शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

माँ की सीख (लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह

 


कोरोना,कोरोना,कोरोना,,,लड़का अपनी माँ पर खीजता हुआ घर के बाहर चला गया।माँ मास्क हाथ में लिए देखती ही रह गई।

    यह लड़का मेरी बात नहीं सुनता।बारबार हाथ साबुन से धोने,कपड़े धोने और मास्क लगा कर रहने की बात क्या गलत है।     माँ अनेक शंकाओं में घिरी उसके शकुशल घर लौटने की राह देखती है।

    बेटा यह सोचकर घर से निकला कि अब मैं उस घर में नहीं जाऊंगा जहां सर समय पाबंदियों में जीना पड़े।कभी यहां कभी वहां सुबह से शाम तक घूमते हुए थक गया भूख अलग से सताने लगी।वह नज़दीक के गांव में रह रही अपनी बहन के यहाँ पहुंचा।किवाड़ खटखटाई खिड़की खोलकर बहन देखा मेरा भाई आया है,जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलने को हाथ बढ़ाया उसके पति ने कहा अगर भाई ने मास्क पहन रखा हो तभी द्वार खोलना वरना उसे पहले मास्क लगाकर आने को कहो।

      बहन ने यही बात अपने भाई को बोल दी।इसके बाद वह कई जगह गया हर जगह उसे कोरोना से बचाव की चेतावनी सुननी पड़ती।

       इधर माँ एकटक उसकी राह देख देखकर पागल हुई जा रही थी।तभी अचानक दरवाजा बजा मां ने कौतूहलवश दरवाज़ा खोला,देखा कि उसका बेटा निढाल सा पड़ा हुआ है।माँ ने किसी तरह उसे चारपाई पर लिटाकर आराम दिलाया।

      फिर उसके मुंह हाथ धुलकर उसके कपड़े बदलवाए उसके बाद खाना खिलाकर पूछा, क्या में गलत थी जो तुझे इस भयानक बीमारी से बचने की सलाह देती रही।

       बेटा बेहद शर्मिंदा हुआ और मां के पैरों में गिर कर क्षमा मांगी और मां की हर सीख पर अमल करने  का आश्वासन देते हुए तुरत माँ से मास्क मांगकर लगा लिया।

    अब उसकी समझ में पूरी तरह आ चुका था कि हर बीमारी का इलाज जानकारी और बचाव में ही निहित है।इसलिए मास्क पहनिए,बार बार साबुन से हाथ धोइए,और उचित दूरी रखिए।

     


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

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