बहुत गरमी पड़ रही थी । पशुपक्षी पानी और छाया की तलाश मे बदहवास और बदहाल हो चले थे । नन्हा कबूतर अपने घोसले मे अपनी माँ का इंतजार कर रहा था। उसकी मम्मी उसे नहीं दिखाई दे रही थी। इसलिए कबूतर के बच्चे ने सोंचा कि मै थोड़ा बाहर निकल कर देखूं कि कहाँ क्या हो रहा है और उसकी मां कहाँ रह गई है।
नन्हे कबूतर के बच्चे ने जैसे ही अपने घोसले से पैर बाहर निकाला वह नन्ही चुनमुन की बालकनी के छज्जे पर आकर गिर पड़ा । नन्ही चुनमुन उस समय अपनी बालकनी के पौधों मे पानी डाल रही थी । उसके कानो मे कबूतर के उस बच्चे की चूँ चूँ की आवाज सुनाई पड़ी ।
नन्ही चुनमुन ने कौतुहल वश उस कबूतर के बच्चे से पूछा तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो और यहाँ पर आये कैसे ? नन्ही चुनमुन ने उससे पूछा तुम्हारे मम्मी पापा कहाँ हैं । कबूतर का बच्चा चूँ चूँ कर नन्ही चुनमुन को समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह भी अपनी मम्मी की तलाश मे अपने घोंसले से बाहर निकला ही था कि वह ऊपर से नीचे लुढ़क कर तुम्हारी बालकनी मे आ गिरा ।
यद्यपि नन्ही चुनमुन को चूँ चूँ की महीन आवाज सुनाई नहीं दे रही थी पर उसके इशारे से समझ गई थी कि कबूतर के उस बच्चे का घर नन्ही चुनमुन की बालकनी के ऊपर बने घोंसले मे है । नन्ही चुनमुन अपनी मम्मी को बुला लाई और उनकी मदद से चुनमुन ने कबूतर के उस बच्चे को उसे घोंसले के बाहर पंहुचा दिया । कबूतर के बच्चे ने नन्ही चुनमुन को चूँ चूँ कर धन्यवाद दिया।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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