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गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

बैसाख नन्दन

 



चंपू बन्दर स्कूल से लौट कर  आया ।   वह बहुत खुश था कि अब तो सब परीक्षाएं समाप्त  हो गई और  रिजल्ट  भी आ गया था अब पढ़ने लिखने को कुछ नहीं है ।   मम्मी बार बार  उससे कह रहीं थी कि किताबें लेकर  बैठो और पिछला कोर्स  रिवाइज  करो ।   पढ़ना लिखना बन्द नहीं करना चाहिए।   लेकिन चंपू को मम्मी की अच्छी बातें भी बड़ी कड़वी  लगती थी ।   बस "हाँ मम्मी" कहकर दूसरे बन्दरों के साथ  इधर-उधर बिना बात, घूमता- टहलता समय बर्बाद  करता था।  

चंपू को यही लगता था कि जब  छुट्टियाँ हुईं है तो वो मौज मस्ती के लिए  ही हुई  हैं उसमे पढ़ाई लिखाई  मे क्यों बर्बाद  करें ।   एक्जाम  हो गए, अच्छा  रिजल्ट  भी आ गया अब  पढ़ाई लिखाई  से क्या मतलब  है।   धीरे धीरे छुट्टियाँ ख़त्म  हो गईं।   नये क्लास के लिए, नया स्कूल बैग,  नया टिफिन  बॉक्स  और नई यूनीफॉर्म भी आ गई।  चंपू भी नये उत्साह  से स्कूल  पहुंचा ।    चंपू की क्लास टीचर  गौरैय्या मैडम  ने सब बच्चों  से छुट्टियों के बारे मे पूछा ।  सब बच्चों के रिजल्ट  भी पूछे और चंपू के रिजल्ट  पर खुश भी हुईं ।   जब क्लास  मे पिछले साल  के पढ़े विषयों के बारे मे पूछना शुरू किया तब सब  बच्चों ने कुछ न कुछ  उत्तर  दिया परन्तु चंपू को कुछ भी याद नही आया ।    उसने अपना कोर्स  रिवाइज  नहीं किया था । अगर उसने अपनी मम्मी की बात  मानकर  पढ़ाई लिखाई करता और खेलकूद कर समय बर्बाद नहीं करता, तो वह इस प्रकार  शर्मिंदा नहीं होता और  मैडम उसे बैसाख नन्दन  कहकर  नही बुलाती ।   गौरय्या मैडम ने क्लास  मे बताया कि गधा बसन्त  ॠतु मे सारी हरी घास  चर लेने के बाद  बैसाख  माह मे सोचंता है कि मैने तो सारी घास चर ली है। ये सोचकर वो खुश  होकर  मस्त  हो जाता है




शरद कुमार श्रीवास्तव 

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