गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

बाल रचना / उदास चीता : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 



सोच  रहा  था  चीता  कैसे, 

आवे         हाथ     शिकार, 

घूम  रहे   जंगल  के  अंदर, 

शेर        बड़े         खूंखार l 


हर  कोने  में   गूंज  रही है,

उनकी       क्रूर       दहाड़,

जंगल में  घुसने  का  कोई,

मुझपर      नहीं     जुगाड़। 


देख हिरण को दौड़ लगाते,

चीता       हुआ       उदास,

जंगल के राजा के  सम्मुख,

मिली     धूल     में   आस।


लेट गया धरती  पर  चीता,

होकर       मरा       समान,

मक्खी लगने पर भी उसने,

नहीं       हिलाया     कान।


भालू ,बंदर,हिरण, लोमड़ी,

पहुंचे        उसके      पास,

कान  लगाकर  लगे  देखने, 

चलती    है   क्या     साँस।


मारा तुरत झपटटा लेकिन, 

चूका       उसका       वार,

छूट गया  चीते के  मुँह  में, 

आया      हुआ     शिकार।


झुंड तभी शेरों का उसको, 

आते      दिया      दिखाई,

जान  बचाने  को  चीते  ने,

सरपट     दौड़       लगाई।

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      वीरेन्द्र  सिंह  "ब्रजवासी"

           9719275453 

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