सोमवार, 26 जुलाई 2021

"वादा" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"

 


वादा कर के आप, कभी तुम भूल न जाना।
रखना हर पल याद, हमेशा साथ निभाना।।
कच्ची पक्की डोर, बनी है सब की यारो।
थामे रहना हाथ, खुशी आयेगी प्यारो।।

करना ऐसा काम, नाम होगा जग सारा।
देना खुशी अपार, मिटेगा सब अँधियारा।।
वादा कर के आप, कभी ना पीछे जाना।
लेकर अपनी जीत, लौट कर वापस आना।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

कागज़ की नाव: शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

 



जय गर्मी से परेशान  हो चला था ।  वैसे तो बच्चो को जाड़ा गर्मी बरसात के मौसम, सब एक समान लगते है परन्तु  कोरोना के कारण  मम्मी पापा  घर से निकलने  नही  देते है ।  वे घर पर रहकर ऑनलाइन  काम करते रहते थे जिस की वजह  से जय घर पर ही रहता है। वह बाहर खेलने नहीं जा पाता है ।     लाॅकडाउन  के कारण बच्चो का भी बाहर खेलना  कूदना  मना कर  रखा था ।   छोटे से घर मे जय को हमेशा बंधकर  रहना पड रहा था ।   वह कितनी  ड्राइंग  बनाए,  कितना पढाई  करे और  कितना टी वी देखे ।

पर  इधर  कोरोना का संकट थोडा बहुत  कम हो चला था इसलिए  सरकार  की तरफ  से थोड़ा ढील  थी ।   फिर  भी मम्मी की तरफ से अभी रोक-टोक  कम नहीं हुई थी।  क्योंकि बाहर तो  लोग बिना मास्क के घूम रहे थे ।   मम्मी को डर था किसी मास्क विहीन इंसान  के द्वारा जय संक्रमित  न हो जाय । अतः जय को घर मे रहना पड़ता था  ।    

उस दिन  आषाढ़  के महीने मे ही आकाश  मे काले भूरे बादल  घिर आये ।  मौसम सुहावना  हो गया ।   जय का मन हुआ  कि बाहर  निकल  कर  खूब  नाचे झूमे मौसम  का आनन्द  उठाए  ।   वह अपने पुराने होमवर्क  के रजिस्टर  से दो चार  पन्ने फाड़कर  ले आया और उनको फाड़कर  छोटी  छोटी कागज की नाव  बनाने की कोशिश  करने लगा।   उसे यह करता  देख उसके पापा मे शायद अपने बचपन  की यादें ताजा हो गई  ।   वे भी  उसके साथ  शामिल  हो गये  अखबार  और  पुराने पन्नो की नावें बनने लगीं ।    इत्तेफाक से उसी समय झमाझम  पानी बरसने लगा ।  घर  के सामने की सड़क  पर खूब  पानी भर गया ।   लोगों को भले ही घर से बाहर  निकलने  मे कष्ट  भले हो रहा हो, लेकिन  पिता पुत्र  की यह जोड़ी अपनी अपनी कागज  की नावें  चलाने मे मस्त  हो गई 



शरद कुमार श्रीवास्तव 

वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल रचना/गर्धव राजा! -



ऐनक  पहने   छड़ी   घुमाते,

आए        गर्धव         राजा,

बैठ  गए  कुर्सी  पर  जाकर,

खाने    को    फल    ताज़ा।


ककड़ी,फूट,कचरियाँ  खाईं,

पिया    मज़े     से     माज़ा,

गर्धव   राग   छेड़कर   नाचे,

बजा      बजाकर     बाजा।


ढेंचू - ढेंचू    करके     तोड़ा,

कमरे        का      दरवाजा,

नाच - नाचकर  मार दुलत्ती,

गिरा    दिया   सब   खाजा।


तहस-नहस करडाला पलमें,

बिगड़   गया   सब    काजा,

दौड़ा-दौड़ा   मालिक  आया, 

बोला      थमजा        राजा।


कान पकड़ मालिक  ने फेरा,

डंडा         मोटा    -   ताज़ा,

ढूंढ   रहे   कब   से  घरवाले,

कहकर      राजा        राजा।

        


              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   06/07/2021

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सूनी राह" (रोला छंद) प्रिया देवांगन प्रिय

 


सूनी सूनी राह, नहीं है आना जाना।
सन्नाटा चहुँओर, बीत सा रहा जमाना।।
गलियाँ सारी बंद, सभी घर के है अंदर।
खिड़की ताँके लोग, लगे जैसे हो बंदर।।

कोरोना का खौफ, लोग डरते हैं सारे।
सर्दी खाँसी छींक, सभी इससे है हारे।।
करो सही उपचार, हार ना ऐसे मानो।
मुश्किल होगी दूर, स्वयं खुद को पहचानो।।

स्कूल कॉलेज बन्द, हाथ मोबाइल पकड़े।
खेले वीडियो गेम, साथ में बच्चे झगड़े।।
बैठे सभी उदास, शाँति जग में है छाया।
तन मन है बेचैन, चीन बीमारी लाया।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

रिमझिम रिमझिम बरसा पानी : बुशरा तबसुम की रचना

 


रिमझिम रिमझिम बरसा पानी

भीगी धरती धानी धानी

पंछी जन ने पर फैलाए

फुदक फुदक कर खूब नहाए

भीगूँ मै भी है मेरा मन

धो लूँ अपना फूलों सा तन.





बुशरा तब्बसुम

रुडकी 

वर्षा बचपन की" (छन्न पकैया)

 


छन्न पकैया छन्न पकैया, बचपन लगे सुहाने।
सारे बच्चे मिलकर जाते, पोखर साथ नहाने।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, बच्चों की है टोली।
पेड़ो के संग खेला करते, बोले मीठी बोली।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मस्ती करते सारे।
झूम झूम कर गाते गाना, लगते कितने प्यारे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, पेड़ो पर चढ़ जाते।
बन्दर जैसे कूद कूद कर, बच्चें सभी नहाते।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, हरी भरी है डाली।
जी लो अपना बचपन सारा, अभी उमर है बाली।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


स्व महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना जागो





जाग सबेरे चिड़ियाँ चहके, कोयल गाना गाये ।
कमल ताल में खिले हुए हैं, सबके मन को भाये ।।


रंभाती हैं गैया देखो, बछड़ा भी  रंभाये ।
दाना पानी लेकर अब तो, मोहन भैया आये ।।


उठ जाओ अब सोकर प्यारे, मुर्गा बाँग लगाये ।
आलस छोड़ो बिस्तर त्यागो, सबको आज जगाये ।।


माटी पुत्र चले खेतों में, हल को लेकर जाये ।
इस माटी का कण कण पावन,  माथे तिलक लगायें ।।






रचनाकार
महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com


शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

शेर की ईमानदारी शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

 




आषाढ़ का महीना  था   पास के जंगल  मे सभी जानवर गर्मी से परेशान  होकर किसी तरह अपना जीवन  बिता  रहे थे।  भारी गर्मी मे वे जंगल  की कटीली झाड़ियो मे छुपे हुए थे ।   वे पानी पीने के लिये जंगल  के झरने के पास चले जाते थे ।  इसी झरने के पास जंगल  का राजा शेर भी शिकार की टोह मे बैठा रहता था जानवरों के चौक्कना  रहने से उनका शिकार  नहीं कर पाता था 

जंगल  के पशु  चालाक  थे ।  वे सब  शेर से नजर बचाकर झरने  से पानी पीकर  अपनी झाड़ियों मे दुबक जाते थे ।   भेड़िया, लोमड़ी  सियार आदि भी शिकार  नहीं कर  पाते थे ।


अचानक  एक दिन पास के एक गांव  से एक बैशाख नंदन (गधा) की  मधुर कंठी आवाज  सुनकर सियार फूला  न समाया।   उसे समझ मे आया कि बैशाख के घोर कोरोनाकाल  मे अपने घर  मे बन्द रहने के कारण  गधा उचित  समय पर अपनी खुशी व्यक्त  नहीं कर  पाया था अतः अब मुक्त हंसी से अपनी खुशी जाहिर  कर  रहा है ।  


सियार बहुत  दिन  से भूखा था इस लिये वह शेर के पास गया और  दूर से ही शेर  को शिकार  का लालच  देकर उसने शेर से अपने  हिस्से- बाट की बात कर लेना उचित  समझा ।   शेर ने कहा -ठीक है तुम  जानवर  लेकर आओ  मै शिकार  करूंगा  और  शिकार  के पेट के ऊपर  का हिस्सा मेरा रहेगा और  पेट के पीछे का हिस्सा तुम खा लेना ।  सियार  बोला ठीक है महाराज  मुझे मंजूर है।


सियार  जल्दी से गधे के पास  पहुँचा और  बोला बहुत  खुश  दिख रहे हो तुम्हारा भाग्य  बहुत  तेजी से तुम्हारे साथ  चल रहा है।  गधे ने पूछा  वह कैसे ?   सियार  बोला  जंगल  के राजा बूढे  हो चले है और  वह अपना राजपाट किसी को सौंप कर  विश्राम  करना चाहते हैं ।   महाराज  ने आपकी प्रभावशाली आवाज  सुनकर  मुझे आपके पास  भेजा है ।   अपनी तारीफ  सुनकर  गधा फूला नहीं समाया पर फिर उस ने कहा कि तुम मुझे मूर्ख  तो नहीं बना रहे हो ।  तब  सियार  बोला कोई  दूसरा जानवर  राजा के पास  जाकर  अपना राज्याभिषेक  न करा ले इसलिए  जल्दी करो।   गधा सियार  की बातों मे आ गया। 


सियार  गधे को साथ  लेकर  शेर  के पास  पहुंचा ।   जैसे ही दोनो शेर  के पास  पहुंचे शेर ने गधे को एक ही  झपट्टे मे  पकड़ना चाहा।   गधा झटपट  वहाँ से भाग निकला ।   हाथ से शिकार  जाता देख  सियार  उसके पास गया और बोला  कि तुम  भाग क्यो आए  ?  महाराज  आपको राजकाज  की गुप्त बातें  बतलाना चाहते थे और  सोने का हार तुम्हारे गले मे डालना चाहते थे ।  गधा  फिर  सियार  की बातों मे आ गया ।   इस  बार  शेर  ने एक ही वार मे उसका काम  तमाम  कर  दिया।


शेर जैसे ही गधे को खाने के लिए  बढ़ा  सियार  ने कहा महाराज  इतने दिनो के बाद  तो शिकार  मिला है इसलिए  पहले झरने के जल मे नहा लीजिये  फिर  भोजन  कीजिये ।  शेर को उसकी बात  अच्छी लगी और  वह  नहाने के लिए  चला  गया।  सियार  ने मौका पाकर गधे के सिर को अपने पैने नाखून  और दांतो  से फाड़ कर  खा गया ।   जब शेर  नहाकर  आया तब  उसने गरज कर सियार  से पूछा कि इस का दिमाग  कहाँ गया?   सियार  ने बड़ी चतुराई  से कहा महाराज  वह गधा था और  गधे के पास  दिमाग  होता तो वह क्या यहाँ आता।   शेर को बहुत  भूख लगी थी अतः उस  ने और बहस करना छोड कर शिकार  का बाकी ऊपरी भाग खा लिया और  ईमानदारी से  बचा हुआ  भाग  सियार  के लिए  छोड  कर  सैर पर  चला गया।





शरद कुमार श्रीवास्तव 

दर्पण



मन का दर्पण साफ रख, खड़ा हुआ है आज।
सच्चाई का सामना, पूरा करते काज।।

नारी का श्रृंगार है, सजती है दिन रात।
बैठ पिया के सामने, करती मीठी बात।।

मन के अंदर मैल है, मुखड़ा यूँ चमकाय।
मीठी मीठी बात से, मन को बहुत लुभाय।।

दर्पण से खेले नही, आती गहरी चोट।
रख सच्चाई सामने, मन मे जितना खोट।।

मन के अंदर झाँक कर, खुद ही देखो आप।
कर्म करो अच्छे सभी, मिट जाएगा पाप।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शामू 6 एक धारावाहिक कहानी

 




अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था उन्हें बहुत जतन के साथ रखने पर भी कुछ नोट कीड़े खा गये थे । उन नोटों को शामू ने इशरत मियाँ की मदद से बदलवा दिये थे और बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता था।
आगे पढिये :-
बैंक के खाते में शामू प्रति माह अपनी तनख्वाह से कुछ रुपये और दादी के दिये रुपये  बचा कर  नियमित रूप से जमा करने लगा । दादी को भी खुशी हुई कि उसके पैसे बैंक मे जमा हो रहे हैँ । अब रुपये चोरी चले जाने या कीड़े /चूहों के द्वारा कुतरे जाने का डर नहीं है ।   बिहारी अभी पहले की तरह रुपये अपनी माँ को दे जाता था और अपनी माँ से उन रुपयों के बारे मे कभी नहीं पूछता था ।
शामू इशरत मियाँ के गैरेज में मेहनत से काम करता था । धीरे धीरे वह कार रिपेयरिंग के   कार्य  से पूरी तरह  से परिचित  हो  गया था ।     कार आते ही उसकी आवाज से ही समझ जाता था कि गाडी  का कौन सा हिस्सा  खराब हो  गया  है ।  इंजन  के  काम  में  काफी माहिर  हो गया था  ।   कार के  इंजन  का  पिस्टन  हो या रिंग  का बदला जाना या  इंजन  का  बदला जाना, सब काम  करने को वह बहुत  अच्छे  से  सीख  गया  था  ।  इसकी  वजह थी  कि  इशरत  मियाँ  शामू  को  हमेशा  अपने  साथ  लगाए रखते थे।   इशरत मियाँ  के  प्यार  और अपनी लगन  की वजह  से  वह  मोटर मैकेनिक  का काम  अच्छी  तरह  से  सीख  गया था।
नुसरत  से  शामू अपने काम भर की पढ़ाई  लिखाई  भी  सीख  गया  था ।    कुछ  समय  बाद , नुसरत  का एडमीशन  उनके प्रिय  विषय  कम्प्यूटर  साइंस   के  लिए जबलपुर  के   इंजीनियरिंग कालेज  मे  हो गया  था ।  कालेज  मे तीन साल कैसे निकल गये पता नहीं  चला और कैम्पस   सेलेक्शन  में   नुसरत  सिद्दीकी  को  बैंगलोर  की कम्पनी   ने  अच्छी  शुरुआत  पर बुला लिया  ।   अब नुसरत  को आसानी  से  छुट्टी  न  मिल  पाने  के  कारण  इशरत  मियाँ  को  तकलीफ  होती  थी  ।   उनके  या बेगम  की बीमारी  दवादारू  आदि  सब कामो  मे शामू  ही सुझाई  देते  थे ।  गैरेज हो या घर हर स्थान  पर शामू  अपनी  जिम्मेदारी  निभाता था ।   इशरत भाई  का हर काम शामू के बगैर पूरा  नहीं  होता  था
नुसरत  ने बंगलोर  पहुँचाने  के बाद  अपने  माता  पिता  को  बंगलोर घूमने  के  लिए  बुलाया  ।  वहाँ  एक  माह  बिता कर वह लोग  अपने  घर  वापस  लौट  आये ।   शामू  के ऊपर  गैरेज  का  पूरा भार था ।  जब इशरत  मियाँ  लौट  कर आये गैरेज  ठीक  ठाक  मिला  । प्रत्येक   दिन  का हिसाब किताब  लिखा हुआ   मिला । यह सब देखकर  इशरत  मियाँ  खुश हो  गए  ।    अब  गैरेज  के  सब काम  शामू  करता था  ।  शामू को अब अधिक  जिम्मेदारी के   काम  मिलने लगे  थे  ।  बैंक  मे रुपये  जमा  करना  या निकाल  कर लाना सारे काम  शामू  करता  था  इशरत  भाई  जब विशेष  जरूरत के समय ही  काम अपने  हाथ मे लेते थे ।    नुसरत   भाई  की  माँ  शामू  पर बहुत  भरोसा  करती थी  इशरत  मियाँ  को डायबिटीज  है इसलिए  शामू  को  उन्होंने  हिदायत  दे  रखी  थी  कि  इशरत  मियाँ  को  बाहर  की चीजें  नही  खानी है ।   बारह बजे  की  चाय  शामू   गैरेज  के  किसी  लड़के  को  घर  भेजा कर मंगवा  लेता था  ।   नुसरत  भाई  की माँ एक चाय  शामू  के लिये   भी भेजती थी।

आगे अंक 7 मे

सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी रचना "कोयल"

 



देखो कोयल काली है पर
मीठी है इसकी बोली
इसने ही तो कूक कूक कर
आमों में मिश्री घोली
कोयल कोयल सच बतलाना
क्या संदेसा लायी हो
बहुत दिनों के बाद आज फिर
इस डाली पर आई हो
क्या गाती हो किसे बुलाती
बतला दो कोयल रानी
प्यासी धरती देख मांगती
हो क्या मेघों से पानी?
कोयल यह मिठास क्या तुमने
अपनी माँ से पायी है?
माँ ने ही क्या तुमको मीठी
बोली यह सिखलायी है?
डाल डाल पर उड़ना गाना
जिसने तुम्हें सिखाया है
सबसे मीठे मीठे बोलो
यह भी तुम्हें बताया है
बहुत भली हो तुमने माँ की
बात सदा ही है मानी
इसीलिये तो तुम कहलाती
हो सब चिड़ियों की रानी



सुभद्रा कुमारी चौहान 

जनसंख्या नियंत्रण"

 



बढ़ते संख्या रोज, लोग भी बढ़ते जाते।
नहीं नियंत्रण होय, तभी संकट है आते।।
आबादी को देख, सदा बढ़ती महँगाई।
जनसंख्या पर रोक, करो सब मिलकर भाई।।

करे नौकरी आस, बढ़ा के बच्चे सारे।
घूमे कागज रोज, लोग किस्मत से हारे।।
बेटी बेटा एक, भेद ना इसमें जानो।
जीवन का आधार, सदा दोनो को मानो।।

जनसंख्या पर रोक, करें जल्दी ही जारी।
महँगाई की मार, पड़ी है सब पर भारी।।
छोटा हो परिवार, तभी सब साथ निभाते।
थामे रहते हाथ, सुखी जीवन को पाते।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बुधवार, 7 जुलाई 2021

 





खरगोश की अक्लमंदी

बहुत दिन पुरानी बात है कि एक जंगल मे एक झील के किनारे कुछ खरगोश अपने अपने घरों मे रहते थे ।   उसी जंगल मे कहीं दूर दराज से एक हाथी का झुन्ड आया ।  उन हाथियों को वह जंगल बहुत अच्छा लगा ।   खूब छाये दार पेड़ खूब फल हाथी पूरी मस्ती मे आ गये , उन्होने उस जंगल को मस्ती मे नहस करके खूब नुकसान पहुँचाया ।   उन हाथियों को जब प्यास लगी तब उनके मुखिया ने उन्हे बताया कि इस जंगल का सरोवर वह जानता है जहाँ का पानी बहुत मीठा है ।   फिर क्या था उसके साथ सारे हाथी उस झील पर पहँचे और उन्होने मजे से खूब पानी पिया और लौट गये ।  इन लापरवाह हाथियों के पैरो के नीचे कई खरगोश आ गये और उन्होने अपने प्राण गंवाए।   यह सिलसिला कुछ दिन चला और हर रोज एक न एक खरगोश उनकी लापरवाही का शिकार होते थे ।

आखिरकार उंन खरगोशो ने एक सभा कर अपने ऊपर आयी इस आकस्मिक आपदा का निदान खोजने का प्रयास किया ।    उन खरगोश के बुजुर्ग खरगोश को एक तरकीब सूझी । उसने बाकी खरगोशों से शान्ति बनाए रखने को कहा ।   उसने अपने साथियों से कहा कि किसी आपदा का सामना शान्ति से किया जाता है विचलित नहीं हुआ जाता है।   आप सब शान्ति से बैठिये मैं कुछ न कुछ करता हूँ ।   थोड़ी देर बाद जब हाथियों के झुन्ड के आने का समय हो चला था , तब वह पास के टीले पर चढ़ गया।   जब हाथी उधर से गुजरने लगे तब वह चिल्लाकर बोला कि वह मै देव दूत हूँ ।   पृथ्वी के देवता! चन्द्रमा ने मुझे भेजा है । आप लोग नहीं जानते हैं कि सारे खरगोश जिन्हे ‘ शशांक’ भी कहते हैं भगवान चन्द्रमा के ही दूत हैं और चन्द्रमा से पास से ही आये है ।   आपने जाने अन्जाने मे खरगोशों को बहुत नुकसान पहुँचाया है उससे चन्द्रमा देवता आप लोगो से नाराज हैं ।  वे गुस्से से काँप रहे है ।   वे हमारे पास आये हुए हैं ।  इसलिये अच्छा यही होगा कि आपलोग इस जंगल को तुरंत ही छोड़ कर किसी दूसरी ज॒गह चले जाएं नहीं तो चन्द्रमा देवता के गुस्से का सामना करना पड़ जायगा ।  सब हाथी एक दूसरे की तरफ संशय और भय से देखने लगे ।   तभी उस बूढ़े खरगोश ने कहा इसमे कोई संशय करने की बात नहीं है . शाम को आपमे से कोई, इसी झील पर आ जाये और अपनी आखों से प्रत्यक्ष देख ले ।

जंगल जाकर हाथियों की बैठक मे निर्णय लिया गया और उनका मुखिया हाथी,  दबे पांव बिना किसी खरगोश को नुकसान पहुंचाए आया । उस समय शीतल मन्द हवा चल रही थी।  झील मे पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की काँपती परछाईं देखकर वह हाथी चन्द्रमा को गुस्से मे काँपता समझ कर भयभीत हो गया और लौटकर बिना कोई समय खोये बाकी हाथियों के साथ जंगल छोड़ कर कहीं और चला  गया  ।   इस प्रकार संयंम और बुद्धि के प्रयोग से खरगोशों को विजय मिली।

शरद कुमार श्रीवास्तव

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

चुटकुले : संकलन अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव




1


ट्रेन से एक यात्री नें ट्वीट करके रेल विभाग में..शिकायत भेजी ...!!


   '' बाकी सुविधायें भले ही न बढ़ायें

      पर लैट्रिन में मग्गे की चैन की

     लंबाई इतनी तो बढ़ा दें कि वह 

     मुकाम तक तो पहुंच सके .." 


रेल्वे विभाग की तरफ से रिप्लाई आया ...!!!


    " मग्गा चैन से बंधा है, आप नहीं .. कृपया....अपना मुक़ाम मग्गे तक ले

जायें..."


😝😝😝😝😝




2


 डॉक्टर की रात को अचानक नींद

खुली..उसने देखा की उसका टॉयलेट पूरी तरह से ब्लाक हो गया है ..


उसने अपनी पत्नी से कहा- मैं अभी प्लम्बर को बुलाता हूं ..!!


पत्नी ने समझाया - तुम प्लम्बर को रात को तीन बजे मत बुलाओ ..!!


मैं तो बुलाऊँगा डॉक्टर अड़ गया..बोला "

हम भी तो जाते हैं रात को अगर कोई मरीज बीमार हो जाये ..!!


उसने प्लम्बर को फोन किया... शिकायत की ..और उसे रात को ही आने को कहा .."


प्लम्बर ने सुबह आने को कहा तो डॉक्टर ने फिर से वही बात कही.... अगर मैं रात को मरीज देखने जा सकता हूं तो तुम क्यों नहीं आ सकते ..?


आधी रात को 3:30 बजे प्लम्बर आँखों को मसलता हुआ पहुंचा ..डॉक्टर ने उसे ब्लाक टॉयलेट  दिखाया..!!


प्लम्बर बाहर गया वहां कुछ टैबलेट पड़ी थी ..उसने दो उठाई ..टॉयलेट में डाली और डॉक्टर से कहा- हर आधे घंटे के बाद एक-एक बाल्टी पानी डालते रहना अगर कोई फर्क नहीं पड़े तो सुबह फिर से मुझे कॉल करना..हो सकता है कि एण्डोस्कोपि करना पडे ..!!


😝😝😝😝😝😝😝😝😝😝


लाओ 2000/- मेरी फीस...


😉..




3


आधा बचपन तो साला इसी कन्फ्यूजन में बीत गया कि समबाहु... विषमबाहु और समद्विबाहु त्रिभुज के नाम हैं ..या राक्षसों के...


😜😝😝😂




4


एक लड़की रोज सुबह 10 बजे पेड़ की डाल पर बैठ जाती....और शाम को 5 बजे उतर जाती...!!

.

.

.वजह.....

.

.

.

MBA करके वोह पागल हो गई थी

खुद को ब्रांच मैनेजर समझती थी.. 


(इसी लिये (ब्रांच)पेंड की डाली पर रोज़ आ बैठती थी)


😜😝😝😝


5


एक महत्वपूर्ण प्रश्न..मुझे पता है बहुतायत लोग इसका सही उत्तर नही दे पाएंगे..


प्रश्न...कांटो भरे रास्ते पे कौन आपका साथ देगा…?


संभावित उत्तर..


1)  पति / पत्नी ....न


2)  भाई / बहन ....न


3)  प्रेमी / दोस्त ... जी नहीं..


याद  रखिये  एकमात्र आपकी ‘चप्पल’ ही हर जगह आपका साथ देगी…....!!..


RIGHT...!!


हर बार emotional होने की जरूरत नही...


कभी Practically भी सोंचा करिये ..!!


😂😂😂😂😂


6


प्राइमरी क्लास में मास्टर साहब गणित सिखा रहे थे...

.

.

मास्टर साहब – “ बेटा, मान लो मैंने तुम्हें 10 लड्डू दिए ..!! ”

.

.

पप्पू – “ क्यों मान लूँ … आपने तो मुझे एक भी नहीं दिया ..? ”

.

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मास्टर साहब – “अरे मान ले न ..! मानने में तेरे बाप का क्या जाता है ..? ”

.

.

पप्पू – “ ठीक है .. ”

.

.

मास्टर साहब – “ हाँ, तो उसमें से 5 तुमने मुझे वापस दे दिये … तो बताओ तुम्हारे पास कितने लड्डू बचे..? ”

.

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पप्पू – “ 20 ...!!”

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मास्टर साहब – “ कैसे ..? ”

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पप्पू – “ मान लीजिए ना ..मानने में आपके बाप का क्या जाता है.."


😠😝😝😝😳

7

पत्नी -” सुनो जी, मैंने नए डिटर्जेन्ट से अपना नया सूट धोया और वो छोटा हो गया। अब क्या करूँ ? ”

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पति—” उसी डिटर्जेन्ट से नहा भी ले….फिट आ जाएगा। ”


😜😝😝😝😝


8


देश के युवाओं के लिए एक आवश्यक संदेश....!!


"अगर आप देश बदलना चाहते हो तो अभी बदल डालो,"


"क्योंकि ”


अगरआपकी  शादी हो गईं तो आप देश तो क्या..


"टीवी का चेनल भी नहीं बदल पाओगे "


😜😜😂😂😂😂😂😂😂😭😂😂


-9

 शुक्र है कि जब हम स्कूल में पढ़ते थे 

तो वहाँ कोई एग्जिट पोल जैसा 

सिस्टम नही होता था.. ..!!


वर्ना घर वाले रिजल्ट आने से पहले 

एक बार और कूट देते ...


😢😂🤘😂😂😂😒😰😰😰😭😭



10

🍃राजस्थानी छात्र ने सारी फ़िज़िक्स को हिला डाला...🍂


टीचर: कौनसा लिक्विड और सॉलिड मिल कर गैस बनाते है..??


छात्र:  दाल-बाटी... !!!


😅😆😝😂😜🤓😎


11

 अब सब जोक्स   का " बाप".. 


 😁😁😁


वैक्यूम क्लीनर बेचने वाले सेल्समैन ने दरवाजा खटखटाया🚪

एक महिला ने दरवाजा खोला पर इससे पहले कि वो मुहँ खोलती...


सेल्समैन तेजी से घर में घुसा और *गोबर* का थैला घर के कारपेट पर खाली कर दिया...


सेल्समैन-"मैडम....

हमारी कम्पनी ने सबसे शानदार वैक्यूम क्लीनर बनाया है..."


अगर मैं अपने शक्तिशाली वैक्यूम क्लीनर से अगले 3 मिनट में इस गोबर को साफ नहीं कर पाया तो मैं इसे खुद *खा* जाऊँगा...  "


महिला-" क्या तुम इसके साथ चिली सास लेना पसन्द करोगे...?"


सेल्समैन-"क्यूँ मैडम ..??"


महिला-"क्यूँकि घर में *बिजली* नहीं आ रही है..  .!!"


😂😂😃😂😂😂


अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव 


आपका दिन शुभ हो...


(आज की प्रस्तुति समाप्त)👍💐


अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

बच्चो की टोली"


 




बच्चों की निकली है टोली।
सबकी लगती मीठी बोली।।
खेल खेलते बच्चे सारे।
सुंदर सुंदर प्यारे प्यारे।।

मैदानों में दौड़ लगाते।
आगे पीछे सभी भगाते।।
मस्ती करते मिलकर बच्चें।
सदा बोलते हैं वे सच्चे।।

बाग बग़ीचे घुमने जाते।
ताजा ताजा फल है खाते।।
सुबह सुबह सब दौड़ लगाते।
सब शरीर को स्वस्थ बनाते।।

खट्टी मीठी करते बातें।
साथ एक दूजे के खाते।।
पढ़ते लिखते शाला जाते।
गीत कहानी रोज सुनाते।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


वतन" (कुकुभ छंद) महेन्द्र सिंह देवांगन की रचना

 


सर में कफन बाँधकर हमको, इसकी रक्षा करना है।
इसके खातिर जीना है अब, इसके खातिर मरना है।।

चाहे कुछ हो जाये अब तो, पीछे कभी न हटना है।
कोई दुश्मन आ ना पाये, सीमा पर ही डटना है ।।

कोई दुश्मन आँख दिखाये, आँख फोड़ हम डालेंगे।
आकर देखो सीमा पर तुम, कूट कूट कर मारेंगे ।।

वतन हमारी मातृभूमि है, इसकी सेवा करते हैं ।
आँच न आने देंगे इस पर, इसके खातिर मरते हैं ।।

वतन हमारा सबसे प्यारा,  बाजी सभी लगायेंगे ।
माटी का जीवन है प्यारे, माटी में मिल जायेंगे ।।





महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

लड्डुओं की बारिश बालकथा उपासना बेहार

 



उत्तराखंड के रामगढ़ गाँव में बानी रहती थी उसका घर पहाड़ की चोटी पर था. उसकी माँ स्वादिष्ट मिठाइयाँ बनाती थी. एक दिन उसकी माँ ने लड्डू बनाये और फिर उन्हें एक गोल डब्बे में अच्छी तरह से बंद करके रखा तभी लड्डुओं से भरा ये डिब्बा उनके हाथ से फिसल कर गिर गया  और लुढ़कने लगा. लुढ़कते हुये वो घर के खुले दरवाजे से बाहर की ओर चला गया. माँ लड्डुओं से भरे डिब्बे के पीछे दौड़ी. डिब्बा तो तेजी से पहाड़ी से नीचे की तरफ लुढ़कने लगा. माँ चिल्लाने लगी “अरे मेरा लड्डुओं से भरा डिब्बा लुढ़का रे, कोई उसे पकड़ो रे.” 

तभी बानी के पापा आये, उन्होंने भी डिब्बा लुढ़कते देखा. माँ फिर से चिल्लाने लगी “अरे मेरा लड्डुओं से भरा डिब्बा लुढ़का रे,कोई उसे पकड़ो रे.” पापा भी डिब्बे को पकड़ने के लिए भागने लगे. तभी माँ को बेटा आता दिखाई दिया, माँ जोर से बोली “ अरे लड्डुओं से भरा डिब्बा लुढ़का रे, बेटा उसे पकड़ो रे.” ढलान होने के कारण डिब्बा पहाड़ से नीचे की तरफ तेजी से लुढ़कने लगा. भाई भी डिब्बे के पीछे भागा. अब आगे डिब्बा लुढ़क रहा था उसके पीछे माँ भाग रही थी, माँ के पीछे पापा भाग रहे थे, पापा के पीछे भाई भाग रहा था. माँ चिल्लाये जा रही थी “अरे मेरा लड्डुओं से भरा डिब्बा लुढ़का रे,कोई उसे पकड़ो रे.” डिब्बा था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था और इतनी तेजी से लुढ़क रहा था कि सरपट भागता हुआ घोड़ा भी पीछे रह जाए. 

इतने में गावं के मुखिया दिख गए, उन्हें देखते ही माँ जोर से बोली “मुखिया जी,मुखिया जी मेरा लड्डुओं से भरा डिब्बा लुढ़का रे, कोई उसे पकड़ो रे.” मुखिया ने देखा बड़ा सा डिब्बा लुढ़क रहा है. डिब्बा के अंदर के स्वादिष्ट लड्डुओं की कल्पना करके ही उनके मुहँ में पानी आ गया और वो भी डिब्बा को रोकने के लिए दौड़ पड़े. अब आगे आगे डिब्बा उसके पीछे माँ, माँ के पीछे पापा,पापा के पीछे भाई, भाई के पीछे मुखिया जी भाग रहे थे. 

माँ ने देखा सामने से बानी आ रही है. माँ ने उसे जोर से आवाज लगाई “बानी लडडुओं से भरा डब्बा लुढ़का रे,तू उसे पकड़ रे.” बानी ने देखा डिब्बा तेजी से उसकी तरफ लुढ़कता हुआ आ रहा है, वो डिब्बे को पकड़ने के लिए रोड़ के बीच में खड़ी हो गयी. तभी रास्ते में एक बड़ा पत्थर आ गया. तेजी से लुढ़कता हुआ डब्बा जोर से उस पत्थर से टकराया और ऊपर की तरफ उछला. हवा में डिब्बा खुल गया. सारे लड्डू नीचे की और गिरने लगे. पहाड़ी के नीचे की तरफ कुछ लोग खड़े थे कि अचानक उनके ऊपर लड्डुओं की बारिश होने लगी. लोगों ने झटपट सारे लड्डुओं को कैच किया, वे सभी अचंभित हो गए कि आखिर ये लड्डुओं की बारिश कैसे हो रही है तभी उन्होंने देखा कि कई सारे लोग दौड़ते हुये उन्ही की तरफ आ रहे हैं. माँ ने देखा सभी के हाथों में लड्डू है. माँ ने सभी को लड्डुओं की बारिश का कारण बताया फिर सभी ने मिल कर कैच किये हुये मजे से लड्डू खाए


उपासना बेहार

भोपाल

मध्य प्रदेश

ई मेल – upasanabehar@gmail.com 


Yashasvi Rawat ,studyhall school , lucknow

 



Black and white,


There are two sides.


No matter which one you choose, 


There's always going to be a tough fight.  


                                 Queen, rook, bishop  knight, king and pawn,  


              

Both sides have these players 



But only one gets the crown     


 

It's like a battlefield,


 No one can guess   


 Who is going to lose,


 And who is going to win..    


             

Yet we are truly excited..



Because it's the wonderful game called CHESS.


Yashasvi Rawat ,

Daughter  of Mrs  Abhilasha Choudhry  Rawat

& a student of class 8th   studyhall school , Lucknow