टिल्लू मेढ़क ने तालाब से बाहर आ कर देखा। भीषण गर्मी के महीने मे बादल दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहे है। तालाब भी लगातार सूख ही रहा है । टिल्लू ने सोचा कि लगता है इस गर्मी मे खानापानी की व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना पड़ेगा । यह सोचकर टिल्लू तालाब के मेड़ पर लगे हुए विशाल पीपल के पेड़ की जडों के नीचे बिल बनाकर रहने की सोचने लगा। यहाँ पर तालाब की नमी मे अभी तक इस गर्मी मे छोटे छोटे कीड़े मकोड़े भी भोजन के लिए उपलब्ध हैं और खुद के रहने की सुखद व्यवस्था भी यहाँ है
नम जमीन, पीपल की ठन्डी छांव मे उस मेढ़क को ए सी का आनन्द आ रहा था। मस्ती मे झूमते हुए उसने अपनी पुरानी मधुर धुन मे टर्र टो - टर्र टों गीत गाना शुरू कर दिया । यद्यपि मेघराजा तो दूर तक नही थे फिर भी टिल्लू जी के कर्णप्रिय सुर की आवाज तालाब के किनारे पीपल के पेड़ की छाँव मे मछली की टोह मे बैठे बगुलेे महाराज एकटक स्वामी जी के कानो मे पड़ी। उसने भी सोचा कि क्यों न मै भी टिल्लू मेढ़क की संगीत सभा मे शामिल हो जाऊँ । इधर टिल्लू जी की टर्र टो - टर्र टों और उधर एकटक स्वामी जी की क्वाॅक क्वाॅक । संगीत सभा का आनन्द पीपल के वृक्ष पर बैठे कौवे कालू जी भी ले रहे थे उन्होंने इन कंठों के साथ युगलबंदी शुरू कर दिया । इस संगीत मय वातावरण मे तालाब के पास से गुजर रहे एक सियार से नहीं रहा गया उसने भी हुक्की- हुआ, हुक्की- हुआ करना प्रारंभ कर दिया । इधर टर्र टों टर्र टों, क्वाॅक क्वाॅक और कालू जी का काँव काँव और उधर हुक्की हुआ हुक्की हुआ । पास से जा रही लोमड़ी को भी इस संगीत मंडली के साथ नाचने की इच्छा हुई वह ताल मिला कर छम-छम नाचने लग गई। भीषण गर्मी से परेशान भालू जी भी आ गए उन्होने काले मेघ को बुलाने के लिए मंजीरे पर पूरी भक्तिभाव से गाना शुरू कर दिया " काले मेघा पानी दे । काले मेघा पानी दे " । काफी दूर जा रहे बादलों को आखिरकार इन संगीतकारों पर दया आ गई और उन्होंने खूब पानी बरसाया ।
इसीलिए बच्चो कष्ट मे भी धैर्यपूर्वक खुश रहने से कष्ट के दिन भी निकल जाते है और खुशहाली लौट आती है।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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