गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
चुटकुले शरद कुमार श्रीवास्तव
चंकू, मंकू और जंगल : अंजू जैन गुप्त
एक दिन रिया और टिया की मम्मी ने कहा , बच्चो देखो आज बाहर घनघोर बादल छाए हुए है लगता है कि आज ज़ोरों से वर्षा होने वाली है, मैं जल्दी से बाज़ार जाकर शाम के लिए कुछ फल व सब्जियाँ ले आती हूँ।तब तक तुम्हारे पापा भी दफ़्तर से लौट आएँगे।परंतु मैं जब तक बाज़ार से लौट कर नही आती तुम दोनों अंदर ही रहना।अब चलो जल्दी करो सारे दरवाज़े व खिड़कियाँ भी बंद कर लो।
रिया कहती है , ठीक है मम्मा आप जाओ और जल्दी लौट आना तभी टिया कहती है,सुनो मम्मा आप आते हुए हमारे लिए आइसक्रीम भी ले आना।
मम्मा कहती है ठीक है बच्चो, अब अंदर से घर बन्द कर लो और जब तक मैं नही आती तुम दोनों लड़ना नही। यह कहकर मम्मा चली जाती है।
अब दोनों बहनें ड्राइंगरूम में बैठकर टी.वी.देखने लगती हैं,परंतु कहीं से एक खिड़की खुली रह जाती है और उनके घर में बंदर घुस आते हैं।टिया जैसे ही बंदरों को देखती है वह ज़ोर से रिया दीदी बंदर-बंदर चिल्लाती हुई सोफे के ऊपर चढ़ जाती है और बंदर को देखकर दोनों बहनें डर जाती हैं।
तभी बंदर भी उन बच्चियों को अकेला देखकर तुरंत ही खिड़की के बाहर लौट जाते हैं। और बाहर से ही कहते हैं कि ,"बच्चो तुम हम से डरो नही मैं चंकू और ये मेरा मित्र मंकू है।हम तुम्हें काटने या तंग करने नही आए हैं ।हमें तो ज़ोरों से भूख लगी थी।हमने दो दिन से कुछ खाया भी नही इसलिए हम तो यहाँ खाने के लिए कुछ ढूँढने आए थे।"
तभी टिया बोल पढ़ती है कि, खाना ,खाना है तो अपने घर जंगल में जाकर खाओ ; यहाँ हमारे घर क्यों आए हो?
तभी चंकू कहता है टिया तुम सही कह रही हो ,पर क्या तुम्हें पता है कि आजकल सारे बड़े - बड़े बिल्डरों ने बिल्डिंग और फैक्ट्री लगाने के लिए हमारे जंगलों व पेड़ - पौधे को काट दिया है।अब तुम ही बताओ हम कहाँ जाकर रहे?
टिया कहती है रहने दो चंकू-मंकू तुम हमें बेवकूफ मत बनाओ,तभी रिया बोल पड़ती है नहीं-नहीं बहन ये दोनों तो सही कह रहे हैं।तुम अभी छोटी हो ,तुम्हें पता नही है परंतु गुजरात, फरीदाबाद तथा अन्य जगहों पर भी ऐसा ही हो रहा हैं।कहीं पर जंगलों व पेड़-पौधो को काटकर माॅल बनाए जा रहे हैं तो कहीं पर फैक्ट्री व होटल इत्यादि बनाए जा रहे हैं।
ये सब सुनने के बाद टिया कहती है पर दीदी ये तो गलत है,हमें किसी का भी घर नही तोड़ना चाहिए या किसी के भी रहने की जगह को नष्ट करना गलत है और इससे तो हमारे पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ रहा है और प्रदूषण भी हो रहा है।तभी रिया पूछती है ,पर दीदी कैसे?
रिया समझाती है ,"यदि हम पेड़-पौधो को काट देंगे तो वर्षा नही होगी और यदि वर्षा नही होगी तो हम खेतों में अनाज भी नही उगा पाएँगे। इससे धरती को पानी भी नही मिल पाएगा जिससे कहीं पर सूखा पड़ जाएगा तो किसान अनाज भी नही उगा पाएँगे ।दूसरा इससे पर्यावरण को भी नुकसान होगा,हमें ताज़ी हवा व आक्सीजन भी भरपूर मात्रा में नही मिल पाएगी।"
तभी टिया कहती है, हाँ- हाँ दीदी मेरी मैम भी यही कहती है कि अगर हमें आक्सीजन नही मिलेगी तो हम साँस भी नही ले पाएँगे।
हाँ छुटकी तुम सही कह रही हो जंगल और पेड़ों के कट जाने से ऋतुओं का चरण भी बिगड़ गया हैं और गर्मी में बहुत गर्मी तो सर्दी में बहुत सर्दी होने लगी है ।तभी
चंकू-मंकू कहते है हाँ-हाँ रिया दीदी आप सही कह रहे हो,चलो अब हम भी चलते हैं।
अरे!नहीं-नहीं, चंकू-मंकू रुको टिया तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेने गई है।
तभी टिया उनके लिए सेब🍏,केला🍌 व अंगूर 🍇 ले आती हैं और उन्हें दे देती है।वे दोनों खाकर बहुत खुश होते हैं।
रिया कहती है, तुम दोनों चिन्ता मत करो हमारे पापा संपादक हैं तो हम उनसे बोलेंगे कि इस समस्या के बारे में अपने अखबार में छापे ताकि सब व्यक्तियों को जागरूक किया जा सके और इस समस्या का कुछ समाधान निकल पाए।
चंकू, मंकू रिया और टिया को धन्यवाद कहते है ।
तभी दोनों बहनें कहती हैं कि,चंकू, मंकू तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा और जब भी तुम्हें कुछ खाना हो तुम यहाँ आ सकते 👋 बायॅ-बाॅय
~अंजू जैन गुप्ता
गुरूग्राम
बाल रचना / उदास चीता : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी
सोच रहा था चीता कैसे,
आवे हाथ शिकार,
घूम रहे जंगल के अंदर,
शेर बड़े खूंखार l
हर कोने में गूंज रही है,
उनकी क्रूर दहाड़,
जंगल में घुसने का कोई,
मुझपर नहीं जुगाड़।
देख हिरण को दौड़ लगाते,
चीता हुआ उदास,
जंगल के राजा के सम्मुख,
मिली धूल में आस।
लेट गया धरती पर चीता,
होकर मरा समान,
मक्खी लगने पर भी उसने,
नहीं हिलाया कान।
भालू ,बंदर,हिरण, लोमड़ी,
पहुंचे उसके पास,
कान लगाकर लगे देखने,
चलती है क्या साँस।
मारा तुरत झपटटा लेकिन,
चूका उसका वार,
छूट गया चीते के मुँह में,
आया हुआ शिकार।
झुंड तभी शेरों का उसको,
आते दिया दिखाई,
जान बचाने को चीते ने,
सरपट दौड़ लगाई।
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वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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धरती का बच्चा : प्रदीप कुमार शुक्ल
नन्हा बीज आलसी था,
था सबसे छिपकर सोया
साफ हवा, धूप, बारिश के
सपनों मे था खोया
मिट्टी ने उसको दुलराया -
उठो बीज अब प्यारे
पानी पी कर चलो, हवा में
खेलो राजदुलारे
नींद खुली, आँखों को मलता
जब वह बाहर आया
धूल, धुआँ, चिड़चिड़ी हवा को
पाकर वह घबराया
लगा छींकने, खाँसा फिर
बीमार हो गया गोया
नन्हा बीज बना जब पौधा
बहुत दिनों तक रोया
डॉक्टर प्रदीप कुमार शुक्ल
लखनऊ
(फेसबुक से साभार)
अधूरी ख्वाहिश : लघुकथा प्रिया देवांगन "प्रियू"
मम्मी....मम्मी..... सुनिए न! क्या हुआ मेरी गुड़िया? प्रातःकाल से इतना शोर क्यों मचा रही हो? मम्मी.....मिन्नी स्वरबद्ध होकर बोली और आ कर पीछे से लिपट गई। अच्छा बताओ क्या बात है? मिन्नी बोली– "मम्मी मेरे दिमाग में बहुत अच्छा आइडिया आया है, आज के लिए।" ओह! ऐसा आज कुछ खास दिन है क्या? मिन्नी अपनी आँखें बड़ी–बड़ी कर हैरान नज़रों से मम्मी को देखने लगी; तभी किचन में पापा जी भी आ गए और दोनों से पूछने लगे- "क्या बात है? मांँ–बेटी में क्या खुसुर–फुसुर हो रही है भई....!" पापा जी थोड़ा मजाकिया अंदाज में बोले। नहीं... नहीं...ऐसी कोई बात नहीं है पापाजी कह कर मिन्नी किचन से चली गई। पापा जी के ऑफिस जाने के बाद मिन्नी बोली– "क्या मम्मी आप भी न..." ऐसा बोलते ही शांत बैठ गई। ओहहो! ठीक है बाबा बताओ , क्या–क्या करना है? मिन्नी ने अपनी मम्मी को पूरी योजना बताई। मम्मी बहुत खुश हुई और बोली एक बिटिया ही तो होती है, अपने पापा के जीवन में हर छोटा–बड़ा सपना को साकार करने में लगी रहती है और बिल्कुल माँ जैसा ख्याल भी रखती है, भाव–विभोर हो मम्मी की आँखें भर आईं। शाम होते ही पापा जी ऑफिस से घर लौटे, थोड़ी देर बाद मिन्नी पापा जी से बोली- "पापा जी चलिए न मेरे कमरे में;" क्यों?पापा जी बोले। ऐसे ही....कुछ दिखाना है आपको। अच्छा चलो; मम्मी पापा और मिन्नी तीनों कमरे में गए। कमरे में बहुत अंधेरा था। बिटिया लाइट तो जलाओ। धैर्य रखिए बाबा....।
इतनी भी क्या जल्दी है! मिन्नी पापा की लाडली जो थी। ओके बिटिया...।
लाइट जलाते ही पापा जी विस्मित भाव से देखने लगे। सहसा फूलों की वर्षा होने लगी, छोटे–छोटे लाइट जुगनुओं की तरह चमकने लगे, नीचे धरती पर मखमली घास बिछी थी, कोयल के सुमधुर आवाज की तरह धीमे स्वर में गाना चल रहा था, एक प्यार का नगमा है............! टी–टेबल में बहुत सारी मिठाईयाँ, फल–फूल, केककट करते ही मिन्नी पापा जी को एक गिफ्ट पैकिंग आहिस्ता से खोलने के लिए बोली। पापा जी भी मुस्कुराते हुए आहिस्ता–आहिस्ता खोलने लगे। खोलते ही उनकी आँखें नम हो गईं और मिन्नी को गले से लगा लिया। पिता, बेटी को प्यार भरी नज़रों से देखने लगे। उन्होंने देखा पापा की एक फेवरेट लैपटॉप उनके सामने रखी हुई है।जिसकी पापा जी को बरसों से अभिलाषा थी। बेटा ये लैपटॉप!! ना...ना...पापा जी कुछ न कहिए ये आपके बहुत काम की है, आप दिन–रात, जाग–जाग कर मोबाइल में ही अपनी कविताएं टाइप करते रहते हैं। सो..... मैंने और मम्मी ने सोचा क्यों न पापा जी को सरप्राइज दे दें। पापा जी बोले– "आज मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई की पापा की ख्वाहिश पूरी कर रही है!" मिन्नी पापा को गले लगा कर जन्मदिवस की बधाई देती हुई, हैप्पी बर्थडे पापा...हैप्पी बर्थ डे माई डियर पापा जी...!
तभी कानों में मम्मी की आवाज सुनाई देने लगी.......मिन्नी अरी ओ गुड़िया, उठो! बेटा भोर हो गई। कितनी देर तक सोयेगी, ये लड़की भी न, पता नहीं आज इसे क्या हो गया? मिन्नी की आँखें खुलीं, चहुँओर सन्नाटा छाया था। जो कुछ भी हुआ एक स्वप्न था। मिन्नी, मम्मी को गले लगाती हुई अपने पापा को याद कर सिसकियांँ भर–भर कर रोने लगी।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com