शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

बकरी के बच्चे! : बाल रचना- वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी की रचना

 



एक दिवस बकरी के बच्चे,

घूम  रहे  थे   सभी   इकट्ठे,

एक सियार उधर से गुजरा,

देख रह  गए  हक्के-बक्के।


बोले,अब हम घर चलते  हैं,

माता से  जाकर  मिलते  हैं,

उस सियार ने देखा  हमको,

जिसे न हम अच्छे लगते हैं।


झट  बच्चों  ने  दौड़  लगाई,

जल्दी से  किवाड़ खुलवाई,

हांफ   रहे   थे   सारे   बच्चे,

देख  उन्हें   बकरी   घबराई।


बोली  बच्चो  मत  घबराओ,

सच्ची-सच्ची  बात  बताओ,

बोले  बच्चे मम्मी  अब  तुम,

उस सियारको मार भगाओ।


अंदर रहो  कहीं मत  जाओ,

घर में  रहकर  खेलो-खाओ,

जब भी दुष्ट  इधर आ  जाए,

सारे मिलकर  शोर मचाओ।


जब मैं,  हूँ तो क्यों डरते हो,

अपना दिल  छोटा करते हो,

मेरे  सींघों   की  ताकत  पर,

नहीं  भरोसा  तुम करते  हो।


दांत  तोड़  दूँगी  मैं   उसका,

पेट  फाड़  दूँगी   मैं  उसका,

सच कहती  हूँ यहीं मारकर,

जिस्म गाढ़  दूँगी  मैं उसका।


खुशी-खुशी नाचे सब  बच्चे,

तन के कोमल मन के  सच्चे,

मां से बढ़कर कौन  धरा पर,

डरते   उससे   अच्छे-अच्छे।

       


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            मुरादाबाद/उ.प्र.

            9719275453

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