शनिवार, 26 नवंबर 2022

रानी लक्ष्मी बाई के जन्म दिवस पर विशेष भेंट : शरद कुमार श्रीवास्तव




 वाराणसी मे 19 नवम्बर 1835 को जन्मी झांसी की रानी का नाम बहुत श्रद्धा से स्वतंत्रता सेनानियों मे लिया जाता है।   भारत के बहुत स्थानों मे अपनी कन्याओं का नाम करण लोग इसी वीरांगना झासी रानी के नाम पर करते है. झासी की रानी का बचपन मे नाम मणिकर्णिका और प्यार का नाम मनु था।  ये पिता मोरोपन्त और माता भागीरथी देवी की सन्तान थीं इनकी माता भागरथी देवी का देहान्त मनु जब मात्र चार वर्ष की थी तभी हो गया था।  पिता, पेशवा बाजीराव के यहाँ कार्यरत थे।  मनु की घर मे देख भाल सुचारु रूप से नही हो सकने की वजह से इनके पिता इन्हे भी पेशवा के दरबार मे ले गये।   पेशवा के बच्चो के साथ मनु की शिक्षा हुई।  मनु ने बचपन मे ही पढाई लिखाई के साथ अस्त्र शस्त्रो मे निपुणता प्राप्त की।   स्वभाव से चंचल होने की वजह से मनु को लोग प्यार से छबीली भी कहते थे।   बाजीराव पेशवा के पुत्र नानाराव के साथ इनका बचपन बीता।   वो नाना के साथ ही पढ़ती और खेलती थी।   एक बार नाना हाथी पर सवारी कर रहे थे तो मनु ने भी हाथी पर बैठने को कहा तो किसी ने ध्यान नही दिया।  मनु नाराज हो गई और बोली कि मेरे भाग्य मे एक नहीं सौ हाथी का सुख लिखा है।   
कालान्तर मे मनु का विवाह बड़ी धूमधाम से झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ. मनु का नाम राजा ने लक्ष्मीबाई रखा।  रानी को घर मे बंधकर रहना पसन्द नहीं था।  उन्होंने राजा से कहकर  महल मे ही स्त्रियो के लिये व्यायाम शाला बनवाई और एक स्त्री सेना भी गठित की।   राजा गंगाधर राव रानी दक्षता से बहुत प्रभावित थे रानी को अच्छे घोडो की भी खूब पहचान थी।   एक बार घोडों का एक व्यापारी दो घोड़े लाया।  रानी ने एक घोड़े का दाम 1000 रुपये तो दूसरे का दाम पचास रुपये लगाए।   पूछने पर रानी ने बताया एक घोड़ा उम्दा किस्म का है जबकि दूसरे घोड़े की छाती पर चोट है।   रानी दया वान भी बहुत थी एक बार एक गाँव से गुजरते समय उस गाँव के कुछ निवासियों को सर्दी मे ठिटुरते हुऐ देखा।   उनका मन द्रवित हो गया और शीघ्र ही उन्होने उन लोगो के लिये गरम वस्त्रों की व्यवस़्था की।
कुछ समय बाद रानी के एक पुत्र हुआ. झाँसी मे आनन्दोत्सव मनाया गया। परन्तु यह आनन्द क्षणिक था बालक कुछ महीनो बाद बीमार पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।   शोकाकुल राजा गंभीर रूप से बीमार पड़ गये।   लोगो की सलाह पर राजा ने अपने परिवार के पाचवर्षीय बालक को गोद ले लिया।  अगले ही दिन राजा परलोक सिधार गये। रानी पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। अंग्रेजो ने सोचा यह अच्छा मौका है झाँसी को हासिल करने का.. रानी ने राजा के दत्तक पुत्र के अभिभावक के रूप मे सत्ता की बागडोर अपने हाथ मे ली थी।इस अंग्रेजो ने रानी को पत्र भेजा कि राजा के कोई पुत्र नहीं है इसलिये झाँसी पर अब उनका अधिकार होगा।  पत्र पाकर रानी ने उसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मै अपनी झाँसी नहीं दूंगी।   झाँसी की स्वामी भक्त जनता रानी के साथ एक स्वर हुई. रानी नेे कुशल किले बन्दी की. गौस खाँ और खुदाबक्श तोपची वफादार सरदारों और सैनिको के बुलन्द हौसलो ने अंग्रेजो की तोपों बन्दूको से लैस सेना के दाँत खट्टे कर दिये।  आठ दिनो के निरन्तर युद्ध किया। अंग्रेजों ने जब देखा कि ऐसे विजय हासिल होने वाली नहीं है तो छल से एक सरदार दूल्हा सिंह को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया।  रात मे उस गद्दार सरदार ने किले के दरवाजे खोल दिये।  बस फिर क्या था फिरंगियों की सेना महल मे प्रवेश कर गई उसने खूब लूटपाट मचाई बच्चो और स्त्रियों को काट ने लगे।   रानी लक्ष्मी बाई के कुशल नेतृत्व मे सैनिको ने बहुत बहादुरी से फिरंगियों की विशाल सेना का सामना किया।
रानी के विश्वस्त लोगो ने अपनी रणनीति की तहत कालपी की तरफ कूच करने की सलाह दी।  रानी कालपी की तरफ बढ़ रही थी। घोड़ों पर सवार बन्दूक धारी सैनिक रानी पर आक्रमण कर रहे थे कि एक गोली रानी की जाँघ पर लगी रानी की गति मे अवरोध हुआ कि घुड़सवार पास आ गये. थकी रानी के साहस मे कोई कमी नहीं थी एक घुड़ सवार पास आकर हमला कर रहा था कि रानी की तलवार ने बिजली की गति से उस पर प्रहार कर उसेे परलोक पहुँचा दिया।  इसी बीच लक्ष्मी बाई की प्रिय सखी की चित्कार सुनकर उसका संहार करने वाले अंग्रेज घुड़सवार को यमलोक पहुँचा दिया था।   रानी ने पुनः घोड़ा दौडाया परन्तु घोड़ा प्रयास के बावजूद एक नाला पार नहीं कर पाया कि एक अंग्रेज सैनिक ने रानी के सिर पर तलवार से वार किया और सीने मे संगीन भोंक दी परन्तु वीरान्गना रानी ने उस हालत मे भी अपने मारने वाले को मार दिया। रानी के स्वामीभक्त सिपहसालार गुलाम मोह्म्मद ने वीरता से अंग्रेजो को खदेड़ दिया और रामाराव देशमुख रक्त रंजित रानी को पास ही गंगादास की कुटिया मे लाये जहाँ मृत्युआसन्न रानी ने गंगाजल पी कर 22 वर्ष की अल्पायु मे 18 जून 1858 को देश मे क्रान्ति की एक अमर ज्योति जलाने वाली वीरांगना ने अपने शरीर का त्याग किया
इस संदर्भ मे कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ इस वीरांगना की श्रद्धा मे समर्पित हैं
बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झासी वाली रानी थी।।



शरद कुमार श्रीवास्तव 


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