सुबह -सुबह चिड़िया चिल्लाई,
इसे काटते क्यों हो भाई?
पेड़ हमारे स्थाई घर,
यहीं सदा मैं रहती आई|
इसी पेड़ पर बरसों पहले,
एक चिड़े से हुई सगाई|
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर,
मैंने दुनियाँ एक सजाई|
इसी पेड़ की किसी खोह में,
अंडे बहुत दिये हैं मैंने|
पाल पोसकर बड़े किये हैं,
चूजे मैंने यहीं सलोनें|
यहीं ठंड काटी है मैंनें,
बिना रजाई या कंबल के|
यहीं ग्रीष्म में कूदे हैं हम,
इन डालों पर उछल उछल के|
अगर पेड़ काटोगे तो हम,
बेघर होकर कहाँ रहेंगे|
डालों की थिरकन पर पत्तॊं ,
की कब्बाली कहाँ सुनेंगे|
अरे लकड़हारे वापस जा,
दाल यहाँ पर नहीं गलेगी|
आज हमारी 'रेन कुटी' पर,
क्रूर कुल्हाड़ी नहीं चलेगी|
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
12 शिवम सुन्दरम नगर
छिंदवाड़ा म प्र
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