नव वर्ष आगंतुक का कर स्वागत बाहें फैला
गत वर्ष के गिलेशिकवे से न रखना कोई सिला।
कल तो हो गया स्वप्न, नव कल को कर शीश नमन
उम्मीदों-विश्वास,उल्लास-उमंग से चल भर ले दामन।
संयम,संकल्प और नव विचार का कर समर्पण
तिमिर चीरता नव प्रभात से सजा ले धरती-गगन।
पल पल गुज़रते लम्हों में, खोज ले मुस्कुराता जीवन
गीत संगीत से सजाकर, ले जीवन का भरपूर आनंद।
सुख-दुःख से परे मधुरिम रस भरता चल आजीवन
चहकता महकता उपवन से सजता रहे जीवन प्रांगण।
🙏😊🙏
* अर्चना सिंह जया,
गाजियाबाद।
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