मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

"पापा की गुड़िया"




मैं पापा की गुड़िया रानी, मेरे अच्छे साथी थे।
खेल खेल में हम दोनों भी, बनते घोड़े हाथी थे।।

छोड़ कभी न अकेले मुझको, साथ मुझे ले जाते थे।
चाट पकौड़े बड़े मजे से, पापा मुझे ख़िलाथे थे।।

प्यार दिये भरपूर मुझे वह, कहानी वह सुनाते थे।
रुठ जाती बातों पर मैं जब, आकर प्यार जताते थे।।

कहाँ गए वो दिन भी सारे, याद बहुत अब आती है।
हर छोटी छोटी बातें ही, मुझको बहुत रुलाती हैं।।

क्यों करते हो ऐसा भगवन, कैसे अब विश्वास करूँ।
दूर किये खुशियों से अपनी, क्या तुझसे अब आस करूँ।।

सपनें देखे मिलकर दोनों, सारे सपनें टूट गए।
हँसते रोते दिन भी सारे, पीछे सारे छूट गए।।

जब भी आता जन्मदिन पापा, साथ सदा मनाते थे।
गुब्बारे और आइसक्रीम , केक हमेशा लाते थे।।

दूर हुए क्यों मुझसे पापा, याद बहुत ही आती है।
बात दिलों को छू ने वाली, आँखे नम हो जाती है।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


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