अभी तक शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता था । उसका पिता उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी उसे फिर आगे बढ़ने के रास्ते सुझाती है । साथ के बच्चों के साथ पुरानी प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक गैरेज के बाहर पहुँचता है और गैरेज के मालिक इशरत मियाँ ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू अपने हँसमुख स्वभाव और भोलेपन के कारण सब लोगों का चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था घर मे रुपये कीड़े से नष्ट हो रहे थे इशरत मियाँ की वजह से बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता ।
नुसरत ने इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी कर ली थी वह कुयह दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु ले गया ।उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ शाम के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।
उस दिन इशरत मियाँ बाजार गये थे . गर्मियों के दिन थे, बाजार मे प्यास बुझाने के लिये उन्होने दो गिलास शिकंजी पी ली थी . लू चल रही थी जिससे हीट स्ट्रोक लग गया या शिकंजी उन्हे नुकसान कर गयी थी पता नहीं चला . उन्हे उल्टियाँ होने लगीं . वे किसी तरह अॉटो से घर आए . शामू जल्दी से डॉक्टर को बुला लाया और फिर डॉक्टर के कहने पर अस्पताल मे भर्ती करा दिया. डिहाइड्रेशन हो जाने से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे . नुसरत भी बंगलोर से आये थे पर काफी दिन रुक नहीं पाये थे शामू इशरत भाई के लिये हनुमानजी की तरह हमेशा सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था . पास का एक दुकान वाले को यह सब अच्छा नहीं लगता था वह सोचता था कि यह गैरेज उसे मिल जाय तो वह अपनी दुकान वहाँ शिफ्ट कर दूँ . इसलिये वह इशरत के घर आया और उसने उन्हे बहुत भड़काने की कोशिश की. इशरत मियाँ उसी बातों पर नहीं आये. नुसरत का बंगलोर से आना हो नहीं पाता था. वह अपने माता पिता को अपने साथ बंगलोर ले गया . जाते जाते नुसरत ने अपना घर ऒंर अपना गैरेज बेच दिया. इशरत मियाँ ने गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से गैरेज चल निकला और अब वह गैरेज का मालिक है.
शरद कुमार श्रीवास्तव
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