बूढ़ी अम्मा भाड़ में गरमागरम चने भून रही थी।कोई एक रुपया,कोई आठ आने, कोई चार आने के चने लेता तो कोई बिना पैसे दिये ही दो-चार चने मुंह में डालकर चलता बनता।
दोपहर तक बामुश्किल तमाम दस रुपए ही इकठे हो पाते।बूढ़ी अम्मा सोचती कि ऐसे दस रुपल्ली का क्या लाभ, जिसमें एक वक्त का आटा-दाल भी न मिल सके।कम से कम पचास-सौ रुपए तो हों।
बूढ़ी अम्मा इसी उधेड़बुन में व्यस्त थी।तभी अचानक उसने देखा कि एक युवक घोड़े से उतरकर इधर-उधर देख रहा है।उसके शरीर के वस्त्राभूषण बता रहे थे कि वह किसी देश का राजकुमार है।
बूढ़ी अम्मा ने पूछा बेटा तुम्हें किसकी तलाश है।तुम कहाँ से आए हो और कहां जाओगे।अगर तुम्हें भूख लगी हो तो मेरे पास ताज़ा भुने चने हैं जिन्हें खाकर तुम अपनी भूख शांत कर सकते हो।
युवक ने कहा नहीं-नहीं अम्मा ऐसी बात नहीं।मुझे भूख-वूख नहीं लगी है।मैं तो केवल यह देखकर घोड़े से उतर गया कि तुम सारे दिन आग के सामने बैठकर चने भूनती हो, क्या इसकी कमाई से तुम्हारा काम चल जाता है।
बूढ़ी अम्मा ने कहा बेटा- कुछ नहीं से तो अच्छा ही है।
दो रोटी का सहारा हो जाता है।अगर यह भी नहीं करूंगी तो भूखी ही मर जाऊंगी।
बेटा इन चनों के सहारे ही तो मैं किसी की अम्मा,किसी की दादी,किसी की नानी जैसे शब्दों से जुड़ी रहती हूँ।मुझे और क्या चाहिए।वैसे भी मुझे खाली बैठना अच्छा नहीं लगता।मैं अकेली जान जोडूं भी तो किसके लिए।
युवक बूढ़ी अम्मा की संतुष्टि देखकर हैरान रह गया।उसने सोचा हम तो राजमहल में रहते हैं,सोने चांदी के बर्तनों में खाना खाते हैं,नौकर-चाकरों से घिरे रहकर एक तिनका तक तोड़ना भी अपना अपमान समझते हैं।फिर भी इतनी शांति नहीं मिल पाती,जितनी इस बूढ़ी अम्मा को हर समय मिलती है।
उस युवक ने बूढ़ी अम्मा को बोला अम्मा अगर में आपके सारे के सारे चने खरीद लूँ तो,,,,,,बूढ़ी अम्मा ने कहा बेटा इससे बढ़िया क्या होगा।
राजकुमार युवक सारे चने खरीदकर घोड़े की पीठ पर लाद ही रहा था तभी बूढ़ी अम्मा ने उसे थोड़ा गुड़ देते हुए कहा बेटा इसके साथ चने खाने का स्वाद ही कुछ और है।युवक खूब सारी रकम बूढ़ी अम्मा को देकर घर की राह हो लिया।
बीच राह में अचानक भयंकर आंधी तूफान आ जाने से युवक घबरा गया और घोड़े को एक तरफ रोक कर खड़ा हो गया।तेज़ तूफान में उसे अपने घर का रास्ता भी नहीं सुझाई पड़ रहा था।ऊपर से जोरों की भूख भी बेहाल कर रही थी।
तभी युवक एक स्थान पर बैठकर बूढ़ी अम्मा से खरीदे चने खाने लगा।गुड़ के साथ तो उनका आनंद दोगुना हो गया।गुड़-चना खाकर उसकी जान में जान आई।उसने बूढ़ी अम्मा को बार-बार याद करके उसके गुड़-चने की भूरि-भूरि प्रशंसा की और अम्मा से मिलवाने के लिए ईश्वर को बारंबार धन्यवाद दिया।
अब उस युवक की समझ में आया कि समय परिवर्तनशील है।आज अच्छा है तो कल बुरा भी हो सकता है।अतः हमें समय का सम्मान करना ही चाहिए।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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