हालाँकि कवियों ने इस महत्वपूर्ण अंग की बहुत अनदेखी की है। किसी भी शृंगार की कविता में देख लीजिए बाल, आँख के वर्णन के बाद सीधे अधरों का वर्णन मिलेगा। पता नहीं कवियों को नाक से क्या दुश्मनी रही?! कभी मिलकर पूछना पड़ेगा कि क्या उनको उनकी नाक प्यारी नहीं है? नाक तो सबको प्यारी होनी चाहिए, आखिर यह प्राण वायु आदान-प्रदान करने वाला अंग है। यदि हम हमारे ग्रंथों को भी देखें तो नाक का महत्व स्पष्ट दिखेगा। लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा के नाक काटे। वे चाहते तो हाथ-पाँव भी काट सकते थे, पर नहीं! उन्होंने नाक काटा। जाहिर है वे नाक का महत्व समझते थे। वे जानते थे कि शूर्पणखा की नाक कटी और समाज में उसका जीना दूभर। सूक्ष्म विश्लेषण से यह भी स्पष्ट होगा यही शूर्पणखा की नाक ही रावण की मृत्यु का कारण बना। नाक की इतनी बड़ी महिमा है। ऐसे में यदि आपकी नाक किसी नामी गिरामी नेता से मिलती हो तो यह कोई छोटी-मोटी योग्यता नहीं है। हमें सदा सम्मान करना चाहिए उस नाक का। यह अपने आप में ही एक महानता है।


अनंत पुरोहित 'अनंत'
अनंत पुरोहित 'अनंत'
बी ई (मैकेनिकल)
ग्रा- खटखटी पो- बसना
जि- महासमुंद (छत्तीसगढ़)
मो- 8602374011


मैं समय हूँ । कृष्ण कुमार वर्मा




मैं समय हूँ ।
मेरी परवाह करना सीखो ।
मेरे साथ चलो , कदम मिलाकर ..
अन्यथा छूट जाओगे , इस भागमभाग में ।
मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता हूँ ।
लोगो के सोच से , मैं आगे निकलता हूँ ।
हाँ ! मैं समय हूँ ।
जिंदगी के सफर पर , मुझे पहचान लो ।
चलना पड़ेगा साथ में , अच्छे से ये जान लो ...


             कृष्ण कुमार वर्मा
             रायपुर , छत्तीसगढ़

इक लड़की महेन्द्र कुमार वर्मा की रचना






इक लड़की भोली भाली ,
पर थोड़ी  नखरे वाली 

जब खुशियां आती घर में ,
 खूब बजाती वह ताली।

महकाती है घर आँगन ,
बन के फूलों की डाली। 

वो जब पायल छनकाती,
 घर में आती खुशहाली

सदा करे अपने मन  की,
ऐसी वो है जिद वाली 

करती है घर में रौनक,

इक लड़की भोली भाली।


 महेंद्र कुमार वर्मा
द्वारा ,जतिन वर्मा
E 1---1103 रोहन अभिलाषा
वाघोली ,पुणे [महाराष्ट्र]
पिन --412207   मोबाइल नंबर --9893836328

सोमवार, 6 जुलाई 2020

प्रिन्सेज डाल और रूपम डॉल : शरद कुमार श्रीवास्तव






आज प्रिन्सेज डॉल की फ्रेन्ड रूपम डॉल उससे मिलने आई है . उसके मम्मी पापा उसे छोड़ कर अस्पताल चेक अप के लिये जा रहे थे तब वे रूपम को प्रिन्सेज के घर छोड़ कर गयें. रूपम डॉल ने मम्मी से अस्पताल जाने की कोई जिद नही की क्योकि उसे मालूम था कि अस्पताल मे बीमार बच्चों के अलावा और किसी बच्चे को नहीं जाना चाहिये. अस्पताल मे कीटाणु बच्चो पर आसानी से अटैक कर सकते हैं जिससे बच्चे बीमार पड़ सकते है और उन्हे इन्जेक्शन लगवाना पड़ सकता है. रूपम के आनेसे प्रिन्सेज बहुत खुश हुई. उसे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि वह उसक़ो कहाँ से अपनी चीजे दिखाना चालू करे. तभी उसकी बिल्ली दोनो के बीच मे आ गई. रूपम डॉल बिल्ली की म्याऊँ सुन कर खुश हो गई. दोनो डॉल बिल्ली के साथ खेलने लग गईं
इतने मे प्रिन्सेज डॉल की मम्मी आगई बोली पूसी जी तुम्हारे लिये दूध रोटी उधर रख दी है तुम जाओ खाओ रूपम और प्रिन्सेज भी अब कुछ नाश्ता करेंगी करनेदेना बीच मे उन्हे डिसटर्ब नहीं करना. मम्मी फिरदोनो बच्चों को डाइनिंग टेबल पर ले गईं वहाँ उन्होने एक एक गिलास मे दूध एक प्लेट. मे बिस्कुट और जैम लगा कर टोस्ट रख दिये. दोनों बच्चो ने टोस्ट और बिस्कुट तो खा लिया परन्तु दूध पीने मे दोनो को दिक्कत थी दोनों से दूध बिलकुल नहीं पिया जा रहा था तब प्रिन्सेज की मम्मी ने एक कम्पटीशन कर दिया कि जो बच्चा पहले दूध पियेगा उसे प्राइज मिलेगा. अब क्या था प्रिन्सेज डॉल दूूध  धीरे-धीरे पी रही थी कि वही ं रूपम ने गिलास उठा कर गटागट दूध पी लिया. मम्मी ने एक सुन्दर सी रबड़ और एक पेन्सिल रूपम को दे दी . प्रिन्सेज डॉल को बहुत बुरा लगा वह रूपम से उसका प्राइज छीनने लगी . उसे लगा कि वह रूपम सेअच्छी लड़की है अपनी मम्मी पापा का वह बहुत कहना मानती है उसको स्कूल मे रोज स्टार मिलता है लेकिन रूपम को तो बहुत कम स्टार मिलता है इसलिये मम्मी को उसे प्राइज देना चाहिये.. वह रूपम से प्राइज खींच रही कि बीच मे पूसी आकर उसकी फ्राक खींचने लगी . प्रिन्सेज को अपनी प्यांरी बिल्ली की बात समझ मे आगई कि भई ये प्राइज तो जल्दी दूध खतम करने का है कोई अपने घर आये मेहमान की बेज्जती थोडे ही करता है. उसी बीच उसकी मम्मी ने ़दोनो का हाथ मिलवाकर लडाई खतम करा दी
प्रिन्सेज अब रूपम को अपने कमरे मे लेकर गई . वहाँ सुन्दर सुन्दर ट्वाय थे एक झूला भी था बेबी वाली साइकिल थी प्रिन्सेज पहले उसकी ड्राइविंग सीटपर बैठी तब रूपम पीछे से धक्का दे रही थी फिरूपम बैठी तब प्रिन्सेज धक्का देने लगी . प्रिन्सेज. जब साइकिल चला रही थी तब रूपम ने इतनी जोर से साइकिल मे धक्का दिया कि साइकिल दीवार मे टकराते टकराते बची. प्रिन्सेज को फिर अपनी नानी की याद आगई और वह रूपम के साथ अपने खिलौने शेयर करके खेलने लगी. थोड़ी देर बाद रूपम की मम्मी वहाँ आगईं और वह रूपम को लेकर घर चली गई. जाने से पहले उन्होने दोनो बच्चो को चाकलेट भी खाने को दी



शरद कुमार श्रीवास्तव 

उम्मीद की किरण


लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलती असफलता से प्रशांत का उत्साह कुछ कम हो गया था।किन्तु वह निराश नहीं हुआ था।उसे अपनी लगन,निष्ठा,ईमानदारी एवं परिश्रम पर पूरा विश्वास था।
जितनी बार वह प्रतियोगी परीक्षा में असफल होता उतनी ही लगन ,मेहनत और निष्ठा से वह अगली बार की तैयारी में जुट जाता।यह उसका दुर्भाग्य था या शासन के नियमों की वाध्यता कि वह एक अंक या एक अंक से भी कम प्वाइंट्स से मैरिड में रह जाता था।
इतनी बार असफल होने पर भी उसने हार नहीं मानी।क्योंकि वह जानता था कि अँधेरे के बाद उजाला आता है।रात जितनी ही काली होती है सुबह उतनी ही प्रकाशवान हो जाती है।
प्रशांत ने मन में ठान लिया था कि वह एक न एक दिन सफल होकर ही रहेगा।उसे उम्मीद थी कि एक दिन उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन अवश्य होगा।
काले- काले घने बादलों की कालिमा धीरे-धीरे छँट रही थी।बादलों में छिपी सूर्य की किरणें धीरे-धीरे विकीर्ण होने लगी थीं।सूर्य देव बादलों के बीच से झांक रहे थे।मानों मुस्करा कर कह रहे थे, "बादल मुझे ढँक तो सकता है किन्तु मेरे अस्तित्व को मिटा नहीं सकता है।"
आज प्रशांत की उम्मीद का सूर्य भी धीरे-धीरे अपनी लालिमा विखेरता हुआ अपने आने की सूचना दे रहा था।आज ही तो प्रशांत की जिला न्यायाधीश के पद पर ज्वाइनिंग हो रही थी।


👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
          व्याख्याता-हिन्दी
   अशोक उ०मा०विद्यालय,
        लहार,भिण्ड,म०प्र०

मौलिक एवं स्वरचित

सांप - नेवला






कहा   सांप   ने   अरे   नेवले
क्यों  मुझसे   झगड़ा   करता?
तेरी लाल - लाल  आंखों  का
मुझपर   फर्क   नहीं   पड़ता।
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मेरे   भीतर   बहुत   ज़हर  है
इसका   तुझको   भान    नहीं
उड़    जाएंगे    प्राण   पखेरू
पल-भर   में  यह  ज्ञान   नहीं
तुरत   छोड़  दे   मेरा    पीछा
क्यों  लड़ने   का   दम  भरता।
कहा सांप ने-----------------

व्यर्थ  किसी  को  नहीं  छेड़ता
नहीं   किसी   को   मैं  डसता   
और न अपनी कुटिल  कुंडली
में   जीवों   को    ही   कसता    
लगता  है  तू  इस  जीवन  से
बिल्कुल   प्यार   नहीं  करता।
कहा सांप ने----------------

कहा   नेवले   ने  ओ  विषधर
तू   इतना  अभिमान   न  कर
बेशक   मैं   छोटा   हूँ   तुझसे
मेरी     फुर्ती     से    तो   डर
तेरी    अहम   भरी    फुंकारों
की    परवाह    नहीं    करता।
कहा सांप ने------------------

अरे    घमंडी     तुच्छ    नेवले
अब   तू    होशियार   हो   जा
किसी समय अब मरने को भी 
तू   तैयार    ज़रा     हो     जा 
विषधर अपना  फन  फैलाकर
वार     नेवले      पर     करता।
कहा सांप ने------------------

चतुर  नेवले   ने   विषधर   के
फन   को    दांतों   से  पकड़ा
उसकी   भीषण   फुंकारों  पर
लगा     दिया    बंधन   तगड़ा
स्वयं  नेवले   की  हिम्मत   के
आगे    विषधर   क्या   करता
कहा साँप ने-----------------

अहंकार  में  कभी  न  पड़ना
बच्चो    इतना    ध्यान    रहे
अपनों से  छोटों  की  ताकत
का   भी   तो  अनुमान   रहे
बल ,बुद्धि और विनम्रता  से
ही    जीवन    आगे   बढ़ता।
कहा सांप ने----------------




      वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
          मुरादाबाद/उ,प्र,
          9719275453
    दिनांक-04/07/2020

मानसून




मानसून है आ गया , छाय घटा घनघोर।
बिजली कड़के जोर से , वन में नाचे मोर।।

पानी गिरते रोज के , हर्षित हुए किसान।
उपजाते है खेत में , लहराते हैं धान।।

चली हवाएँ जोर से , पक्षी करते शोर।
चले किसानी कार्य को , होते ही वह भोर।।

झूमें गायें लोग सब , आते ही बरसात ।
फसल उगाने आज सब , करे कार्य दिन रात।।

मानसून की आहटें , मन को खुश कर जाय।
हरियाली चहुँ ओर हैं , फसलें भी लहराय।।

प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

स्वदेशी अपनाओ महेन्द्र देवांगन माटी की रचना








अपनी धरती अपनी माटी,  इसको स्वर्ग बनाओ।
छोड़ विदेशी मालों को अब , स्वदेशी अपनाओ ।।

माल चाइना लेना छोड़ो,  देता है वह धोखा ।
चले नहीं वह दो दिन भी जी, हो जाता है खोखा।।

ऐसे धोखेबाजों को तो,  सबक सभी सीखाओ।
छोड़ विदेशी मालों को अब , स्वदेशी अपनाओ ।।

नहीं किसी से डरते हैं हम, हम हैं भारतवासी।
आँख दिखाये हमको जो भी,  होगा सत्यानाशी।।

नहीं चलेगा राग विदेशी,  वंदे मातरम गाओ।
छोड़ विदेशी मालों को अब, स्वदेशी अपनाओ ।।

एप्प चाइना को सब छोड़ो,  भारत का अपनाओ।
नये नये तकनीक यहाँ भी,  पैसा यहीं बचाओ।।

करो घमंडी का सिर नीचा, उसको अभी झुकाओ।
छोड़ विदेशी मालों को अब, स्वदेशी अपनाओ ।।


महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़

पापा जी : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना







पर्वत  जैसे  पिता   स्वयं   ही
होते      घर       की      शान
उनकी    सूझ-बूझ  से  थमते
जीवन       के          तूफान।
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अनुशासित जीवन का दिखते
पापा                    दस्तावेज़
सतत    संस्कारों    से    रहते
हरपल         ही        लवरेज
उनके  होंठों   पर  सजती   है
नित         नूतन       मुस्कान।
पर्वत जैसे-------------------

व्यर्थ  समय  खोने  वालों   से
रहते          हरदम           दूर
कठिन  परिश्रम  ही  है  उनके
जीवन         का          दस्तूर
आलस  करने  से  मिट जाती
मानव          की       पहचान।
पर्वत जैसे ----------------------

 घर  के  हालातों   से  भी वह
अनभिज्ञ       नहीं         रहते
रिश्तों   की    जिम्मेदारी    से
वे     सदा       भिज्ञ       रहते
अपने   और   पराए   का  भी
रखते           हैं        अनुमान
पर्वत जैसे-------------------

प्रातः अपने  मात - पिता  को
करते          रोज़        प्रणाम
ले   करके  आशीष   सदा  ही
करते          अपना       काम
उनकी सुख सुविधाओं का भी
रखते           पूरा         ध्यान।
पर्वत जैसे--------------------

बच्चों   में  बच्चे   बनकर   के
सबसे          करते         प्यार
इसमें   ही  तो   छुपा  हुआ  है
जीवन         का         आधार
दिल से  नमन  करें  पापा  का
करें          सतत        सम्मान।
पर्वत जैसे--------------------

           

               वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद/उ,प्र,
                   9719275453