शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना रेन कुटी

 



         सुबह -सुबह चिड़िया चिल्लाई,
         इसे काटते क्यों हो भाई?
         पेड़ हमारे स्थाई घर,
         यहीं सदा मैं रहती आई|

         इसी पेड़ पर बरसों पहले,
         एक चिड़े से हुई सगाई|
         तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर,
         मैंने दुनियाँ एक सजाई|

         इसी पेड़ की किसी खोह में,
         अंडे बहुत दिये हैं मैंने|
         पाल पोसकर बड़े किये हैं,
         चूजे मैंने यहीं सलोनें|

         यहीं ठंड काटी है मैंनें,
         बिना रजाई या कंबल के|
         यहीं ग्रीष्म में कूदे हैं हम,
         इन डालों पर उछल उछल के|
    
        अगर पेड़ काटोगे तो हम,
        बेघर होकर कहाँ रहेंगे|
        डालों की थिरकन पर पत्तॊं ,
        की कब्बाली कहाँ सुनेंगे|

        अरे लकड़हारे वापस जा,
        दाल यहाँ पर नहीं गलेगी|
        आज हमारी 'रेन कुटी' पर,
        क्रूर कुल्हाड़ी नहीं चलेगी|





        


   

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

12 शिवम सुन्दरम  नगर         

 छिंदवाड़ा म प्र

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