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शनिवार, 26 मार्च 2022

जंगल मे होली : बालकथा : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


फागुन मास बीत रहा है ।  जंगल  में  मस्ती छा गई है   चिंटू बन्दर इस डाल से उस डाल  पर कूदकर  खेल  कूद  कर  रहा  है  ।  कोयल के मीठे गीतों से जंगल संगीतमय हो गया है ।  पेडों  पर नये पत्ते  आ गये हैं ।  इसी संगीतमय वातावरण  में  कौवे राम ने  अपना संगीत  घोलना प्रारंभ  कर  दिया ।   होली आने वाली है यह सबको पता है  ।   सब खुश थे किसी  ने  भी   कौवे के कर्कश  गाने  का बुरा  नही माना  ।    किसी  बात की परवाह  किये  बगैर,  बिना  किसी  रोक टोक के  ही और वह भी   शेर महाराज  के मांद के  ठीक  ऊपर वाले  पेड़  पर !   शेर के  सोने के समय था,  उसी वक्त  कौवे ने  अपना बेसुरा  गाना  शुरू  कर  दिया   ।   शेर  के  महासचिव  गीदड़  लाल, ने   कौवे को डाँट  लगाई ।  तब  कौवे ने ढिठाई से  कहा " होली है  भाई  होली है  बुरा न मानो  होली  है  " और यह कह कर गीदड  के  सिर पर बीट कर दिया  ।   इस बात से गीदड़  ने नाराज होकर,  महाराजा  शेर सिंह  को  एक बात की  चार बात लगाकर कौवे  की  शिकायत  कर दी ।    महाराजा शेर सिंह   बहुत  नाराज  हुए ।   उन्होंने   एक बार  जोर से  गर्जना  की  कि यह कैसी गन्दी सन्दी होली  खेली  जा  रही  है  ।   अब  से कोई  होली नहीं  खेलेगा ।


 बन्नी खरगोश तो  अपनी  पिचकारी  में  रंग  भरकर  हिरन के  ऊपर रंग  डालने वाला  था  ।   भेड़िया  और भालू  गुलाल लेकर   एक दूसरे के  मुँह  पर मलने  वाले  थे उसी समय महाराजा शेर सिंह ने  होली नहीं  खेलने  का  आदेश  जारी  कर  दिया ।अब  क्या  था जंगल में  खलबली  मच गई  थी  ।   साल भर का त्यौहार  मनाना  भी  आवश्यक  था ।   सब लोगों  ने  जब कौवे  को भला  बुरा  कहा  तब उसे  समझ  में  आया कि  उसने अनुशासन  नहीं मानकर क्या  गलती  की  है ।   उसने  सब जानवरों  से  माफी  मांगी  ।  जंगल के  जानवरों  की  एक  बैठक हुई  ।   बैठक  में  निर्णय  लिया  गया  कि  पहले कौवा,  महासचिव  गीदड़  लाल से पहले  क्षमा मांगे ।   फिर गीदड़    से ही   महाराजा  शेर सिंह  के  कोप को  कम करने  का  उपाय  भी  पूछा  जाए  ।    जानवरो  की  एक टीम  महासचिव  गीदड़  लाल के पास कौवे को  अपने साथ  लेकर  गई ।   वहाँ  जाते ही कौवे ने पहले अपनी  भूल  स्वीकार  की और महासचिव  गीदड़  लाल जी  से  माफी मांगी ।   गीदड़ लाल  ने कहा कि  कौवे की  टांय  टांय  के  कारण  महाराज  सो नहीं  पा रहे  हैं  ।  आपलोग कुछ ऐसा  करो कि महाराज  को नींद  आ  जाय तब महाराज  खुशीखुशी  सब लोगों  को  होली  खेलने  की  इजाजत दे देगें।   एक  बात और है  कि  किसी  को  भी  गन्दी  तरह  होली  नही  खेलने  दी जाएगी  ।   फिर  क्या  था  सब जानवर खुश  हो  गए ।  कोयल  ने खूब  सुरीला  राग छेडा ,  धीरे  धीरे मतवाली  हवा  चलने  लगी  कि  महाराज  शेर सिंह  को  नींद  आ गई  ।     सोकर  उठते ही  उन्होंने  खुशी  खुशी  सब जानवरों  को  होली  खेलने  की  अनुमति  दे दी और जंगल  में  फिर  खुशियाँ  वापस आ  गई


शरद कुमार श्रीवास्तव

जल जीवन : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


जल जीवन है जीवन जल है,

जल से ही जीवित हर पल है,

जल की बचत  करोगे तब ही,

जीवन को मिल पाता कल है।

     


जल बिन मर  जातीं मुस्कानें,

कैसा  गीत  कहाँ   की   तानें,

बून्द - बून्द  से  भरे   सरोवर,

इनकी परामशक्ति  को  जानें,

जल  की  बर्बादी   को   रोकें,

इसमें हर मुश्किल का हल है।



जल में  ही अस्तित्व  छुपा है,

मोती,मानुष, और  माटी  का,

जल बिन  कोई मूल्य नहीं  है,

धरा,  मेघ,  जंगल  घाटी  का,

जल के बिन  सारे  का  सारा,

कठिन परिश्रम भी निष्फलहै।



पशु - पक्षी  इतना  जल  पीते,

जितने  में  वह  सुख से जीते,

पर मानव अभिमानी  बनकर,

करता   ताल  -  तलैया   रीते,

केवल अपनी सुख सुविधा में,

भूल  गया  सबका  मंगल  है।



कब तक मनमानी कर  लोगे,

धरती  के   सुख  से   खेलोगे,

औरों  के   हिस्से   का  पानी,

पीकर तुम कब तक जी लोगे,

अभी  समय  है आंखें खोलो,

नहीं जगे तो मुश्किल पल  है।


         


         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

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नवसंवत्सर 2079 की शुभ-कामनाएँ : शरद कुमार श्रीवास्तव

 





नया वर्ष आया नई खुशी लाया
आत्मविश्वास से भरी उमंगे
मन मे तुम्हारे अब उठें तरंगें
नई कामना नई भावना लाया
नई खुशियों के उपहार लाया
नया वर्ष आया

नित सुबह ले नये आस की
नई सोंच अपने विकास की
नई किरण अब नई रोशनी
नया हो सूरज नई चाँदनी
नया राग लाया नया वर्ष आया

शरद कुमार श्रीवास्तव 

सूरज चाँद सितारे।। :प्रिया देवांगन "प्रियू"



नीले-नीले अम्बर हम को, लगते कितने प्यारे।
इक दूजे सँग मिलकर रहते, सूरज चाँद सितारे।।

कभी  चाँद अम्बर छुप जाते, करते  छुपम-छुपाई।
नयन ढूंँढते रहते उनको, देते नहीं दिखाई।।
बैठ जमीं हम देखा करते, सुंदर सभी नजारे।
इक दूजे सँग मिलकर रहते, सूरज चाँद सितारे।।

फैले है वो चादर जैसे, हर पल रहते छाये।
जहाँ-जहाँ हम जाते साथी, बनकर चलते साये।।
नीर बरसते जब अम्बर से, हो जाते हैं न्यारे।
इक दूजे सँग मिलकर रहते, सूरज चाँद सितारे।।

नीर वायु सूरज अरु तारे, अम्बर सभी समाते।
सदा समय से आगे आते, अपना रूप दिखाते।।
हे मानव कुछ सीखो तुम भी, रहो एक सा सारे।
इक दूजे सँग मिलकर रहते, सूरज चाँद सितारे।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

गर्म जलेबी : शरद कुमार श्रीवास्तव



 कल खाये थे गरम पकौड़े

आज जलेबी शक्कर घोली

छुट्टी के दिन  मस्त बीतते

ऐसा मेरी प्यारी पोती बोली 


खूब खेलते टी वी देखते

दादू को रिमोट नहीं देते

कल तक किताब पढ़ी थी

बच्चे मिल बोले हमजोली




शरद कुमार श्रीवास्तव 


"परीक्षा" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"



सुनो परीक्षा दिन है आया।
कॉपी पुस्तक मन को भाया।।
करे खूब हम रोज पढ़ाई।
नहीं करेंगे कभी लड़ाई।।

दादी अम्मा सुबह उठाती।
घड़ी परीक्षा याद दिलाती।।
आँख नहीं खुलती जब भाई।
करती दीदी खूब धुलाई।।

दादा जी भी नजर टिकाते।
पुस्तक हाथों में पकड़ाते।।
अंग्रेजी पापा समझाते।
पढ़ो नहीं तब आँख दिखाते।।

बंद हुई सारी शैतानी।
तुम भी मेरी सुनो कहानी।।
अच्छे से तुम सभी पढ़ोगे।
आगे कक्षा तभी बढ़ोगे।।

शिक्षक हम को देते शिक्षा।
देते हम हर साल परीक्षा।।
अव्वल नम्बर जब भी आते।
मम्मी पापा खुश हो जाते।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

23 मार्च शहीदी दिवस

 




अमर  शहीद भगत् सिंह  सुखदेव और राजगुरु 

1907 के 27 सितंबर  को भारत  का ऐसा  लाल हुआ
शीश चढाने  भारत  माँ  को जग मे आप  मिसाल  हुआ

सरदार किशन सिंह ,माँ  विद्यावती का प्यारा लाल हुआ

लायलपुर  के  बंगा गांव  का बेटा धरती पर कमाल हुआ

नाम भगत सिंह  सपूत  देश  का  अंग्रेजो  का काल हुआ

इसी लायलपुर मे 1907 में जन्म लिया एक सिंह- शावक ने

नाम सुखदेव दिया था उसको मात पिता अभिभावक ने

था छोटा कुछ माह  राजगुरु, पूने में जन्म लिया था जिसने

छापेमारी की युद्ध प्रणाली की निपुणता अद्भुत थी जिसमें




लाला जी पर लाठी का  बदला इन सिंहों ने खूब  लिया

राजगुरू सुखदेव संग भगतसिंह ने  सैन्डर्स को शूट किया

ये सिंह भारत माता की खातिर फाँसी पर हँस  झूल गए

शेर बन 23 मार्च1931 को फांसी पर चढ़े  शहीद हुए



भारत रत माता के इन सपूतों को शत शत नमन हम करते हैं

अपने मन के भावों के श्रद्धा प्रसून हम इनको अर्पित करते हैं




शरद कुमार श्रीवास्तव

बुधवार, 16 मार्च 2022

होली का त्यौहार शरद कुमार श्रीवास्तव

 



 होली का त्योहार भारत और नेपाल सहित सभी हिन्दू धर्मावलम्बी/अनुयायियों राष्ट्रों में बहुत जोर शोर से मनाया जाता है । जानते हो बच्चों होली का त्योहार क्यों मनाते हैं?   प्रहलाद नाम का बालक परमपिता परमेश्वर का बड़ा भक्त था।   बालक प्रहलाद का पिता हिरणाकश्यप दुष्ट और बहुत घमंडी था ।   वह स्वयं को भगवान समझता था और  पूरे विश्व से केवल अपनी  पूजा ही करवाना चाहता था ।   इसलिए हिरणाकश्यप प्रहलाद को  भगवान  की पूजा न कर केवल स्वयं की पूजा करने के लिए  कहता था ।   प्रहलाद  का मानना था कि परमपिता परमेश्वर  ही  भगवान है ।   इसलिए बालक  प्रहलाद ईश्वर  का  पूजा-पाठ करता था ।   इस  बात  से नाराज  हिरणाकश्यप,  प्रहलाद को  तरह तरह की यातनाएं देता था यहाँ तक कि प्रहलाद  को जान से मार डालने की बहुत कोशिश करता था।  प्रहलाद को उसने पहाड से नीचे फेंका, पागल हाथी के सामने डाला,खाने में जहर मिलाया लेकिन भगवान- भक्त प्रहलाद हमेशा बच जाता था। अपने भाई को परेशान देखकर हिरणाकश्यप की बहन होलिका , जिस के पास वरदान स्वरूप प्राप्त एक ओढनी थी जिसे ओढ कर अगर आग में बैठ जाय तो आग उसे नहीं जला पाती ।  होलिका बालक प्रहलाद को गोद में लेकर जलती अग्नि मे बैठ गई ।   लेकिन भगवान के आशीष से ऐसी हवा चली कि ओढनी हवा में उड गई। परिणामस्वरूप  होलिका जल गई और प्रहलाद बच गये। तब लोगों ने एक दूसरे के ऊपर रगों को डाल कर खुशियाँ मनाया ।    बाद मे प्रतिवर्ष होली का त्योहार  फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन के रूप मे तथा तत् पश्चात उसके अगले दिन चैत्र माह  केपहले दिन रंग खेल कर मनाते हैं।  वह हिन्दी कैलेण्डर  के नववर्ष का पहला दिन  होता है अतः इसे खूब हर्षोल्लास  के साथ मनाया जाता  हैं।  इसी समय ऋतुराज  बसन्त  का आगमन  हो जाता है।   नये पत्तों पुष्पों से प्रकृतिक वातावरण खुशियो से भर जाता है ।   हाँ एक बात और है वह यह कि भारतीय कृषक के पास रबी की फसल कट कर घर में आ जाती है अत: यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
होली भाईचारा और आपसी सौहार्द का प्रतीक है। हम सभी भेदभाव दूर कर प्यार से एक दूसरे के गले मिल इसे मनाते हैं।




शरद कुमार श्रीवास्तव 

होली का हुड़दंग : शरद कुमार श्रीवास्तव

 




होली को आयुष  घर मे जैसे ही  घुसा सारा घर हँस  पड़ा।   वह बाहर से एकदम काले मुहँ वाला बन्दर बन कर  आया  था       बाहर  रोड  पर   किसी ने  उसके  चेहरे  पर  काला रंग पोत दिया  था ।   आयुष  के  पापा बच्चो से बोले कि आप सब क्यों  हँस  रहे  हैं  ।   मनीष  बोल पड़ा  कि किसी  बच्चे  ने आयुष के  चेहरे पर  काला रंग पोत  दिया  है  ।  हमारी  कालोनी  में  तो सब लोग  सफाई  से होली खेलते हैं कोई  गन्दे रंगों  से नही खेलता  है ।  पापा   आयुष से पूछो यह मेन  रोड की तरफ होली  खेलने  गया  ही क्यों  था ।   पापा  ने कहा कि हाँ  ठीक ही तो   है  कि  होली के  हुड़दंग  मे छोटे  बच्चों  को  बहुत  एहतियात  के  साथ  होली  खेलना चाहिए  ।  बच्चों  की  त्वचा  बहुत  कोमल  होती है  और  हुडदंग  में  लोग खराब  रंगों  का  भी  इस्तेमाल करते हैं  जिससे त्वचा खराब  होने  का  डर रहता  है  ।    इसीलिए  मैंने  तुम सब  लोगों  को हाथ  पैरों  और मुह मे  मास्चराइजर  तथा  बालों  में जैतून  का  तेल   लगवाया था


मनीष  बोला  कि   पापा होली  तो मेल मिलाप और प्रेम - सौहार्द    का त्योहार  है  हमे सूखे  अबीर गुलाल  से  होली खेलना  चाहिए  ।    पापा आगे  बोले  हमे प्राकृतिक  रंग  भी उपलब्ध  हैं  जैसे  टेसू के  फूल इत्यादि   जो  गांवों  में  तो मिल  जाते हैं  और  पंसारी की  दुकानों  पर  भी  मिल  जाते उनका गीला रंग  बना  कर  होली खेलने  का  मजा ही   कुछ  और है  ।  


मम्मी  ने  पकवानों  के  साथ  खाना  भी  लगा  दिया  ।   आज के  दिन  तो तरह  तरह के  पकवान  भी  बनते हैं  और हर जगह  थोड़ा  बहुत  तो खाना  ही  पड़ता  है  इसलिए  मम्मी  ने  खाने  की  टेबल पर  कहा  कि  बच्चों  बाहर अधिक   खाना खाने  से  बचना  अगर  खाना  ही  पडे तो बिल्कुल  नाममात्र  ही  खाना  चाहिए ।


  शाम  को  घर के  सब लोग  दादी  बाबा  के  घर  पर  गये दादी  बाबा  ने सब बच्चों  को  गले लगाया  और होली का  उपहार  दिया



शरद कुमार श्रीवास्तव 




दुष्ट चूहे रचना शरद कुमार श्रीवास्तव



खुश होकर झूमते चूहे चार

बिल्ली जी को चढ़ा बुखार

पारा हुआ एक सौ के पार 

मौसी जी बेदम पड़ी लाचार


चूहों ने खूब थी मौज मनाई

बिल्ली की चट करी मलाई 

बिल्ली ने तब हाथ घुमाया

चूहों का झट किया सफाया





शरद कुमार श्रीवास्तव 

नीड़ कृष्ण कुमार वर्मा द्वारा अंतर्जाल से संग्रहित वीडिओ

बसन्त  ॠतु आनेवाला होने वाला है प्रकृति आल्हादित  हो चुकी है हर घर मे हर घोसले मे आनंद  का वातावरण  है  पक्षियों के घर भी इससे अछूते नहीं हैं



 कृष्ण कुमार वर्मा


"धूप" (दोहे) रचना प्रिया देवांगन प्रियू



देखो आँगन आ गयी, प्यारी-प्यारी धूप।
सुंदर इसकी है किरण, लगती बड़ी अनूप।।

ठंडी जब बढ़ने लगे, करे धूप से प्यार।
हाथ सेंकने को सभी, रहते हैं तैयार।।

दिखते सूरज रौशनी, पक्षी करते शोर।
धूप सेंकने के लिये, उठ जाते हैं भोर।।

ठंडी मौसम आ गयी, करे सबेरे योग।
दौड़ लगाते रोज जी, काया रहे निरोग।।

धूप निकलती रोज हैं, लाती है मुस्कान।
ठंडी-ठंडी देह में, भर देती है जान।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"होली तिहार" झारखंडी होली प्रिया देवांगन "प्रियू" के रंगों के साथ

 


आवय महीना फाग के, खेले रंग गुलाल।
पीला नीला अउ हरा, रंगे सब के गाल।।
रंगे सब के गाल, खुशी से नाचय झूमय।
दाई बाबू देख, अपन नाती ला चूमय।।
ढोल नगाड़ा संग, अबड़ सब गाना गावय।
रहय सुघर परिवार, फाग होली जब आवय।।


लइका मन हर आज के, नइ खेलय अब रंग।
गोली देखय भाँग के, रहिथे जम्मो दंग।।
रहिथे जम्मो दंग, देख के मुहूंँ बनाथे।
कोनो रंग लगाय, अबड़ ओला चिल्लाथे।।
बइठे कुरिया लोग, लगाके जी वो फइका।
बदल जमाना देख, नहीं खेलय अब लइका।।

मोबाइल मा आज कल, मानय सबो तिहार।
भेजय होली रंग ला, खुश होवय परिवार।।
खुश होवय परिवार, उही मा देत बधाई।
बाँटय मया दुलार, सबो झन बहिनी भाई।।
लइका मन ला देख, करय सब बड़ इस्माइल।
कइसे कलयुग आय, रंग बांँटे मोबाइल।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"बचपन की होली" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"



खूब खेलते मिलकर होली।


बरसाते रंगों की गोली।।


मौज मनाते हम तो प्यारे।


लाल गुलाबी दिखते सारे।।



मम्मी पापा दादा दादी।


देते थे हम को आजादी।।



रंगों से हम खूब नहाते।


इक दूजे को भी नहलाते।।



नहीं समय का कोई बंधन।


खुशियों से जीते थे जीवन।।



यारी दोस्ती खूब निभाते।


साथ बैठ कर खाना खाते।।



कहाँ गयी अब वैसी होली।


फीकी दिखती इसकी गोली।।



नहीं खेलते बच्चे अब के


घर के अंदर रहते छुप के।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


रविवार, 6 मार्च 2022

ऊँगली पकड़कर जो तूने , चलना सिखाया : कृष्ण कुमार वर्मा

  


जब भी गिरा तो , मुझे उठना सिखाया ...
अनुशासन की बाते , संघर्ष का पाठ पढ़ाया ,
जीवन के उद्देश्यो से मुझको , हरपल याद कराया ...
हाँ ! थोड़े रूखे से रहे , आप हमेशा पर
आपके साये में , जी भर के सुकून मै पाया ...
बहुत कुछ बातें है , जो आपसे कह नहीं पाया 
पर खुश हूँ परिस्थितियों से , जज्बातों का 
सैलाब लाया ...
उंगली पकड़कर जो तूने , चलना सिखाया ।। 





✍️ कृष्णा वर्मा , रायपुर [ छत्तीसगढ़ ]

जिंदगी : एक संघर्ष : कृष्ण कुमार वर्मा






भाग्य का हमेशा मारा था ,
पर हिम्मत कभी ना हारा था ।
खुद को इतना मैंने तराशा था ,

कि हर परिस्थितियों से लड़ा था ...
आत्मबल को मजबूत कर ,
खुद पर विश्वास बनाया ।
डरना नही प्रतिकूल तुफानो से ,
हौसलें को हथियार बनाया ...
जिंदगी कठिन डगर है पर ,
संघर्षों से इसे आसान करो ।
वक़्त के साथ आगे बढ़ना ,
लक्ष्य पर निरन्तर काम करो ...
मेहनतकश इंसान हो , बस डटे रहो ।
जिंदगी एक सफ़र है , बस चलते रहो ...
_______________
@ कृष्ण कुमार वर्मा , रायपुर 
9009091950

"जय भोलेनाथ" स्व महेंद्र सिंह देवांगन की रचना प्रेषक प्रिया देवांगन प्रियू



शिव शंकर को जो भी पूजे, मन वांछित फल पाते हैं।
औघड़ दानी शिव भोला है, जल्दी खुश हो जाते हैं।।

शिवरात्रि के महापर्व पर, दर्शन करने जाते हैं।
श्रद्धा पूर्वक फूल पान सब, अर्पित कर के आते हैं।।

बाघाम्बर को लपटे रहते, गले नाग की माला है।
अंग भभूत लगाये रहते, कानों बिच्छी बाला है।।

धुनी रमाते पर्वत ऊपर, बैठे वह कैलाशी है।
तीन लोक में विचरण करते, वह तो घट घट वासी है।।

बड़े दयालु भोले बाबा, जो माँगो दे देते हैं।
खुश रहते हैं भक्तों से वह, कभी नहीं कुछ लेते हैं।






महेंद्र देवांगन "माटी"
प्रेषक - सुपुत्री- प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

"भोलेनाथ की महिमा" रचना प्रिया देवांगन



शिव शंकर में जटा विराजे, सर पर चाँद लगाते हैं।
सीधे-सादे भोले भाले, महादेव कहलाते हैं।।
जो भी माँगो सच्चे दिल से, पूरा वह कर जाते हैं।
श्रद्धा से जो फूल चढ़ाते, मनवांछित फल पाते हैं।।

औघड़ दानी शिव शंकर जी, नाग गले में साजे है।
पहन रुद्र की माला भोले, कर में त्रिशुल विराजे है।।
अर्पण करते दूध दही सब, श्री फल सभी चढ़ाते हैं।
बेल पत्र अर्पण करते ही, भोले खुश हो जाते है।।

गंगा माता जटा विराजे, धरती पर वह आते हैं
शिव शंकर की लीला देखो, जल भी वह बरसाते है।
व्रत रख कर माता बहनें भी, पूजा दिल से करते हैं।
मन्नत माँगे सब भोले से, झोली सब का भरते हैं।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

/ गौरी की होली //रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"



          एक छोटी सी लड़की थी। नाम था गौरी। बहुत ही सीधी-सादी लड़की। गौरी किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी। स्कूल में वह अपनी पढ़ाई-लिखाई से ही मतलब रखती थी। सभी बच्चे मैदान में खेलते थे,लेकिन वह चुपचाप कक्षा में बैठी रहती थी।  सहमी-सहमी सी रहती थी। क्लास के बच्चे जब उससे बातें करते थे, तभी वह कुछ बोलती थी। उसकी एक भी करीबी सहेली भी नहीं थी। छुट्टी में बच्चे जब खेलने के लिये उसे बुलाते थे, तो वह साफ मना कर देती थी। फिर बच्चों ने भी उसे बुलाना बंद कर दिया। गौरी को अकेला रहना ही पसंद था।
          एक बार गौरी बीमार पड़ गयी। उसके माता -पिता गौरी को लेकर अस्पताल गये। डॉक्टर ने गौरी से पूछा- " स्कूल में तुम्हारी कितनी सहेलियांँ हैं।' गौरी अब भी चुप थी। फिर उसके माता- पिता ने बताया- "यह किसी के साथ नहीं खेलती। चुपचाप और अकेली रहती है।" डॉक्टर ने गौरी को समझाया- "अगर तुम दूसरे बच्चों के साथ खेलोगी, तो जल्दी ही ठीक हो जाओगी। तुम्हारा इस तरह रहना ही तुम्हारी इस बीमारी का कारण है।"
          दो दिन बाद होली का त्यौहार था। सभी बच्चे मोहल्ले में होली खेल रहे थे। गौरी खिड़की से बच्चों को होली खेलते व पिचकारी चलाते देख रही थी; तो उसका भी मन होली खेलने को हुआ। लेकिन किसी से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। वह चुप चाप देखती रही। बच्चे होली खेलते-खेलते खिड़की के पास आये। गौरी से कहने लगे कि आओ तुम भी हम लोगों के साथ होली खेलो। बहुत मजा आएगा।
        गौरी एक ही बार में ही मान गयी। फौरन घर से बाहर आई। सबसे पहले गौरी ने अपने हाथों से सब को रंग-गुलाल लगाया। सभी बच्चों ने खुश होकर गौरी के चेहरे पर रंग-गुलाल लगाया। उस दिन से गौरी सबके साथ मिल-जुल कर रहने लगी। इस बार की होली यादगार रही।





          


प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

चिड़िया रानी चिड़िया रानी हमे सुनाओ अपनी कहानी : सर्वेश सुमन का बालगीत

 



चिड़िया रानी चिड़िया रानी

हमे सुनाओ अपनी कहानी


कौन देश से आई हो तुम

किसका संदेशा लाई हो तुम

कौन तुम्हारे मात पिता हैं

किसकी हो तुम  बिटिया रानी

हमे सुनाओ  अपनी कहानी


रंग बिरंगे पंखों वाली

उड़ती फिरती डाली डाली

चुन -चुन दाना खाती हो तुम

पीती फिरती बहता पानी

हमे सुनाओ  अपनी कहानी


काश मुझे भी पर आ जाते

संग तम्हारे मै उड़ जाती

दूर गगन की करती सैर

कहलाती परियों की रानी

चिड़िया रानी चिड़िया रानी

हमे सुनाओ अपनी कहानी



सर्वेश सुमन

 पल्लवपुरम फेज 1

मेरठ 250001



प्यारी बिल्ली : प्रिन्सेज डॉल से साभार रचना शरद कुमार श्रीवास्तव