रोये जनता रोज जी, कौन लगाये पार।
जिसको जितना मानते, निकले भ्रष्टाचार।।
निकले भ्रष्टाचार, दिखे वो सीधा सादा।
फैलाते हैं हाथ, यहाँ भी कर के वादा।।
माथा पकड़े आज, मुनाफा कैसे होये।।
नेता का है राज, देश में जनता रोये।।
बैठे दफ्तर में यहाँ, कुर्सी का है खेल।
रौब दिखाते घूमते, अंदर झेल झमेल।।
अंदर झेल झमेल, दिखावा करते सारे।
लूटे जनता रोज, तनिक ये होय किनारे।।
गिन गिन हर दिन नोट, देख कर ऐसे ऐंठे।
जीवन का आधार, सदा दफ्तर में बैठे।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
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