सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

//बसंती रंग //प्रिया देवांगन "प्रियू" की छत्तीसगढी कविता



लगे हे मौर आमा मा, बसंती रंग निक भाथे।
सुनाथे कोयली कुहकी, धरा मधुमास हा आथे।।
बइठ के डार मा भौंरा, करे रसपान फुलवा के।
मगन हो नाचथे तितली, अगासा रंग बगराथे।।

पपीहा तान जब छेड़ै, मिलन बर नैन हर तरसै।
पिया आही इहाँ जोही, अहा! बड़ मोर मन  हरसै।।
दिखाये रात दिन सपना, घुमाहूंँ संग मा तोला।
नहीं संदेश हर आये, विरह के नीर हा बरसै।।

गहूंँ हर झूमथे सुग्घर, दिखे जस सोन के बाली।
हँसे ये मेड़ के परसा, फुले हे रंग ये लाली।।
मटर अरसी चना सरसों, धरा शोभा बढ़ाथे जी।
गिरे ये फूल परसा के, सजाथे फाग के थाली।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


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