छोटी बत्तख क्वाॅक सोच रही थी कि मम्मी जब जागेगीं तभी नाश्ता मिलेगा इसलिए तबतक तालाब की एक सैर करके आतो हूँ । माँ को बगैर जगाए दबे पांव वह सरोवर पहुंच गई। सरोवर मे उसे ब्लॉक फ्लाॅक नाम के दो दोस्त बत्तखें भी मिल गई । बस फिर क्या था तीनो मित्र बाते करते तैरते काफी दूर निकल गए। प्यारा मौसम था ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और इधर दोस्तो की लंबी बातें चल रही थीं । ब्लाॅक ने देखा कि पास मे टर्र टर्र नन्हे मेढक का घर है ब्लॉक ने क्वाॅक और फ्लाॅक को साथ लिया और टर्र टर्र के घर निकल गई। टर्र टर्र अपने घर पर ही था और अपनी मम्मी पापा के साथ ब्रेकफास्ट कर रहा था टर्र टर्र की मम्मी पापा ने बत्तखों के बच्चों का खूब स्वागत किया और कहा कि वे लोग भी साथ मे ब्रेकफास्ट करें । बत्तख के बच्चे भूखे बहुत थे परन्तु वे समझ नही पा रहे थे कैसे करे?
टर्र टर्र अपनी बहुत लम्बी और बाहर से अंदर की ओर मुड़ी , चिपचिपी जुबान को झटके के साथ बाहर की ओर निकालता है जिसमे कीड़ा उसकी चिपचिपी जुबान पर चिपक जाता है और फिर टर्र टर्र के मुँह में समा जाता है| लेकिन बत्तखों की जुबान ऐसी नहीं है बल्कि उनके तो लम्बी चोंच (बीक) है । उनका खाना भी वैसा नहीं है । उनका भोजन बिल्कुल अलग है जैसे धान के गिरे हुए अनाज, कीड़े, घोंघे, केंचुए, छोटी मछलियां और शैवाल जैसे जल पौधे इत्यादि।
इन बच्चों को भूख सताए जा रही थी पर मेढक का निमंत्रण स्वीकार नहीं कर पा रहे थे और शिष्टाचार वश आमंत्रण केलिए धन्यवाद कहकर जल्द अपने घर वापस लौट आए जहाँ उन की मम्मियाँ ब्रेकफास्ट पर उनका इंतजार कर रहीं थी
शरद कुमार श्रीवास्तव
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