क्षितिज और हर्ष बड़े ही अच्छे मित्र थे। दोनों हमेशा एक साथ खेलते थे और साथ ही स्कूल भी जाते थे। धीरे-धीरे दोनों की कक्षा और उम्र बढ़ती जा रही थी।क्षितिज पढ़ाई में अच्छा था और हर्ष खेलकूद में। जैसे ही वे दोनों 13 वर्ष के हुए थोड़े शरारती हो गए। कभी छोटे बच्चों को तंग करते तो कभी प्लास्टिक की थैलियों को मुँह से फुलाकर गुब्बारे या पंतग बनाकर लापरवाही से सड़क पर कहीं भी फेंक देते थे।उनकी मम्मी उन्हें मना भी करती थी, पर तब भी वे
दोनों नही मानते थे ऐसी शैतानियाँ करते रहते थे।
क्षितिज की माँ ने उसे समझाया," कि बेटा प्लास्टिक गलता नही है । यह हमारे पर्यावरण और जानवरों के लिए हानिकारक होता है।" क्षितिज माँ की बात सुनकर हँसने लगता है और कहने लगा," कि होगा माँ इससे हमें क्या।" यह कहकर वह पार्क की ओर चला जाता है।
अगली सुबह जब वह स्कूल के लिए तैयार हो रहा था तभी दरवाज़े की घंटी बजी उसने दरवाज़ा खोला तो दरवाज़े पर दूधवाले भैया रामू खड़ा था।आज वह दूध नही लाया था।
क्षितिज ने जब देखा कि आज तो रामू भैया दूध ही नही लाए क्षितिज परेशान होकर कहने लगता है कि, काका -काका आज आप दूध नही लाए ;खाली हाथ क्यों आए हो? तब रामू रोने लगा और बोला कल जब मेरी गाये चरने गई थी तब उन्होंने घास-फूस के साथ-साथ सड़क पर पड़ा हुआ प्लास्टिक भी खा लिया था और घर वापिस आते ही उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी और वे सभी मर गई इसलिए आज मैं दूध नही ला पाया। इतना कहकर वह फिर से रोने लगा। रामू काका को रोता हुआ देखकर क्षितिज भी दुखी हो गया । वह जल्दी से अंदर गया और अपनी मम्मा को कहता है कि मम्मा-मम्मा जल्दी इधर आओ ,देखो रामू काका रो रहे हैं। माँ के आने पर क्षितिज सारी बात अपनी मम्मा को बताता है।
क्षितिज की मम्मी रामू - काका से कहती है कि रामू तुम अब रोना बंद करो और जाओ ,जाकर नई गायें खरीदकर ले आओ इस पर रामू कहता है," कि मैम मैं तो एक गरीब आदमी हूँ दूध बेचकर ही अपना गुज़ारा करता हूँ ।मेरे पास ज्यादा पैसे भी नही है।अब मैं अपने और बच्चों के खर्चे कैसे पूरे करूँगा।"
यह सुनकर क्षितिज को बहुत बुरा लगता है और वह अपने कमरे में चला जाता है।वह तुरंत ही अलमारी से अपनी गुल्लक से सारे पैसे निकालता है और रामू काका को देते हुए कहता है," काका काका ये लो आप ये सारे पैसे ले लो और अपने लिए नई गाये ले आओ"। रामू काका बोले नही बेटा," मैं कब तक बार - बार गाये खरीदता रहूँगा लोग फिर प्लास्टिक लापरवाही से सड़कों पर फेंकते रहेंगे और बेज़ुबान जानवर कब तक इन्हें खाकर मरते रहेंगे।" क्षितिज को भी अब सारी बात समझ आ गई उसने भी अपने मन में निश्चय कर लिया कि अब से वह प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करेगा और अपने मित्रों ,पड़ोसियों व रिश्तेदार आदि सभी को प्लास्टिक का प्रयोग करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समझाने का प्रयास करेगा ताकि बाकी सभी भी प्लास्टिक का प्रयोग करना बंद कर दे।
अब क्षितिज की माँ रामू काका को गाये खरीदने के लिए पैसे दे देती है ।क्षितिज कहता है," रामू काका आप चिंता न करो मैं सभी को समझाने का प्रयास करूँगा कि प्लास्टिक का प्रयोग न करें।"
रामू काका क्षितिज को और उसकी माँ को धन्यवाद कहकर अपने घर चले जाते हैं।
अगले दिन क्षितिज ने सारी बातें हर्ष को बताई अब हर्ष ने भी वादा किया कि मैं भी अब से प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करूँगा और अब से वे दोनों दोस्त बाकी सब लोगों से मिलकर उन्हें भी प्लास्टिक बैग का प्रयोग नही करने के लिए जागरूक करने में लग गए हैं।
~अंजू जैन गुप्ता