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सोमवार, 27 सितंबर 2021

अमर शहीद भगत् सिंह के जन्मदिन पर विशेष

 



वर्ष 1907 सितंबर  27 को भारत  का ऐसा  लाल हुआ 
शीश चढाने  भारत  माँ  को  अपने  आप  मिसाल  हुआ 
 
सरदार किशन सिंह ,माँ  विद्यावती का प्यारा ला ल हुआ 

लायलपुर  के  बंगा गांव  का बेटा इस धरती पर कमाल हुआ 

नाम भगत सिंह  सपूत  देश  का  अंग्रेजो  का काल हुआ 

लाला जी पर नृशंसता  का  बदला उसने खूब  कमाल लिया 

राजगुरू  संग सन 28 मे सैन्डर्स का काम  तमाम  किया 

 वीर सिंह  था भारत  माँ की  खातिर फाँसी को  लगा लिया  गला

22 वर्ष  की  उम्र  में फांसी  को गले लगा  लिया  

हंस के चढा  सूली पर इक पल भी उफ न किया

शरद कुमार श्रीवास्तव 

रविवार, 26 सितंबर 2021

"बदलाव"रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"

 



सोचे जनता देख कर, ये कैसा बदलाव।
महँगाई है बढ़ रहा, बढ़ता सब का भाव।।
बढ़ता सब का, भाव देख कर, जनता रोती।
नहीं चैन अब, मिले किसी को, रात न सोती।।
बच्चे भूखे, बैठे रहते, खुद को नोचे।
देख देश की, हालत जनता, कुछ तो सोचे।।

हालत बिगडे़ देश का, आया जब बदलाव।
कोरोना के काल में, फँसी सभी की नाव।।
फँसे सभी का, नाव साथ में, है बीमारी।
मरते जाते, बूढ़े बच्चे, संकट भारी।।
घर - घर सब के, घटना घटती, पड़ती लालत।
नहीं चैन भी, मिले किसी को, बिगड़े हालत।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

ढोंगीऔघड़ बाबा! लघु कहानी : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी





लंबा चोगा, शरीर पर भभूत,गले में मानव अस्थियों की लंबी सी माला,उलझी जटाएं,बड़ी-बड़ी आंखें और हाथ में चिमटा कमंडल तथा होंठों पर हर-हर शम्भू का जोरदार उच्चारण करते हुएऔघड़ बाबा ने किशोरी लाल जी से बड़े ही रूखे स्वर में चिल्लाते हुए कहा दस रुपए दे,,,। किशोरीलाल जी के जान बूझकर अनदेखा करने पर औघड़ बाबा ने क्रोधी  भाव प्रदर्शित करते हुए पुनः कहा, तूने सुना नहीं, मैंने क्या कहा। जल्दी से दस रुपए निकाल अन्यथा,,,,,,

   अन्यथा, क्या कर लोगे। तुम तो ऐसी धौंस दे रहे हो जैसे मुझे कुछ देकर भूल गए हो।,,,  किशोरीलाल जी ने कहा। 

  क्या तू मुझे नहीं जानता। औघड़ बाबा ने मानव  मुंड पर हाथ फेरते हुए कहा। मैं भगवान शंकर का घोर उपासक हूँ।  मेरी जिह्वा पर शेषनाग विद्यमान है, कहते हुए काले रंग से बनाई गई सर्प की आकृति वाली अपनी जिह्वा को बाहर निकालकर किशोरी लाल जी को दिखाते हुए कहा, अगर तूने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुझे पलभर में भस्म कर दूंगा। एक बार को तो किशोरीलाल जी भी उसकी भाव भंगिमाओं को देखकर विचलित से हो गए। परंतु अगले ही पल संभलते हुए बोले। हे औघड़ बाबा भगवान शिव तो सर्वभक्षी थे। आक-धतूरा और विष पान करना तो उनकी दिनचर्या रही है।

    हाँ-हाँ, यह सब तू मुझे क्यों बता रहा है। मैं भी तो सर्वभक्षण और विषपान कर सकता हूँ। अच्छा ,,,,,,

  किशोरीलाल जी ने अपने पुत्र गोलू को आवाज़ लगाते हुए शौचालय में रखी तेज़ाब की बोतल लाने को कहा। यह सुनते ही औघड़ बाबा के कान खड़े हो गए। उत्सुकतावश उसने किशोरीलाल जी से पूछा तेज़ाब की बोतल किस लिए।  

 इसपर किशोरीलाल जी ने मुस्कुराते हुए बोतल को आगे बढ़ाया और बाबा से उसे पीने के लिए कहा। 

    औघड़ बाबा ने कहा तुम मेरा घोर अपमान कर रहे हो। मैं तेज़ाब भला कैसे पी सकता हूँ। इसपर किशोरीलाल जी ने अपने पुत्र को किवाड़ के पीछे रखा  डंडा लाने को कहा। गोलू ने कहा पापा इसका क्या करेंगे। पापा बोले, इस ढोंगी औघड़ बाबा को तो मैं भस्म करूंगा।यह मुझे क्या भस्म करेगा।अभी इसकी जमकर खबर लेता हूँ। 

    इतना सुनते ही औघड़ बाबा सर पर पैर रखकर भागता नज़र आया।

      


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            मुरादाबाद/ उ,प्र,

            9719275453

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पितृ पक्ष" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना




करते पूजा पाठ, पितर की करते सेवा।
मन में श्रद्धा भाव, और खाते सब मेवा।।
करते अर्पण नीर, देव को सभी मनातें।
चाँवल जौ को साथ, हाथ लेकर सब जातें।।

करतें पितृ को याद, साल में सब है आतें।
होते भगवन रूप, सभी अपने घर जातें।।
छत के ऊपर बैठ, काग को भोग खिलातें।
है पितरों का रूप, यहाँ हम सभी मनातें।।

पुरखों को दो मान, नियम उनकी अपनाओ।
मिलता है जी लाभ, हानि से नहिँ  घबराओ।।
देते आशीर्वाद, खुशी जीवन में आते।
बच्चें बूढ़े साथ, सदा यूँ साथ निभाते।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

हिंदी दिवस*



बोलेंगे हम मिलकर हिंदी।
माथा इसकी लगती बिंदी।।
हिन्द देश के हम है वासी।
बनों नहीं अंग्रेजी दासी।।

अंग्रेजी को मार भगाओ।
हिंदी सीखो और सिखाओ।।
हिंदी को पहचान बनाओ।
बच्चें बूढ़े सभी जगाओ।।

हिंदी भाषा होती प्यारी।
बोलेंगे हम जीवन सारी।।
समय-समय पर बदलो भाषा।
हिंदी है सबकी अभिलाषा।।

मातृ शक्ति हिंदी कहलाती।
मानव की पहचान बनाती।।
हिंदी हिंदुस्तान हमारी।
होती सबकी राज दुलारी।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@

हिन्दी दिवस पर विशेष : साभार डाक्टर पशुपतिनाथ पाण्डेय

 



प्रत्येक  वर्ष  14 सितम्बर, हिन्दी दिवस हम बड़े  धूमधाम से  मनाते हैं  गत वर्ष डॉ  पशुपतिनाथ  पान्डे  भारतीय  स्टेट बैंक  से सेवानिवृत्त सहायक  महाप्रबंधक  से प्राप्त इस विषय  पर  एक  रचना " नाना  की पिटारी " मे प्रकाशित  हुई  थी , जिसे हम साभार बच्चों के लिए पुन:  प्रकाशित  कर  रहे  हैं 

हिन्दी दिवस 

पूरे भारत में हिन्दी दिवस को बहुत ही उत्साह के साथ 14 सितम्बर को मनाया जाता है। यह एक एतिहासिक दिन होता है जिस दिन हम अपने हिन्दी भाषा को सम्मान देते हुए मनाते हैं।


यह इस दिन इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी लिपि यानि की हिन्दी भाषा को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत किया गया था।


हिन्दी दिवस पुरे भारत में हिन्दी भाषा के सम्मान और महत्व को समझने के लिए मनाया जाता हैं। हिन्दी भाषा का एक बहुत ही गहरा इतिहास है जो इंडो-आर्यन शाखा और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से जुदा हुआ है।


भारत की आज़ादी के बाद भारत सरकार ने हिन्दी भाषा को और भी उन्नत बनाने के लिए जोर दिया और इसमें कुछ सुधार और शब्दाबली को बेहतर बनाया गया। भारत के साथ-साथ देवनागरी भाषा अन्य कई देशों में बोली जाती है जैसे – मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिडाड एंड टोबैगो और नेपाल


हिन्दी भाषा विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।


स्वाधीनता के बाद भारत के संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी भाषा को अनुच्छेद 343 के अंतर्गत भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में पहले स्वीकार किया गया।


हिन्दी दिवस सभी स्कूल, कॉलेजों और दफ्तरों में मनाया जाता है। इस दिन लगभग सभी शैक्षिक संस्थानों में कई प्रकार के प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता हैं जिनमें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी भाग लेते हैं।


इस दिन हिन्दी कविताएँ, कहानियाँ और शब्दावली के ऊपर प्रतियोगिताएं आयोजन किये जाते हैं। भारतब में हिन्दी भाषा लगभग सभी राज्यों में बोली जाती है परन्तु ज्यादातर उत्तर भारत में हिन्दी भाषा का ज्यादा बोल-चाल है।


इस दिन भारत के राष्ट्रपति हिन्दी साहित्य से जुड़े कई लोगो को अवार्ड प्रदान करते हैं और उनको सम्मानित करते हैं। हिन्दी दिवस के अवसर पर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार, और राजभाषा गौरव पुरस्कार जैसे पुरस्कार दिए जाते हैं।


भारत जैसे विशाल देश में अनेक जाती, धर्म, भाषा के लोग रहते हैं। इस पुरे देश के लोगों का रिश्ता किसी ना किसी प्रकार से एक राज्य से दुसरे राज्य के साथ जुड़ा होता है। व्यापार, सामाजिक, सांस्कृतिक चीजों के कारण सभी लोगों में लेन-देन चलता ही रहता है।


अगर एक राज्य दूसरे राज्य से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखेगा तो इसमें राज्यों की प्रगति में असर पड़ता है। इसलिए सभी राज्य अन्य सभी राज्यों से किसी ना किसी कारण जुड़ें हैं।


ऐसे में उन सभी के बीच सही प्रकार से व्यवहारिकता को कायम रखने के लिए एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सबकी समझ आये और आसानी हो। भारत में हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो एक ओर देश में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली, पढ़ी, और समझी जाने वाली भाषा है और अन्य भाषाओं की तुलना में आसान भी है।


भारत में कई प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं – असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, अंग्रेजी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मराठी, मणिपुरी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू। यह भाषाएँ अपने-अपने प्रदेशों के लिए मुख्य होती हैं और राज्य का अधिकांश कार्य इन्हीं भाषाओँ के आधार पर होता है।


किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा चुनने से पहले उसके कुछ विशेष गुण होने चाहिए। उस भाषा को देश के ज्यादातर भागों में लिखा पढ़ा जाता हो या उन्हें समझ हो। उस भाषा की शब्दाबली इतनी समर्थ हो की उससे सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञानं के विषयों को अभिव्यक्त किया जा सके।


साथ ही ऐसी भाषा का के साहित्य का एक विशाल भंडार होना चाहिए तथा दर्शन ज्योतिष विज्ञानं, साहित्य और इतिहास के विषय में सभी पुस्तकें होनी चाहिए। भाषा का सुन्दर और सरल होना और भी आवश्यक है।


आज के भारत में हिन्दी ही एक मात्र भाषा है जिसमें यह सब गुण पाए गए हैं इसीलिए हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में चुना गया है। आज हिन्दी भाषा को पुरे विश्व भर में सम्मान के नज़रों से देखा जाता है। यहाँ तक की टेक्नोलॉजी के ज़माने में आज विश्व की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक भी हिन्दी भाषा को बढ़ावा दे रहे।


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने राष्ट्र संघ में अपना प्रथम वक्तव्य हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया। भारत के केंद्र में हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी भाषा का साहित्य पौराणिक और संपन्न है।


आज के दिन भी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें सभी प्रकार से राष्ट्रीय भाषा बनने में पूर्ण समर्थ है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए और साथ ही इससे और आगे ले कर जाना चाहिए।



डा. पशुपति पाण्डेय

गोमती नगर, लखनऊ ।

शामू 7 धारावाहिक कहानी

 


अभी तक शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पहुँचता है और गैरेज के मालिक इशरत मियाँ ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था घर मे रुपये कीड़े से नष्ट हो रहे थे इशरत मियाँ की वजह से बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता ।
नुसरत ने इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी कर ली थी वह कुयह दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु ले गया ।उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ शाम के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।
उस दिन इशरत मियाँ बाजार गये थे . गर्मियों के दिन थे, बाजार मे प्यास बुझाने के लिये उन्होने दो गिलास शिकंजी पी ली थी . लू चल रही थी जिससे हीट स्ट्रोक लग गया या शिकंजी उन्हे नुकसान कर गयी थी पता नहीं चला . उन्हे उल्टियाँ होने लगीं . वे किसी तरह अॉटो से घर आए . शामू जल्दी से डॉक्टर को बुला लाया और फिर डॉक्टर के कहने पर अस्पताल मे भर्ती करा दिया. डिहाइड्रेशन हो जाने से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे . नुसरत भी बंगलोर से आये थे पर काफी दिन रुक नहीं पाये थे शामू इशरत भाई के लिये हनुमानजी की तरह हमेशा सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था . पास का एक दुकान वाले को यह सब अच्छा नहीं लगता था वह सोचता था कि यह गैरेज उसे मिल जाय तो वह अपनी दुकान वहाँ शिफ्ट कर दूँ . इसलिये वह इशरत के घर आया और उसने उन्हे बहुत भड़काने की कोशिश की. इशरत मियाँ उसी बातों पर नहीं आये. नुसरत का बंगलोर से आना हो नहीं पाता था. वह अपने माता पिता को अपने साथ बंगलोर ले गया . जाते जाते नुसरत ने अपना घर ऒंर अपना गैरेज बेच दिया. इशरत मियाँ ने गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से गैरेज चल निकला और अब वह गैरेज का मालिक है.


शरद कुमार श्रीवास्तव 

राखी : रचनाकार प्रिया देवांगन प्रियू

 


कितना सुंदर है यह रिश्ता, दिल से सभी निभाते हैं।
भाई बहना दोनों मिलकर, गीत खुशी के गाते हैं।।

मीठे-मीठे पकवानों की, महक घरों से आती है।
बच्चों के सँग दादी अम्मा, बैठ साथ में खाती है।।

सुबह सबेरे उठकर बहना, सुंदर थाल सजाती है।
चंदन बंदन कुमकुम टीका, भैया माथ लगाती है।।

बांँध कलाई रेशम डोरी, कितनी खुश हो जाती है।
रक्षा करना मेरे भैया, मीठा बहन खिलाती है।।

हर वचनों को पूरा कर के, वादा सभी निभातें हैं।
अपनी छोटी सी बहना को, सब उपहार दिलाते हैं



प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

सोमवार, 6 सितंबर 2021

लघु कहानी/ भुने चने! ; वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


बूढ़ी अम्मा भाड़ में गरमागरम चने भून रही थी।कोई एक रुपया,कोई आठ आने, कोई चार आने के चने लेता तो कोई बिना पैसे दिये ही दो-चार चने मुंह में डालकर चलता बनता।

    दोपहर तक बामुश्किल तमाम दस रुपए ही इकठे हो पाते।बूढ़ी अम्मा सोचती कि ऐसे दस रुपल्ली का क्या लाभ, जिसमें एक वक्त का आटा-दाल भी न मिल सके।कम से कम पचास-सौ रुपए तो हों।

  बूढ़ी अम्मा इसी उधेड़बुन में व्यस्त थी।तभी अचानक उसने देखा कि एक युवक घोड़े से उतरकर इधर-उधर देख रहा है।उसके शरीर के वस्त्राभूषण बता रहे थे कि  वह किसी देश का राजकुमार है।

    बूढ़ी अम्मा ने पूछा बेटा तुम्हें किसकी तलाश है।तुम कहाँ से आए हो और कहां जाओगे।अगर तुम्हें भूख लगी हो तो मेरे पास ताज़ा भुने चने हैं जिन्हें खाकर तुम अपनी भूख शांत कर सकते हो।

      युवक ने कहा नहीं-नहीं अम्मा ऐसी बात नहीं।मुझे भूख-वूख नहीं लगी है।मैं तो केवल यह देखकर घोड़े से उतर गया कि तुम सारे दिन आग के सामने बैठकर चने भूनती हो, क्या इसकी कमाई से तुम्हारा काम चल जाता है।

    बूढ़ी अम्मा ने कहा बेटा- कुछ नहीं से तो अच्छा ही है।

दो रोटी का सहारा हो जाता है।अगर यह भी नहीं करूंगी तो भूखी ही मर जाऊंगी।

     बेटा इन चनों के सहारे ही तो मैं किसी की अम्मा,किसी की दादी,किसी की नानी जैसे शब्दों से जुड़ी रहती हूँ।मुझे और क्या चाहिए।वैसे भी मुझे खाली बैठना अच्छा नहीं लगता।मैं अकेली जान जोडूं भी तो किसके लिए।

    युवक बूढ़ी अम्मा की संतुष्टि देखकर हैरान रह गया।उसने सोचा हम तो राजमहल में रहते हैं,सोने चांदी के बर्तनों में खाना खाते हैं,नौकर-चाकरों से घिरे रहकर एक तिनका तक तोड़ना भी अपना अपमान समझते हैं।फिर भी इतनी शांति नहीं मिल पाती,जितनी  इस बूढ़ी अम्मा को हर समय मिलती है।

      उस युवक ने बूढ़ी अम्मा को बोला अम्मा अगर में आपके सारे के सारे चने खरीद लूँ तो,,,,,,बूढ़ी अम्मा ने कहा बेटा इससे बढ़िया क्या होगा।

   राजकुमार युवक सारे चने खरीदकर घोड़े की पीठ पर लाद ही रहा था तभी बूढ़ी अम्मा ने उसे थोड़ा गुड़ देते हुए कहा बेटा इसके साथ चने खाने का स्वाद ही कुछ और है।युवक खूब सारी रकम बूढ़ी अम्मा को देकर घर की राह हो लिया।

     बीच राह में अचानक भयंकर आंधी तूफान आ जाने से युवक घबरा गया और घोड़े को एक तरफ रोक कर खड़ा हो गया।तेज़ तूफान में उसे अपने घर का रास्ता भी नहीं सुझाई पड़ रहा था।ऊपर से जोरों की भूख भी बेहाल कर रही थी।

      तभी युवक एक स्थान पर बैठकर बूढ़ी अम्मा से खरीदे चने खाने लगा।गुड़ के साथ तो उनका आनंद दोगुना हो गया।गुड़-चना खाकर उसकी जान में जान आई।उसने बूढ़ी अम्मा को बार-बार   याद करके उसके गुड़-चने की भूरि-भूरि प्रशंसा की और अम्मा से मिलवाने के लिए ईश्वर को बारंबार धन्यवाद दिया।

    अब उस युवक की समझ में आया कि समय परिवर्तनशील है।आज अच्छा है तो कल बुरा भी हो सकता है।अतः हमें समय का सम्मान  करना ही चाहिए।

           


         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             मुरादाबाद/उ,प्र,

             9719275453

              

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"कृष्ण जन्म"

 



जन्म लिये जब कृष्ण,घना बादल था छाया।
बरसे पानी मेघ, देख मन भी घबराया।।
टूटे बेड़ी हाथ, पाँव के बंधन खोले।
देख देवकी मात, तनिक कुछ भी नहिँ बोले।।

बाल रूप में आज, प्रगट हो गये मुरारी।
दिखे साँवला रूप, कृष्ण मारे किलकारी।।
मधुर-मधुर मुस्काय, देवकी मात निहारे।
अपने धुन में खेल, लगे हैं कितने प्यारे।।

पकड़े वासुदेव, सूप में कृष्ण सुलाये।
गड़-गड़ गरजे मेघ, नन्द बाबा घर जाये।।
करते यमुना पार, राह कठिनाई आये।
लेते प्रभु का नाम, राह को ईश दिखाये।।

खुश होते हैं ग्वाल, सभी त्यौहार मनाते।
बजते ढ़ोलक ताल, गीत खुशियों के गाते।।
खुशी-खुशी से देश, जलाते दीपक प्यारे।
कृष्ण जन्म में आज, मनाते उत्सव 



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बरसे पानी" प्रिया देवांगन "प्रियू" का बालगीत




रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी।
चहक उठी है चिड़िया रानी।।
हरियाली पेड़ो पर छायी।
डाल-डाल पर वह लहरायी।।

गलियाँ सारी सूनी रहती।
रिमझिम पानी उसमें बहती।।
मिट्टी की खुशबू है आती।
सबके मन को वह बहलाती।।

रंग बिरंगे तितली आती।
बैठ पुष्प पर वह मुस्काती।।
पुष्प रसों को वह पी जाती।
जीवन में खुशियाँ बिखराती।।

पानी की बौछारें आती।
सब के तन मन को भीगाती।।
जब जब आती बरसा रानी।
सबको लगती बड़ी सुहानी।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

हलषष्ठी का त्यौहार" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 


छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। हमारे छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है।
  हमारे छत्तीसगढ़ के लोग हरे-भरे खेत-खलिहान,पेड़-पौधों से ज्यादा प्रेम करते हैं।
इसलिए छत्तीसगढ़ के लोग हरियाली से जुड़े हर त्यौहार को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं।
     श्रावण माह में हरेली (हरियाली) के बाद और भी बहुत सारे त्यौहार आते हैं, उनमे से एक हलषष्ठी(छठ) का त्यौहार उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

*क्यों मनाये जाते हैं* -  इस दिन भगवान श्री कृष्ण कन्हैया के बड़े भाई श्री बलदाऊ जी का जन्म हुआ था। इस त्यौहार को भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठि तिथि को मनायी जाती है।
यह व्रत मातायें अपने संतान की दीर्धायु और खुशहाली जीवन के लिये करती हैं।

       कथानुसार- द्वापर युग में माता देवकी अपने पुत्र कृष्ण को बचाने के लिये यह व्रत(उपवास) रखती थी, क्यों कि  कंश देवकी के सभी पुत्रों का वध कर देता था।तब नारद जी आ कर माता देवकी को यह व्रत करने की सलाह दिये थे। माता देवकी जब व्रत रखी तब उसके प्रभाव से श्री कृष्ण बच गये। उसके बाद कृष्ण कन्हैया जी कंश का वध कर के विजय प्राप्त किये।
तब से आज तक ये व्रत को हिन्दू धर्म की सभी महिलायें अपने-अपने संतान की रक्षा,सुख-सम्पत्ति और खुशहाली जीवन के लिए रखती हैं।
               "इस व्रत को विवाहित महिलायें ही रखती हैं"।
इस दिन सभी महिलायें प्रातः काल उठ कर करंज या महुआ पेड़ की टहनी का दातुन (ब्रश) करती है।

गाँव-गाँव में सुबह से लाई,दूध, दही, घी, महुआ, दोना-पत्तल बिकने आते हैं।

इस दिन सिर्फ भैंस का दूध, दही, घी को ही उपयोग में लाया जाता है।
और बिना हल चले उत्पन्न खाद्य सामग्रियों को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।

*पूजा की सामग्री* - चना, गेहूँ, धान, महुआ, दूध, दही, घी, नारियल, फल-फूल, लाई, हल्दी और हल्दी से भीगे हुए कपड़े का टुकड़ा।

सभी महिलायें नयी-नयी साड़ी और सोलह श्रृँगार करती हैं। और एक बड़ा थाल(परात) में पूजा की सभी सामग्री लेकर मन्दिर में जाती हैं।
मन्दिर में सभी महिलायें एकत्रित होती हैं।
वहाँ सगरी (दो छोटे-छोटे गड्ढे) के सामने बैठ कर महाराज (पंडित) के बताये अनुसार पूरे विधि-विधान से पूजा करती है और कथा सुनकर अपने-अपने संतान की सुखी-जीवन की कामना करती हैं।
                पूजा समाप्त होने के बाद सभी महिलायें अपने-अपने घर आती हैं और घर में भगवान को भोग लगाती हैं। उसके बाद पसहर चाँवल और छः प्रकार के भाजी बनाती हैं।
  "इस व्रत में पसहर चाँवल भाजी और अंग्रेजी मिर्ची  का बहुत महत्व होता है"।

आज के दिन बच्चों का स्कूल से जल्दी अवकाश हो जाता है और सभी बच्चें अपने-अपने घर खुशी-खुशी आते हैं।

महिलायें अपने-अपने बच्चों को हल्दी से भींगा छोटा सा कपड़े का टुकड़ा उसके पीठ पर छः बार मार कर बच्चों को आशीर्वाद देती हैं।
बच्चें खुशी-खुशी आशीर्वाद लेते हैं।

*प्रसाद ग्रहण करने का नियम* - सर्वप्रथम महिलायें प्रसाद को छः पत्तल में पसहर चाँवल, दूध, दही, घी और भाजी को निकालती है और घर के बाहर कुत्ते, बिल्ली, चिड़िया,गाय-बछड़ा आदि....के लिये रखती हैं।
फिर घर के सभी बड़े और छोटे परिजन मिलकर प्रसाद को ग्रहण करतें हैं,और त्यौहार का आनंद लेते हैं।
इसके बाद दोना-पत्तल को नदी या तालाब में विसर्जित दिये जाते हैं।

यह त्यौहार को हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है यह परिवार के खुशहाली जीवन तथा एकता के भाव से मनाते हैं, तथा भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"पुष्प" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना




लाली पीली बैगनी, बागों खिलते फूल।
उपवन में रहते सभी, कलियाँ जाती झूल।।
कलियांँ जाती झूल, प्रेम की बात बताती।
अपनी खुशबू संग, बाग को वह महकाती।।
रंग बिरंगे फूल, सजे पेडों की डाली।
मधुर-मधुर मुस्कान, बिखेरे सुंदर लाली।।

काँटे सँग रहते सदा, सुंदर सुंदर फूल।
कोमल-कोमल पंखुड़ी, नहीं चुभते शूल।।
चुभे कभी नहिँ शूल, बीच रहकर मुस्काती।
सदा बाँटती प्रेम, ईश चरणों में जाती।।
ममता के ये फूल, हमेशा खुशियाँ बाँटे।
मिले ईश वरदान, करे रक्षा ही काँटे।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

चीकू आशी पीहू इन्नू " के बाल गीत : शरद कुमार श्रीवास्तव

 मेरी पुस्तक " चीकू आशी पीहू इन्नू " के बाल गीत  प्रकाशित  हो चुकी है ।