चले साइकिल लेकर दादू,
सौदा लेने को बाज़ार,
उछल - कूद गद्दी पर बैठे,
मारे उसमें पैडल चार।
खड़-खड़ करता पुर्जा-पुर्जा,
चेन उतर जाती हरबार,
चेन चढ़ाकर जैसे - तैसे,
होते चलने को तैयार।
हटो - हटो चिल्लाए दादू,
घंटी का था स्वर बेकार,
ब्रेक लगाया पूरे दम से,
थमी नहीं फिर भी रफ्तार।
टकराए जाकर रिक्शा से,
टूट गईं तीली दो - चार,
सॉरी कहकर पिंड छुड़ाया,
झगड़े में क्या रक्खा यार।
राम नाम लेकर दादा जी,
ज्यों ही होने लगे सवार,
गद्दी गिरी दूर जा करके,
हुए बैठने से लाचार।
ढुलमुल हुआ हैंडिल सारा,
निकल गया टायर का तार,
बिना हवा के आगे बढ़ना,
कितना होता है दुश्वार।
भूल गए सब सौदा लाना,
भूले सब्ज़ी और अचार,
चले साइकिल लेकर पैदल,
कोस रहे खुद को सौ बार।
दादू आप कभी मत जाना,
हमें छोड़कर यूं बाज़ार,
हाथ जोड़ करते हैं विनती,
हम सब बच्चे बारंबार।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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