सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

/माँ काली//प्रिया देवांगन "प्रियू"

 







अजब रूप माँ कालिका, दिखती है विकराल।

टूट पड़े गर दैत्य पर, बन जाती है काल।।

एक हाथ खप्पर धरे, दूजे में तलवार।

क्रोध सहे ना कालिका, माने कभी न हार।।


ज्वाला सी क्रोधित सदा, बिखरे लंबे बाल।

लाल–लाल जिभिया रहे, मइया रूप विशाल।।

सच्चे मन से प्रार्थना, माता कर स्वीकार।

भक्त खड़े हैं द्वार पर, करते जय -जयकार।।


मुख निकले आवाज जी, गूँज उठे संसार।

असुरों का वो रक्त पी, करती है हुंकार।।

मिलकर देवी देवता, जोड़े दोनों हाथ।

रौद्र रूप अब शांत हो, आये भोलेनाथ।।


रचनाकार

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें