गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

चल रे मेरी गाडी चल. ( लखनऊ पर एक बालगीत ) शरद कुमार श्रीवास्तव

 



चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर है बागों की नगरी


बागों की नगरी नवाबों की नगरी


लालबाग, यहां सुन्दर बाग है


डाली बाग, यहां आलम बाग है


चार् बाग, वहीं बादशाह बाग है


गूंगे नवाब, यहाँ लजीज कबाब हैं


दूर से ही मुँह मे आयेगा जल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


पहले  तू चल ऐयर्-पोर्ट अमौसी


मसकट से आयेगीं पीहू की मौसी


मौसी जी आयेगीं मौसा भी आयेंगे


चीकू भैया और आशी  भी आयेगी


बेबी  के लिये, खेलौने भी लायेगीं


सब को लेकर घर आना निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर बडे  शराफत की नगरी


रस्मों- रिवाजो के विरासत की नगरी


नजाकत कि नगरी नफासत की नगरी


पहलेआप- आप मे ट्रेन जाए न निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


गावों मे खास हो या आम हो शहरी


सबकी पसन्द यहाँ का आम दशहरी


आमो का राजा यहीँ का आम दशहरी


बराबर नहीं इसके और कोई भी फल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


 शरद कुमार श्रीवास्तव

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