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गुरुवार, 28 सितंबर 2023

अमर शहीद भगत सिंह का 116 जन्मोत्सव

 


विगत  कल  अमर  शहीद भगत् सिंह का 116 वां जन्म दिन  था  । उनको अपनी  श्रद्धांजलि  मैने निम्नलिखित  पंक्तियों मे दी थी  । वह आप सब के  साथ  बाँट  रहा हूँ ।


अमर  शहीद भगत् सिंह  


वर्ष 1907 सितंबर  27 को भारत  का ऐसा  लाल हुआ 

शीश चढाने  भारत  माँ  को  अपने  आप  मिसाल  हुआ 

 सरदार किशन सिंह ,माँ  विद्यावती का प्यारा ला ल हुआ 

लायलपुर  के  बंगा गांव  का बेटा इस धरती पर कमाल हुआ 

नाम भगत सिंह  सपूत  देश  का  अंग्रेजो  का काल हुआ 


लाला जी पर नृशंसता  का  बदला उसने खूब  कमाल लिया 

राजगुरू  संग सन 28 मे सैन्डर्स का काम  तमाम  किया 

 वीर सिंह  था भारत  माँ की  खातिर फाँसी को  लगा लिया  गला

22 वर्ष  की  उम्र  में फांसी  को गले लगा  लिया  

हंस के चढा  सूली पर इक पल भी उफ न किया


श्रद्धानत्


शरद कुमार श्रीवास्तव

इशिका का होमवर्क शरद कुमार श्रीवास्तव

 



इशिका अब आठ साल  की हो गई  है। वह अपनी मम्मी पापा के पास  रहती है । मम्मी तो इशिका को बहुत प्यार  करती हैं पापा की भी वह बहुत  दुलारी है ।   अभी दो साल  पहले तक स्कूल  जाते समय  मम्मी दूध  का गिलास  पकड़कर  इशिका को पिलाती थी और  उसके पापा तब उसका स्कूलबैग  ठीक  करते थे ।  इतनी मिन्नत इतने नखड़ों के बाद मे जब वह दूध  नहीं पीती थी और स्कूलवैन आ जाती थी तो पापा उसे स्कूल वैन मे छोड़ आते थे।  

इशी के स्कूलबैग  मे मम्मी टिफिन बॉक्स  रख देती थी  लेकिन  टिफिन बॉक्स  ऐसे का ऐसे ही आ जाता था फिर दिन के खाने की टेबल पर वह टिफिन  खाया जाता था ।   दरअसल  उस के स्कूल  से लौट कर  आने के समय पापा मम्मी अपने आफिस  मे रहते थे और  बड़ा  भाई अपनी पढ़ाई  लिखाई  मे व्यस्त  रहता था ।  बाद मे बड़ा भाई जब पढ़ाई लिखाई  से कुछ  खाली हो जाता था तो ओवेन  मे खाना गर्म  कर अपना और इशिका का खाना टेबल  पर  लगाता था ।

मम्मी तबतक  ऑफिस  से आचुकी होती थीं और नहा धोकर आ जाती और तीनो लोग मिलकर  खाना खाते थे।   मम्मी को किसी प्रकार  से पता नहीं चलता था कि इशी ने स्कूल  मे टिफिन  नहीं खाया है ।  परन्तु एक दिन सिंक मे पड़े टिफिन बॉक्स  को देखकर मम्मी को पता चल ही गया और आया ने भी बताया कि अक्सर  टिफिन बॉक्स  मे बिनाखाया खाना फिकता है।

मम्मी ने जब इशिका से पूछा कि ऐसा क्यों होता है कि तुम टिफिन  बिना खाए लौटकर  ले आती हो तब उसने बड़ी मासूमियत  से कहा कि टिफिन  के समय वो होमवर्क  कर लेती है ताकि खेलने के लिए  कुछ  समय  मिल जाय ।  दरअसल  घर मे लन्च के थोड़ी देर बाद  ही ट्यूशन टीचर  आ जाते है और  उनके दिये होमवर्क  के लिए  घर  मे समय नहीं मिलता है। 

मम्मी समझ गई  और वह  स्वयं ही इशिता की पढ़ाई लिखाई  देखने लगीं और  इशिता भी अब खुश  रहने लगी



शरद कुमार श्रीवास्तव 

ओ कान्हा : रचना : प्रिया देवांगन "प्रियू"

 









ओ कान्हा! 


हाथ थाम लो आकर मेरे,


             कोई नहीं सहारा है।


मन कितना विचलित हो उठता,


                 ह्रदय सिसक कर रोता है,


जरा बता दे तू गिरधारी,


              ऐसा ही क्यों होता है।


भीड़ भरी है इस दुनिया में,


             लेकिन कौन हमारा है।।




जीवन इक अनमोल रतन है,


            जैसे कोमल सी कलियांँ,


कदम बढ़ाऊंँ गर मैं आगे,


            हर पथ पर रोके छलिया।


किस–किस को मैं व्यथा सुनाऊंँ


            करते सभी किनारा हैं।।




बनकर दासी मैं चरणों में,


            भक्ति भाव सम रम जाऊंँ।


शाम–सबेरे रज के कण–कण,


            माथे मैं तिलक लगाऊंँ।


जगमग हो जायेगा जीवन,


            बन के मेघ सितारा है।।




सब कुछ तो तेरे ही वश में,


            तू ही है पालनहारी।


कैसी लीला रचते कान्हा,


            हम पर पड़ जाता भारी,


ज्ञात तुम्हें है तेरे बिन अब,


             होता कहांँ गुजारा है।।







प्रिया देवांगन "प्रियू"


राजिम


जिला - गरियाबंद


छत्तीसगढ़


Priyadewangan1997@gmail.com

रविवार, 17 सितंबर 2023

जीवन बसंत का सुआगमन : श्रीमती वीणा श्रीवास्तव

"नाना की पिटारी" पत्रिका के प्रकाशन की  प्रेरणास्रोत स्व. श्रीमती  वीना श्रीवास्तव की 15वीं पुण्यतिथी 27/08 को थी इस अवसर पर उनकी  एक अनमोल रचना हम  पुन: प्रस्तुत  कर  रहे है॔


जीवन बसंत का सुआगमन


मन के छोटे से उपवन मे

फूल खिले हैं रंग बिरंगे

जिन्हें देखकर उठती रहती

मन में मेरे नई तरंगे

इन फूलों पर भँवरे मंडराकर

गुनगुनाकरगीत सुना कर

इनका मीठा रस पी जाकर

इठ्लायेंगे मस्ती में

तितलियां झूमेंगीं मन की बस्ती में

स्वछन्द बिहंगजन फुदकफुदक कर

इस डाली से उस डाली पर जाकर

फूलों पे या पत्तों में छुप जाकर

मधुर-मदिर कल्लोल सुनाकर

चिड़ियाँ,भी मेरा मन हर्षाएँगी,

प्रेम सुधा बरसा जाएँगी

सुरभि प्रवाहित मस्त पवन

जीवन बसंत का सुआगमन

सिंचित करदेगा जीवन पौध को

भर देगा हर्षित अनमोल उमंग अनंत





वीना श्रीवास्तव

शनिवार, 16 सितंबर 2023

मेरी बहना : रक्षाबंधन की रचना : प्रिया देवांगन प्रियू

 


बँधी वो प्रीत की डोरी, कलाई याद आती है।
रसीले स्वाद हो जिसकी,मिठाई याद आती है।।

कहूँ कैसे भला उसको, कि कितनी प्रीत है उससे।
कभी भाई बहन की ये, लड़ाई याद आती है।।

नहीं ख्वाहिश अगर पूरी, जरा सी रूठ जाती थी।
रखे वो ख्याल जब मेरी,दवाई याद आती है।।

कभी मैं खेल में हारा,चिढ़ाती औ सताती थी।
मगर हर जीत में मेरी,बधाई याद आती है।।

बिना उसके यहाँ घर में, नहीं पल भी रहा जाता।
चली क्यों दूर वह मुझसे, जुदाई याद आती है।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
                      


आपसी सहयोग का अनुपम वीडियो


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अपना पराया : एक लघुकथा : रचना प्रिया देवांगन प्रियू





          "अभी तक खेत से माँ-बाबूजी दोनों नहीं आये हैं। कम से कम माँ को तो आ ही जाना चाहिए था। पता नहीं, इतनी बारिश में वे दोनों कहाँ होंगे।" घर से बार-बार निकल कर सुमन राधे और गौरी की राह ताक रही थी।
          शाम का समय था। घड़ी की सुइयाँ पाँच बजने का इशारा कर रही थी। चूँकि बारिश का मौसम था; सो घटाटोप अंधेरा छाने लगा था। तरह–तरह के कीट–पतंगे व झींगुर की आवाज सुमन के कानों को छू रही थी। सुमन बहुत डरी हुई थी आज। कई तरह की शंकाएँ सुमन को घेरती जा रही थी- "पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था; पता नहीं आज अचानक क्या हो गया। वे दोनों खेत से जल्दी आ जाया करते थे।"
         सुमन के दिलो-दिमाग में बड़ा विचलन था। उसका किसी कार्य में मन ही नहीं लग रहा था। देखते ही देखते गरजना शुरू हो गया। बिजली भी चमकने लगी। तभी उसे कुछ दिन पहले गाँव में हुई एक घटना याद आने लगी। वह सहम गयी। खेतों में काम कर रही महिलाओं के ऊपर गाज जो गिर गयी थी। सब ने दम तोड़ दिया था। बार–बार वह दृश्य आँखों के सामने झूल रहा था रहा था। अब तो सुमन की मन ही मन बात हो रही थी कि माँ–बाबू जी दोनों से मैंने कहा था कि जल्दी आना। फिर भी वे मेरी बातें नहीं सुनते। 
          जैसे ही सुमन घर अंदर आयी, बिजली चली गयी। जैसे–तैसे उसने मोमबत्ती जलाया। घर में रोशनी हुई। मन थोड़ा शांत लगा। सुमन घबराने लगी थी- "हे प्रभु ! मेरे माँ–बाबू जी जल्दी घर आ जाए। मुझे बहुत घबराहट हो रही है। कहीं... कुछ...!" 
          थोड़ी देर बाद सुमन को राधे की आवाज सुनाई दी- "सुमन ....! अरी ओ सुमन बिटिया ! जरा मोमबत्ती बाहर लाना तो; बहुत अँधेरा है।" सुमन के जान में जान आई। "जी बाबू जी...." कहते हुए बाहर निकली। सुमन की आँखें माँ को ढूँढ रही थी- "बाबू जी, माँ कहाँ है ? आप लोगों ने इतनी देर क्यों लगा दी आने में ? देखो न, बस बारिश होने ही वाली है; जल्दी आना चाहिए था ना। क्या कर रहे थे आप लोग अभी तक ?"
          सुमन का तो आज सवाल पे सवाल हो रहा था। तभी पीछे से माँ की परछाई नजर आयी। सुमन मुँह बनाते हुए बोली- "आप दोनों को तो मेरी बिल्कुल चिंता ही नहीं है।" तभी अचानक अपनी माँ गौरी को देखते ही सुमन की आँखें फटी की फटी रह गयी। उनकी गोद में एक छोटा सा घायल बछड़ा था। 
          सुमन चुपचाप घर के अंदर चली गयी। सुमन का गुस्सा और भी तेज हो गया था। बोलने लगी कि इतनी रात हो गयी; और आप लोग इस बछड़े को लाये। इसकी क्या जरूरत थी। मैं यहाँ परेशान हूँ। तरह–तरह के मन में ख्याल आ रहे हैं और आप लोग, बस !" 
          राधे और गौरी ने सुमन को शांत करते हुए पूरी घटना की जानकारी दी- "यह बछड़ा कुछ देर पहले ही जन्म लिया था और इसकी माँ उसे छोड़ कर कहीं चली गयी थी। बछड़ा हम्मा...हम्मा... कर रहा था। इसकी मदद करने वाला कोई नहीं दिखा। तेज बारिश भी हो रही थी। बेचारा भीग रहा था। हमें लगा कि बछड़ा बेसहारा है। आधी रात को भला कहाँ जायेगा ? यदि कभी कोई तुम्हें मदद माँगे तो क्या तुम छोड़ कर आ जाओगी सुमन ? मदद नहीं करोगी ? अरे ये तो बेचारा बोल नहीं सकता , तो क्या हम इनकी भाषा भी ना समझें। हमें सब की मदद करनी चाहिए सुमन।" गौरी बोलती ही रही- "सुमन, तुम ही बताओ। अभी थोड़ी देर पहले तुम हम दोनों के बगैर कैसे तड़प रही थी ? जबकि तुम्हें तो पता ही है कि हम आयेंगे ही; फिर भी?" अपने माँ और बाबू जी की बातें सुन सुमन ने अपनी ओर देखते उस मासूम बछड़े को गले से लगा लिया। राधे और गौरी सुमन व बछड़े दोनों को सहला रहे थे
                                




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

मम्मी जल्दी आना : रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"




सुन लो बातें मेरी मम्मी,
              तीज नहीं मैं जाऊंँगा,
पापा दादी के संँग रहकर,
               उनका हाथ बटाऊंँगा।।

इम्तिहान सर के ऊपर है,
              टीचर रोज पढ़ाते हैं,
होमवर्क जो ना करते हैं, 
                 उसको डांँट लगाते हैं।।

नानी के घर मैं जाऊंँ तो,
              कोर्स नहीं कर पाऊंँगा,
अच्छे नंबर सब लायेंगे,
               मैं पीछे रह जाऊंँगा।।

चिंता ना करना मम्मी तुम, 
                  मीठे पकवान बनाना,
नानी मामा मौसी के संँग, 
              फोटो भी खूब खिचाना।।

सुबह–शाम तुम फोन लगाकर।
                  सबसे बातें करवाना,
मेरी प्यारी–प्यारी मम्मी,
               जल्दी से घर तुम आना।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com