तृतीय हरिकृष्ण देवसरे बाल साहित्य पुरस्कार 2016 प्राप्त बालसाहित्यकार डाक्टर प्रदीप शुक्ला जी की बाल काव्य संग्रह पुस्तक " गुल्लू का गांव " से कुछ कविताएँ हम धारावाहिक रूप मे प्रस्तुत करेंगे । इसी क्रम की एक कविता नीचे दी जा रही है
गुल्लू का गाँव / प्रदीप शुक्ल
आओ तुम्हे ले चलें, गुल्लू के गाँव
घुसते ही मिलेगी, पीपल की छाँव
दो ताल बड़े बड़े, एक है तलैय्या
लो जी ये आ गई, गुल्लू की गईय्या
सड़क से गाँव तक, बिछा है खडंजा
कट गए पेंड़, हुआ टीला अब गंजा
गाँव में बैलों की, बचीं दो जोड़ी
किस्सों में मिलेगी अब लिल्ली घोड़ी
सूख गये कुँए सब, चला गया पानी
कुँए में मेढक की, बची बस कहानी
गुल्लू के कई दोस्त, गए हैं कमाने
छोड़ दी पढ़ाई क्यों, गुल्लू न जाने
गुल्लू के गाँव में, बिजली के खम्भे
गुल्लू के सपने हैं, गुल्लू से लम्बे
पढ़ता है खुद गुल्लू, सबको पढ़ाता
काका को अखबार, पढ़ कर सुनाता
पहन लो जूते, नहीं चलो नंगे पाँव
अभी बहुत बाक़ी है, गुल्लू का गाँव.
डॉ. प्रदीप शुक्ल
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