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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

आजादी की चाहत :स्वतंत्रता दिवस विशेष : बालकथा : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

स्वतन्त्रता दिवस पर प्रिया देवांगन  प्रियू की रचना पुन: प्रकाशित  की जा रही है



 



           एक जंगल था बागबाहरा। हर पशु-पक्षी का अपना अलग समुदाय था। सब खुश थे। हाथियों का भी एक दल था। दल का नेतृत्व चंदा नाम की हथिनी करती थी। उस दल में एक हिरणी भी थी। नाम था किटी। उसे हाथियों के साथ रहने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। उसकी विवशता थी कि उसके माता-पिता ने प्राण त्यागते समय उसे हाथी-दल को सौंप दिया था। शुरुआत में हाथियों का व्यवहार किटी के प्रति अच्छा था, पर समय के साथ उनके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। अब वे किटी के साथ गुलाम सा व्यवहार किया करते थे। किटी उनसे तंग आ चुकी थी। उसकी एक ही चाहत थी हाथियों से आजादी।

             किटी हमेशा सोचती रहती थी कि उसे आजादी कैसे और कब मिलेगी। अपने माता-पिता को याद कर के बहुत रोती थी। उसे इसलिए भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि यह सिर्फ हाथियों का समुदाय था। उन सब मे किटी अकेली महसूस करती थी। उनकी बातें भी किटी को नहीं समझ नहीं आती थी। चंदा हथिनी का एक बेटा था- मौजी। दल का अकेला वारिस था। मौजी और किटी में अच्छी मित्रता थी। दोनों साथ में खेलते कूदते थे। लेकिन चंदा को इन दोनों की दोस्ती बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी । चंदा को किटी से काम करवाने में बस ज्यादा दिलचस्पी थी। उसे मौजी से दूर रखने का पूरा प्रयास करती थी।

          कुछ दिन बाद पन्द्रह अगस्त आने वाला था। जंगल के सभी जानवर पन्द्रह अगस्त मनाने की तैयारी में लग गए। हाथी समुदाय ने इस वर्ष बड़े धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था। जंगल के सभी पशु-पक्षियों को भी आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया। जंगल को दुल्हन की तरह सजाया गया। फल-फूल , मिठाई , बूंदी, नये-नये पकवानों की महक जंगल में फैलने लगी थी। कार्यक्रम में खेल-प्रतियोगिता, गीत-कहानी , भाषण शामिल थे। मौजी और किटी बहुत खुश थे। मौजी और किटी चंदा हथिनी से पूछ ही डाले- "यह सब हम क्यों कर रहें हैं ? जंगल को क्यों इस तरह सजाया जा रहा है ?" चंदा हथिनी मुस्कुराते हुए बोली- "पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को हम अंग्रेजों के गुलामी से आजाद हुए थे। इसलिए हम हर साल इसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं; और तिरंगा भी फहराते हैं इस दिन।" तभी किटी खुशी से उछल पड़ी और बोली कि क्या मुझे भी यहाँ से आजाद कर दिया जाएगा। क्या मैं भी अपनी जाति-समुदाय में जा सकती हूँ।" चंदा किटी को घूरती हुई बोली- "बिल्कुल नहीं। तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हारी जिम्मेदारी हमें दी है। चिंता मत करो, तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी।"

            किटी की आँखों से आँसू बहने लगे। मौजी ने चंदा हथिनी से धीमे स्वर में कहा- "माँ ! हम किटी को आजाद क्यों नहीं कर सकते हैं  ? उसे हिरण-समुदाय से अलग क्यों रखा गया है ? अभी आपने ही बताया कि स्वतंत्रता का मतलब आजादी होती है, फिर किटी को क्यों नहीं मिल सकती आजादी।" चंदा हथिनी बिना कुछ बोले वहाँ से चली गयी। उसके पीछे-पीछे मौजी भी जाने लगा। बार-बार मौजी चंदा को एक ही प्रश्न करने लगा। चंदा परेशान हो गयी। आखिर चंदा हथिनी सोचने लगी। फिर मौजी ने किटी को कहा- "तुम चिंता मत करो किटी। मैं तुम्हे आजादी दिलाऊँगा। देखना, स्वतंत्रता दिवस हम सब के लिए यादगार होगा।"

            15 अगस्त आया। जंगल में सुबह सात बजे चंदा हथिनी के द्वारा ध्वजारोहण होना था। चिड़ियों की चहक गूँजने लगी। सभी शाकाहारी जानवर- नीलगाय, चीतल, बारहसिंगा, खरगोश और हिरण समुदाय भी शामिल हुए। किटी हिरणियों को देख कर उछल पड़ी। जैसे ही उनसे मिलने जाने वाली थी कि चंदा हथिनी ने उसको रोक लिया। किटी सहम गयी। वहीं मौजी खड़ा देखता रहा। चंदा हथिनी ने ध्वजारोहण किया। राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत हुआ। फिर कविता पाठ शुरू किया गया। किटी और मौजी भी कविता पाठ में शामिल थे। सबने बारी-बारी से कविता, गीत, भाषण दिया। मौजी ने अपने भाषण में चंदा हथिनी की ओर इशारा करते हुए कहा- "देश तो आजाद हो गया है, फिर भी न जाने कितने लोग अभी भी गुलामी में जीवन यापन कर रहे हैं। कुछ लोग दूसरों को नौकर बनाकर रखा है। कहीं तो पूरे परिवार पर अपना हक जमा बैठे हैं। बच्चों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। दूसरे बच्चों का लालन-पालन की जिम्मेदारी लेकर उनका शोषण कर रहे हैं।" सब समझ रहे थे कि किटी हिरणी और चंदा हथनी की बात हो रही है। मौजी ने अपनी बात जारी रखी- "एक बच्ची को उसके परिवार से दूर रख कर किसी को क्या मिलेगा भगवान जाने। उस बच्ची की बद्दुआ जो कभी आगे बढ़ने नहीं देगी। माँ, आज आप किटी को आजाद कर दीजिए। याद है, आपने कहा था कि बेटा तुम्हे इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप मुझे तोहफा देंगी।। आज मैं सब के सामने आप से यही माँगता हूँ कि इस नन्ही-सी जान किटी को छोड़ दीजिए। इससे बड़ा तोहफा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता। सभी के आँखों से आँसू बहने लगे। सबको लगने लगा कि छोटा सा बच्चा भरी सभा में बहुत अच्छी बातें बोल रहा है। माँ, आप बताइए कि अगर मुझे आप से दूर कर दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा। क्या आप जिंदा रह पाएँगी मेरे बिना। आज किटी के माता-पिता नहीं है तो आप उसके साथ ऐसा क्यों कर रही हैं।" अपने बेटे मौजी की बातों से चंदा का दिल पिघल गया। उसने किटी हिरणी को आजाद कर दी। सब ने मौजी की जी खोलकर तारीफ की। इतना छोटा सा बच्चा इतना बड़ा काम कर दिया। इस तरह किटी हिरणी को हाथियों से आजादी मिली, जिसकी उसे चाहत थी। 

                 



रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

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