गुरुवार, 26 मई 2022

खुशखबरी प्रिया देवांगन "प्रियू" की बालकथा :




            जंगल में गरमी बढ़ जाने के कारण सारे पशु-पक्षी बहुत परेशान हो रहे थे। दूर-दूर तक पानी का कोई साधन नहीं था। धरती सूखी पड़ने लगी थी। यदि वे जंगल से बाहर जाते तो शिकारी उनका शिकार कर लेते; इसका हमेशा भय रहता था। इस वजह से सभी बहुत परेशान हो रहे थे। एक दिन मिन्नी गौरैया को बहुत प्यास लग रही थी। वह सीनू तोते से बोला-"सीनू भैया, चलो न जंगल से बाहर। मुझे बहुत प्यास लगी है। मेरे मम्मी-पापा ने मुझे अकेले बाहर जाने के लिये मना किया हैं कि यहाँ शिकारी आता है; नहीं जाना है।" फिर भी सीनू तोता और मिन्नी गौरैया का मन जंगल से बाहर जाने को हुआ। जंगल के बाहर चले ही गये। 

            जंगल में शिकारी झाड़ियों में छिप कर बैठा था। सोच रहा था कि कोई आये तो उसे अपना निशाना बनाऊँ। मौका मिलते ही शिकारी ने मिन्नी गौरेये व सीनू तोते पर हमला कर दिया। दोनों घायल हो गए। देखते ही देखते बेहोश हो गए। शिकारी उन्हें पकड़ पाता, इससे पहले टिन्नू भालू वहाँ गुर्राते हुए आया। शिकारी जैसे-तैसे छुपते-छुपाते वहाँ से भाग गया। मिन्नी गौरेया और सीनू तोते को तड़पते देख टिन्नू भालू ने आवाज लगाई- "कोई है...... अरे कोई है...! जल्दी आओ। दौड़ो...दौड़ो....।" टिन्नू भालू भी स्वयं भूख व प्यास के कारण कमजोरी महसूस कर रहा था। मोंटू हाथी और बिन्नू जिराफ बातें करते हुए जंगल के बाहर ही आ रहे थे।

              तभी उन्हें टिन्नू भालू की आवाज सुनाई दी। पहले तो दोनों घबरा गए। फिर बिन्नू जिराफ बोला - "अरे ! यह तो टिन्नू जी की आवाज है। चलो देखते हैं।" पास आते ही देखा कि मिन्नी गौरैया और सीनू तोता बेहोश पड़े हैं। बिन्नू जिराफ और टिन्नू भालू से मोंटू हाथी ने कहा - "तुम दोनों इन्हें जंगल के अंदर ले जाओ। मैं तुरंत पानी का इन्तजाम करता हूँ।" जैसे-तैसे दोनों मिन्नी गौरैया और सीनू तोता को अंदर ले गए। तभी सारे जानवर वहाँ इकट्ठे हो गए । मिन्नी गौरैया व सीनू तोता के मम्मी-पापा जोर-जोर से रोने लगे- "सीनू बेटा ! गौरेया बेटा ! उठो ना। क्या हुआ है हमारे बच्चों को ?" तभी मोंटू हाथी ने अपने सूँड में पानी भर कर लाया और मिन्नी गौरैया और सीनू तोता के मुँह में डाला । फिर उन्हें जब होश आया तो वे "मम्मी... पापा कहते हुए..." अपने-अपने मम्मी-पापा के सीने से लग गए। सीनू तोता और मिन्नी गौरैया ने सबको आपबीती सुनाई।               

               फिर सभी जानवर ने मिलकर एक तरकीब सोची कि रोज-रोज कोई न कोई हमारे जंगल से गायब होता जा रहा है। पानी की तलाश में हरेक को बाहर जाना ही पड़ता है। मगर उनमें से किसी न किसी पशु-पक्षी का आखिरी दिन होता है। इसके संबंध में राजा शेरसिंह से तो बात करनी ही पड़ेगी।" मोंटू हाथी की बात पर सबने हाँ में हाँ मिलायी। सभी एक साथ राजा शेरसिंह के गुफा के बाहर इकट्ठे हो गये। 

              राजा शेरसिंह दहाड़ते हुए गुफा से बाहर निकले। देखा- "अरे ! क्या बात है ? यहाँ जंगल के सभी सदस्य एक साथ !" टिन्नू भालू और मोंटू हाथी ने पूरी बात राजा शेर को बतायी। तभी मिन्नी गौरैया और सीनू तोता के माता-पिता ने भी रोते-रोते अपनी बात रखी। फिर शेरसिंह ने कहा - "तो बताओ क्या करना चाहिए कि हमें प्यास लगने पर बाहर नहीं जाना पड़े।" मिन्नी के मम्मी-पापा बोले - " महाराज ! क्यों न हम जंगल में ही छोटा सा तालाब बना ले ताकि हमें बाहर जाना न पड़े।" राजा शेरसिंह हँसते हुए बोला - "गौरेये ! तुम दोनों तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे तालाब बनाना बहुत ही आसान काम है। इस तरह का काम बड़ी मुश्किल से होता है।" सब शांत हो गए। थोड़ी देर बाद मोंटू हाथी बोला - "क्यों नहीं बना पाएँगे ? अगर हम सभी थोड़ी-थोड़ी मेहनत करके गड्ढे रोज करेंगे तो यह काम हो जाएगा।"  

              "हाँ महाराज ... हाँ महाराज....! मोंटू दादा बिल्कुल सही कह रहे हैं।" सबने एक ही बात कही।

             दरअसल शेरसिंह थोड़ा आलसी, मतलबी और खड़ूस था। उसे सिर्फ अपने भोजन से ही मतलब रहता था।" शेर गुर्राते हुए बोला- " सभी शांत हो जाएँ। चलो मैं भी देखता हूँ ; तुम सब कैसे बनाते हो तालाब ? तुम पक्षी तो मेरे चटनी के बराबर भी नहीं हो तालाब क्या बनाओगे ?" कुछ क्षण बाद शेरसिंह सर ऊपर उठाते हुए कहा कि ठीक है, अगर तुम सब मिलकर जंगल में तालाब का निर्माण कर लेते हो तो मैं सभी को एक खुशखबरी सुनाऊँगा। वह तुम सब के लिए एक नई सौगात होगी।"


               दूसरे दिन से सभी जानवरों ने मिलकर जंगल में गड्ढे खोदना प्रारम्भ कर दिया। आखिरकार एक छोटा सा तालाब बन ही गया। सभी ने एक-दूसरे से गले मिलते हुए कहा- "हमारी मेहनत रंग लाई। चलो... चल कर राजा शेरसिंह को बताते हैं।" 


               सभी राजा शेरसिंह के पास गये। बोले- " हे राजन ! तालाब तैयार हो चुका है। आप चल कर देख सकते हैं।" राजा शेरसिंह बोले- "ये क्या मजाक है ? अभी तो सप्ताह भर भी नहीं हुआ है; और कहते हो कि तालाब बन गया।" 


              भालू बोला- "महाराज ! आप चलकर देखिए तो सही...... ।" 


           राजा शेरसिंह ने जाकर देखा कि सचमुच एक तालाब बन गया था, जिसमें लबालब पानी भरा हुआ था। शेरसिंह हैरानी से सभी को देखते हुए बोले- " फिर भी मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह तालाब तुम सबने बनाया है।" गौरेया बोली - "महाराज ! अगर मन में आत्मविश्वास, लगन और मेहनत का भाव हो, तो जमीन से क्या, पत्थर से भी पानी निकाला जा सकता है। हमें किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। हम तो क्या, इस काम में चींटियों ने ही सबसे ज्यादा हमारी सहायता की है। हम सभी चींटियों के सदा आभारी रहेंगे।" सभी जानवर और पक्षियों ने चीटिंयों के सामने अपना सिर झुका लिया। नन्हीं चींटियों के आँखों से आँसू बहने लगे। वे बोले कि यह तो हमारा फर्ज है। सबको सबकी मुसीबत में काम आना ही चाहिए। हम अपनों की मदद नहीं करेंगे तो किसकी मदद करेंगे।" 


               शेरसिंह सभी की बातें सुनकर शांत हो गये। कुछ देर बाद बोले - "मैं यह घोषणा करता हूँ कि आज से जंगल के बाहर कोई नहीं जाएगा; और मैं तुम सबको एक खुशखबरी सुनाने जा रहा हूँ कि इस जंगल के पशु-पक्षियों का मैं कभी शिकार नहीं करूँगा। हम सभी एक साथ एक परिवार की तरह रहेंगे। जो भी शिकारी जंगल के अंदर आएगा, उसका हम सब डटकर सामना करेंगें।" सभी ने खुश होकर तालियाँ बजाई।




           


    


प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com



"दान रचना प्रिया देवांगन प्रियू



आओ सभी हम साथ में, आगे बढायें हाथ जी।
कर ले जरा सा दान जी, दे दे सभी का साथ जी।।
भूखे खड़े बच्चें यहाँ, रोटी नसीब न होत है।
वो रात भर है जागते, आँसू बहाकर रोत है।।

आये यहाँ संसार में, थोड़ा कमा लो पुण्य जी।
जाना सभी को एक दिन, होना सभी को शून्य जी।।
संस्कार है यह प्यार है, खोना नहीं ये धर्म को।
जागो उठो आगे बढ़ो, छोड़ो नहीं ये कर्म को।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

सुन्दर सवेरा : अंजली श्रीवास्तव








रात की चादर छोड़ कर नन्हा सूरज जैसे उठ भागा,

अपना मुख धोने को झट से उसने नदिया में झाँका,

देख कर सुन्दर मुखड़ा अपना, थोड़ा सा शरमाया, 

फिर ले कर एक अंगड़ाई, वह आकाश में चढ़ आया।

देख के उसको  चिड़िया, कौवे उड़ गए नीड़ छोड़ कर, 

वृक्ष, लताएँ ताक रही हैं उसको, घूंघट उठा-उठा कर, 

सूरज के आने से नभ का आँगन हो गया शोभित, 

जनजीवन चल निकला, जब अंधकार हुआ तिरोहित।


अंजली श्रीवास्तव

बन्दर मामा की शादी

 


बन्दर मामा पहन सूट वे निकले ले बारात
बैन्ड- बाजा, हाथी घोड़ा, सब थे उनके साथ
सभी बराती नाचते गाते बहुत हो गई थी रात
दूल्हन के घर जा पहुँचे मामा लेकर बारात

दूल्हन देख मामा ललचाए खम्बा देख न पाय
अपने बूट मे फँसे बिचारे गिरे वहीं छितराय
दूल्हन ने जब देखा मामा को गई जरा चकराय
गालो मे पालिश ,कमर मे टाई, शादी कौन रचाय 

शरद कुमार श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 6 मई 2022

वैशाख नन्दन : बालकथा शरद कुमार श्रीवास्तव

 



सब विषयों मे अपने को पास हुआ देखकर रवि की खुशी की सीमा नहीं है ।  मम्मी न जाने उससे क्यूं रोज कहती थीं कि तू दिन भर स्थिर  होकर  पढ़ाई लिखाई  नहीं करता है इधर-उधर  चकर -मकर करता रहता है कैसे पास होगा ।  रवि लेकिन  जानता था कि वह  रोज का रोज होमवर्क  कर लेता है इसीलिए  वह निश्चिन्त  रहता था ।   रोहित  भैया  कहते हैं पढाई  तो सभी करते हैं , स्कूल  की पढ़ाई  लिखाई  के अलावा खुद से अतिरिक्त  पढ़ाई भी करना चाहिए।   लेकिन रवि  को तो  परम संतोष का मंत्र  प्राप्त  है अतः इस  परीक्षाफल से भी वह बहुत  खुश  है।  

 बैशाख का महीना था  रवि और उसके रोहित  भैया कहीं जा रहे थे ।  उन्हे रास्ते मे  एक  गधा मिला जो बहुत  खुश  दिखाई  पड़ रहा था।  वह अपनी प्रसन्नता  रेंक रेंक कर प्रदर्शित  कर  रहा था ।   रवि ने रोहित  से पूछा कि भैया यह  शोर क्यों कर रहा है?   रोहित  ने कहा वह अपनी खुशी जाहिर  कर  रहा है।   बसन्त  ऋतु मे घास की अधिकता के सापेक्ष  बैशाख  मे घास कम हो गई  है ।   गधे को लगता है कि उसने बहुत सी घास  खा ली है अतः वह बहुत  खुश  है ।    गधे की इसी संतुष्टि के लिए  इसको बैशाख नन्दन  भी कहते है ।  जैसे तुम !    सब विषयों मे पास कर लेने पर बहुत  संतुष्ट  हो ,  आगे बढ़कर  तुम  और अच्छा प्रदर्शन कर और अच्छा परीक्षाफल  नही प्राप्त करना चाहते हो।  जीवन  का हर पल एक प्रतियोगिता है और उसमे निरंतर आगे निकलने के लिये हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए, अन्यथा बैशाख नन्दन  बन जाओगे।।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

"सब्जी वाली" रचना प्रिया देवांगन प्रियू




सड़क किनारे बैठी माँ जी, सब्जी बेचा करती है।
मिल जाता है कुछ पैसे तो, उदर उसी से भरती है।।

बोझ नहीं मैं अपने घर में, ये सब को बतलाती है।
ताजी ताजी सब्जी ला के, माँ जी खुश हो जाती है।।

देख गरीबी हालत इनकी, नहीं कभी ठुकराना जी।
सही भाव में देती सब को, पीछे नहिँ तुम जाना जी।।

साथ रखी है नींबू बैंगन, हाथ जोड़ करती विनती।
जरा बोहनी कर दो भैया, मानव की करती गिनती।।

कड़ी धूप में बैठी बैठी, खूब पसीना बहती है।
आते-जाते लोगों को वह, क्या दूँ बहना कहती है।।

मैले कपड़े देख किसी के, दूर कभी नहिँ जाना जी।
एक सहारा दे कर तुम भी, जीवन खुशियाँ लाना जी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

*चलती रहे जिंदगी* रचना कृष्ण कुमार वर्मा




*सरला नाम की एक महिला थी। रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे। दिन भर पति भी ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था। पत्नी सरला भी एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी। ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है। शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं। नतीजतन थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है।बच्चे विद्रोही हो चले हैं। किसी प्रकार  खींचतान  मे उनका जीवन  चल रहा था।


*एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है। उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया।*


*प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया...। इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।*


*काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई।*


 *प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया। प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया,मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।*


*सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ। चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता।सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है।*

 *इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं।प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ।उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...!*

*यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है।सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर की दहलीज पार करने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ।*

    🙏 *स्नेह वंदन* 🙏



कृष्ण कुमार वर्मा