मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

**नाना जी की मूँछ** रचना शादाब आलम

 बालगीत  रचनाकारों मे एक जाना पहिचान नाम श्री शादाब आलम का है  इनकी यह कविता,  इसी पत्रिका मे  अगस्त 2017 के अंक मे  प्रकाशित  हो चुकी थी,  वह पुनः प्रकाशित  की जा रही है ।





चौड़ी-चौड़ी, लम्बी-लम्बी,
नाना जी की मूँछ।

लटकी दिखती है यह अक्सर
नीचे की ही ओर
टस से मस न होतीं चाहे
खींचूँ जितनी ज़ोर।
ऐसा लगता जैसे मुँह पर
लगी हुई हो पूँछ।

नाना जी को अपनी मूँछों
पर है बड़ा गुमान
कहते मूँछे तो होती हैं
मर्दों की पहचान।
करे बुराई जो मूँछों की
जातें उससे जूझ।

जब मैं रूठूँ फिर वे हँसकर
मुझे बुलाते पास
और सुनाते मूँछों वाला
गीत बड़ा ही ख़ास।
मूँछों पर वे कहें पहेली
फ़ौरन लूँ मैं बूझ।




                    - शादाब आलम

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