तितली रानी बड़ी सयानी
फिर भी करती है नादानी
कोंपलो सी मुस्कुराती है
गुलशनों पर मंडराती है
बागबां की सदा आती है
झटपट से वह उड़ जाती है
साॅंखो ऊपर चढ़ जाती है
मधुर- मधुर नगमा गाती है
शहद को संकलित करती है
वाचा के ऊपर भरती है
टहनियों पर छुपा देती है
खुद ही रखवाली करती है
संकट की लहरें उठती है
एक दल में सभी रहती है
होले- होले आगे बढ़ती है
फिर मिलकर हमला करती है
वाचा = जिह्वा
निहाल सिंह
झुन्झुनू, राजस्थान
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