ब्लॉग आर्काइव

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

आदिदेव महादेव

 






जटा विराज गंगधार शीश चंद्र सोहते।
निहारते स्वरूप तेज तीन लोक मोहते।।
विराजमान कंठ नाग है त्रिशूल हाथ में।
जहाँ–जहाँ चले शिवा सदैव बैल साथ में।।

लपेट बाघ छाल अंग भस्म देह साजते।
बढ़े महेश पाँव व्योम ताल ढोल बाजते।।
निमग्न भूतनाथ ध्यान बैठ मुक्ति धाम में।
शिवा धरा समीर अग्नि नीर आसमान में।।

शिवा प्रसन्न होय बेलपत्र दूध नीर से।
प्रसून भांग घी दही गुलाल औ अबीर से।।
नमः शिवाय जाप आठ याम सोमवार को।
करे पुकार दर्श देवता लगे कतार को।।

खुले त्रिनेत्र क्रोध ताप विश्व धूम्र सा जले।
कृपा करे महेश तो मनुष्य मोद में पले।।
करे प्रणाम भक्त नीलकंठ के स्वरूप को।
कृपालु तेजपुंज आदिदेवता अनूप को।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


                 
                    

देर आए दुरस्त आए

 





क्षितिज और हर्ष बड़े ही अच्छे मित्र थे।  दोनों हमेशा एक साथ खेलते थे और साथ ही स्कूल भी जाते थे। धीरे-धीरे दोनों की कक्षा और उम्र बढ़ती जा रही थी।क्षितिज पढ़ाई में अच्छा था और हर्ष खेलकूद में।  जैसे ही वे दोनों 13 वर्ष के हुए थोड़े शरारती हो गए।  कभी छोटे बच्चों को तंग करते तो कभी प्लास्टिक की थैलियों को मुँह से फुलाकर गुब्बारे या पंतग बनाकर लापरवाही से सड़क पर कहीं भी फेंक देते थे।उनकी मम्मी उन्हें मना भी करती थी, पर तब भी वे

दोनों नही मानते थे ऐसी शैतानियाँ करते रहते थे।

क्षितिज की माँ ने उसे समझाया," कि बेटा प्लास्टिक गलता नही है ।   यह हमारे पर्यावरण और जानवरों के लिए हानिकारक होता है।" क्षितिज माँ की बात सुनकर हँसने लगता  है और कहने लगा," कि होगा माँ इससे हमें क्या।" यह कहकर वह पार्क की ओर चला जाता है।

अगली सुबह जब वह स्कूल के लिए तैयार हो रहा था तभी दरवाज़े की घंटी बजी उसने दरवाज़ा खोला तो दरवाज़े पर दूधवाले भैया रामू खड़ा था।आज वह दूध नही लाया था।

क्षितिज ने जब देखा कि आज तो रामू भैया दूध ही नही लाए क्षितिज परेशान होकर कहने लगता है कि, काका -काका आज आप दूध नही लाए ;खाली हाथ क्यों आए हो? तब रामू रोने लगा  और बोला कल जब मेरी गाये चरने गई थी तब उन्होंने घास-फूस के साथ-साथ सड़क पर पड़ा हुआ  प्लास्टिक भी खा लिया था और घर  वापिस आते ही उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी और वे सभी मर गई इसलिए आज मैं दूध नही ला पाया। इतना कहकर वह फिर से रोने लगा। रामू काका को रोता हुआ देखकर क्षितिज भी दुखी हो गया । वह जल्दी से अंदर गया  और अपनी मम्मा को कहता है कि मम्मा-मम्मा जल्दी इधर आओ ,देखो रामू काका रो रहे हैं। माँ के आने पर क्षितिज सारी बात अपनी मम्मा को बताता है।

क्षितिज की मम्मी  रामू - काका से कहती है कि रामू तुम  अब रोना बंद करो और जाओ ,जाकर नई गायें खरीदकर ले आओ इस पर रामू कहता है," कि मैम मैं तो एक गरीब आदमी हूँ दूध बेचकर ही अपना गुज़ारा करता हूँ ।मेरे पास ज्यादा पैसे भी नही है।अब मैं अपने और बच्चों के खर्चे कैसे पूरे करूँगा।"

यह सुनकर क्षितिज को बहुत बुरा लगता है और वह अपने कमरे में चला जाता है।वह तुरंत ही अलमारी से अपनी गुल्लक से सारे पैसे निकालता है और रामू काका को देते हुए कहता है," काका काका ये लो आप ये सारे पैसे ले लो और अपने लिए नई गाये ले आओ"।  रामू काका बोले नही बेटा," मैं कब तक बार - बार गाये खरीदता रहूँगा लोग फिर प्लास्टिक लापरवाही से सड़कों पर फेंकते रहेंगे और बेज़ुबान जानवर कब तक  इन्हें खाकर मरते रहेंगे।" क्षितिज को भी अब सारी बात समझ आ गई उसने भी अपने मन में निश्चय कर लिया कि अब से वह प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करेगा और अपने मित्रों ,पड़ोसियों व रिश्तेदार आदि सभी को प्लास्टिक का प्रयोग करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समझाने का प्रयास करेगा ताकि बाकी सभी भी प्लास्टिक का प्रयोग करना बंद कर दे।

अब क्षितिज की माँ रामू काका को गाये खरीदने के लिए पैसे दे देती है ।क्षितिज कहता है," रामू काका आप चिंता न करो मैं सभी को समझाने का प्रयास करूँगा कि प्लास्टिक का प्रयोग न करें।"

रामू काका क्षितिज को और उसकी माँ को धन्यवाद कहकर अपने घर चले जाते हैं।

अगले दिन क्षितिज ने सारी बातें हर्ष को बताई अब हर्ष ने भी वादा किया कि मैं भी अब से प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करूँगा और अब से वे दोनों दोस्त बाकी सब लोगों से मिलकर उन्हें भी प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करने के  लिए जागरूक करने में लग गए हैं।




~अंजू जैन गुप्ता

बैसाख नन्दन

 



चंपू बन्दर स्कूल से लौट कर  आया ।   वह बहुत खुश था कि अब तो सब परीक्षाएं समाप्त  हो गई और  रिजल्ट  भी आ गया था अब पढ़ने लिखने को कुछ नहीं है ।   मम्मी बार बार  उससे कह रहीं थी कि किताबें लेकर  बैठो और पिछला कोर्स  रिवाइज  करो ।   पढ़ना लिखना बन्द नहीं करना चाहिए।   लेकिन चंपू को मम्मी की अच्छी बातें भी बड़ी कड़वी  लगती थी ।   बस "हाँ मम्मी" कहकर दूसरे बन्दरों के साथ  इधर-उधर बिना बात, घूमता- टहलता समय बर्बाद  करता था।  

चंपू को यही लगता था कि जब  छुट्टियाँ हुईं है तो वो मौज मस्ती के लिए  ही हुई  हैं उसमे पढ़ाई लिखाई  मे क्यों बर्बाद  करें ।   एक्जाम  हो गए, अच्छा  रिजल्ट  भी आ गया अब  पढ़ाई लिखाई  से क्या मतलब  है।   धीरे धीरे छुट्टियाँ ख़त्म  हो गईं।   नये क्लास के लिए, नया स्कूल बैग,  नया टिफिन  बॉक्स  और नई यूनीफॉर्म भी आ गई।  चंपू भी नये उत्साह  से स्कूल  पहुंचा ।    चंपू की क्लास टीचर  गौरैय्या मैडम  ने सब बच्चों  से छुट्टियों के बारे मे पूछा ।  सब बच्चों के रिजल्ट  भी पूछे और चंपू के रिजल्ट  पर खुश भी हुईं ।   जब क्लास  मे पिछले साल  के पढ़े विषयों के बारे मे पूछना शुरू किया तब सब  बच्चों ने कुछ न कुछ  उत्तर  दिया परन्तु चंपू को कुछ भी याद नही आया ।    उसने अपना कोर्स  रिवाइज  नहीं किया था । अगर उसने अपनी मम्मी की बात  मानकर  पढ़ाई लिखाई करता और खेलकूद कर समय बर्बाद नहीं करता, तो वह इस प्रकार  शर्मिंदा नहीं होता और  मैडम उसे बैसाख नन्दन  कहकर  नही बुलाती ।   गौरय्या मैडम ने क्लास  मे बताया कि गधा बसन्त  ॠतु मे सारी हरी घास  चर लेने के बाद  बैसाख  माह मे सोचंता है कि मैने तो सारी घास चर ली है। ये सोचकर वो खुश  होकर  मस्त  हो जाता है




शरद कुमार श्रीवास्तव 

केले का जादू

 





एक दिन कालू बंदर जंगल में अकेले केला खा रहा था तभी अचानक से पूरा आसमान काला हो गया हर ओर काले - काले बादल छा गए। काले -काले बादलों के आ जाने से जंगल में कोलाहल मच गया। अब सभी जानवर इधर-उधर अपने -अपने घरों की ओर कूद - कूद कर जाने लगे तभी अचानक से काले - काले बादल फट गए और जोरों से बारिश करने लगे बारिश का शोर सुनकर सभी जानवर हैरान परेशान हो गए सोचने लगे कि अब हम अपने - अपने घर  कैसे जाएगे अब तो हमे भूख भी लग   रही है।

भूख के कारण माकू हिरण रोने लगा उसके रोने की आवाज सुनकर कालू बंदर आ गया और पूछने लगा अरे माकू क्या हुआ तुम रो क्यों रहे हो ? माकू कहता है देखो न चाचा बाहर कितनी जोरों से बारिश हो रही है अब  हम घर कैसे जाएँगे और खाना कैसे खाँएगे ? यह कहते ही माकू फिर से रोने लगता है।तभी कालू बंदर   कहता है  कि बस इतनी सी बात ! रुको मैं तुम सबके लिए केले लाता हूँ ।इतना सुनते ही माकू हिरण  खुशी से कूदने लगता है तभी  कालू बंदर सबके लिए केले लेकर आ जाता है। केले खाकर सभी जानवर खुश हो जाते हैं और कालू बंदर को धन्यवाद देते हैं ।अब कुछ ही देर में बारिश भी बंद हो जाती है और सभी जानवर अपने -अपने घर चले जाते हैं।



~अंजू जैन गुप्ता

गरीबी





                          

       विनी और बिट्टू दोनों भाई-बहन मैले-कुचैले कपड़े पहने थे। हाथों में छोटी-छोटी बोरियाँ थीं। वे कचरे बीनने जा रहे थे। कचरे के ढेर में झिल्ली, प्लास्टिक, लोहा आदि बीनते थे; और उन्हें बेचकर कर अपने खाने की व्यवस्था कर लेते थे। कभी कचरे के ढेर से रोटी के टुकड़े वगैरह या खाने को कुछ मिल जाता था, उसी से पेट भर लेते थे।
       बिट्टू बोला- "विनी उठो ! आज सबेरे जल्दी जाएँगे, तो हो सकता है कुछ खाने को मिल जाये। कल रात से हम भूखे हैं।"
       "हाँ भैया, मुझे तो रात को भूख के मारे बिल्कुल भी नींद नहीं आयी।" विनी बोली।
       रास्ते में एक आदमी अपने कुत्ते जैली को लेकर मॉर्निंग वॉक कर रहा था। वह कुत्ते को बिस्किट खिला रहा था। आगे-आगे कुत्ता और पीछे-पीछे आदमी।उसके पीछे थे दोनों भाई-बहन- बिट्टू और विनी। दोनों देख रहे थे; कुत्ता बिस्किट्स को नहीं खा रहा था। वह रास्ते में ही गिरा देता था। गिरि हुई बिस्किट को कभी विनी तुरन्त उठा लेती थी; तो कभी बिट्टू उठा लेता। बिस्किट पाकर दोनों खुश हो जाते थे। "आज भूख थोड़ी शांत हुई भैया।" विनी बोली।
         "हाँ विनी, हम रोज ऐसे ही सबेरे जल्दी आया करेंगे। ऐसे ही खाने को हमें रोज मिल सकता है।" तभी अचानक उस आदमी ने पीछे मुँड़ कर देखा कि जैली की गिरी हुई बिस्किट्स दोनों बच्चों के हाथों में है। उसने तुरंत दोनों को बिस्किट के टुकड़े नीचे फेंकने को कहा। बच्चे डर गए। फिर दोनों ने बड़े मायूस हो कर बिस्किट के टुकड़े नीचे फेंक दिए।
        "यह कुत्तों के खाने की बिस्किट्स है; इंसानो के लिए नहीं।" कहते हुए उस आदमी ने सारे बिस्किट्स जैली को जबरदस्ती खिला दिया।
        एक-दूसरे के चेहरे देख कर विनी और बिट्टू की आँखें भर आईं। दोनों भाई-बहन भारी मन से घर लौट रहे थे।

                 


प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़