रविवार, 26 मार्च 2017

मधु त्यागी की रचना : सच और झूठ




सच और झूठ


जब भी बोलो , सच ही बोलो,

झूठ कभी ना बोलो।

सच की होती जीत हमेषा,

झूठ सदा ही हारे।


सच्चे बच्चे लगते अच्छे,

प्यार सभी का पाते।

झूठे बच्चों से तो,

हर कोई दूर है भागे।


सच के आगे झुकते हैं सब,

झूठ कोई ना माने।

सच का ग्राहक है सारा जग,

झूठ कोई ना चाहे।


सच की नींव है जितनी पक्की,

झूठ की उतनी कच्ची।

इसीलिए -

जब भी बोलो, सच ही बोलो,

झूठ कभी ना बोलो।


             
                              मधु त्यागी
                              ओ- 458
                              जलवायु विहार
                             सैक्टर- 30
                              गुरुग्राम


गुंजिका कौशिक कक्षा नौ एमिटी स्कूल गुरूग्राम की रचना : एक नई पहल





एक नई पहल


            हमारे घर की सुबह बहुत शांतिप्रिय और सुंदर होती है। गैस पर खाना पकाती हुई मेरी माॅं बहुत प्रसन्न होती है, परंतु हमारे घर के सामने रहने वाले उस परिवार के सदस्यों का व उस माॅं का क्या ? जो उस  लकड़ियों के  चूल्हे  पर रोज़ सुबह खाना बनाती है। हमारे घर के पास,, ।   एक छोटी सी झोंपड़ी में पाॅंच लोगों का परिवार रहता है, उस परिवार में मेरी ही उम्र की साॅंवली नाम की एक लड़की भी रहती है। वह मेरी अच्छी दोस्त बन गई है, उसी ने बताया कि उनके पास इतने पैसे नहीं कि वह सिलेंडर खरीद सकें इसलिए उसकी माॅं चूल्हे पर ही खाना बनाती है। साॅंवली और उसकी माॅं दोनो मिलकर चूल्हे पर खाना बनाती हैं परंतु उन्हें यह ज्ञात नहीं कि इसके बहुत से नुकसान हैं। चूल्हे पर बनने वाला खाना तो शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक होता है परंतु इसे बनाने वाले का स्वास्थ्य संकट में आ जाता है। लकड़ी के चूल्हे से निकलने वाला धुआँ , हानिकारक रसायन, अस्थमा, ट्यूबरोक्लोसिस जैसी बीमारियों को जन्म देता है । उन्हें ज्ञात ही नहीं कि वे अपने घर की आग में स्वयं जल रहे है। चूल्हा जलाने के लिए वे लकड़ियाॅं काटते हैं जिससे हमारे पर्यावरण को भी नुकसान होता है। मुझे लगा कि मुझे उस परिवार को इस आग से बचाना चाहिए और पर्यावरण को बचाने में भी अपना सहयोग देना चाहिए इसलिए मैंने उन्हें हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा चलाई गई ˝उज्ज्वला योजना˝ के बारे में बताया। उज्ज्वला योजना के बारे में सुनकर उस परिवार को बहुत खुशी हुई, उन्होंने अपने परिवार की सुख शांति और अच्छे स्वास्थ्य के लिए लकड़ी का चूल्हा जलाना छोड़ा और उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गैस का सिलेंडर प्राप्त किया। अब मेरी दोस्त साॅंवली और उसका परिवार साथ ही हमारा पर्याावरण भी सुरक्षित है।



                            गुंजिका कौशिक
                            कक्षा - नौ (ब)
                             एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                             सैक्टर-46, गुड़गाॅंव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव  की रचना : हिंदी दादी अमर रहेगी




हिंदी दादी अमर रहेगी  अंग्रेजी चाची ने हिंदी, दादी पर हमला बोला| डर के मारे दादी जी का, सिंहासन  थर थर डोला| धीरे धीरे दादी अम्मा, घर में से बाहर आई| “मैं वेदों की महरानी हूँ,” जोरों से थी चिल्लाई|
“बड़े बुजुर्गों ने  तो मुझको ,  धर्म करम में ढाला था|  बहुत प्यार से बड़े लाड़ से ,  स्मृतियों ने पाला था|  मेरे पुरखों दादों ने ही,   जग को जीना सिखलाया|  सत्य अहिंसा दया धर्म का,   मार्ग जहाँ को दिखलाया|
 तुम सब नाती पोते, दादी ,  हिंदी को क्या पहचानों|  तुम अधकचरे मात पिता की,  हो अधकच‌री संतानो|  दादी का अस्तित्व अभी तक,   कोई मिटा न पाया है|  नहीं मिटेगी किसी तरह भी ,  अमर हो चुकी काया है|
हिंदी दादी अमर रहेगी , इंग्लिश चाची के घर में| गूंजेगी आवाज़ हमेशा , थल में जल में अंबर में|
प्रभु दयाल श्रीवास्तव छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश

डाॅ प्रभास्क पाठक की रचना : मेरा बचपन मेरा गाँव






मेरा बचपन मेरा गाँव 
कच्ची मिट्टी नंगे पाँव
बोरे पर चलता स्कूल
बच्चे करते काँव-काँव ।

सुबह प्रार्थना करते मीत
गाते मिलजुल कर गीत,
सामान्य ज्ञान और फुटहरा
दोहराते ककहरा सप्रीत । 







फिर आती पुस्तक की बारी
बोल- बोलकर पढ़ते सारी
घंटी बजते टिफिन हो गई
 खिले फूल ज्यों क्यारी-क्यारी

आड़ी तिरछी टेढ़ी मिर्ची
चित्रकला की घंटी प्यारी
आलू जैसे गोल मटोल
तस्वीर हमारी कितनी न्यारी ।

जब आई खेलों की बारी
जोश जगा औ कमरा खाली,
थैले से उत्साह  बिखरता
धरती पग चूम हुई मतवाली ।

छुट्टी में उल्लास बह रहा
गलियाँ उमंग से पूरी भरी
ममता का आँचल सींच रही 
अटपटे बोल से रस-गगरी ।

                               डाॅ प्रभास्क ।
                              9430365767/ 
                               राँची , झारखंड





उपासना बेहार की बालकथा : जीतू और पेड़ बाबा




जीतू और पेड़ बाबा


एक गाँव में एक लड़का जीतू रहता था। एक बार उसके माता और पिता एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए दूसरे गाँव जा रहे थे, उन्होनें जीतू से भी शादी में चलने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया. आज जीतू का मन मां और पिताजी को छोड़ते समय बहुत उदास हो गया था। ऐसा नही है कि वह पहली बार अकेले रह रहा है। उसे अपना घर छोड़ कर कही जाना अच्छा नही लगता है। उदासी को झटकते हुए उसने सोचा ‘अब तो वही इस घर का राजा है। जब मन करेगा तब खायेगा, जब मन करेगा खेलने जायेगा।’

जीतू शाम को अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया। कुछ देर में ही एक लड़का दौड़ते हुए आया ‘जीतू भईया जल्दी चलिये आपके घर में कुछ लोग आये हैं वो आपको बुला रहे हैं।’ वह उस लड़के के साथ हो लिया। 

उसने देखा कि उसके घर में बहुत भीड़ जमा हैं और गाँव के महिला और पुरुष घर के पास जमा हैं। उसे समझ नही आया कि इतने सारे लोग यहा क्या कर रहे हैं। वह जैसे ही घर पहुचा पड़ोस के चाचा ने उसे गले से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे ‘ जीतू बेटा तेरे मां और पिता जी अब इस दुनिया में नही रहे। वे जिस बस से जा रहे थे उसका एक्सीडेंट हो गया और उसमें सवार सभी यात्रीयों की मौत हो गई है।’ जीतू यह सुन कर सदमें में आ गया। उसे समझ नही आया कि वह क्या करे। परिवार के नाम पर वह और उसकी बुढ़ी बीमार दादी ही थी, दिनभर रोता रहा और मां, पिता के पास जाने की जिदद् करता रहा। पड़ोस के चाचा चाची उसे अपने घर ले गये। इस घटना के बाद से वह उदास रहने लगा। किसी से बात नही करता था। स्कूल जाने और पढ़ाई करने में भी मन नही लगता था।

एक दिन उसे अपने माता और पिता की बहुत याद आ रही थी लेकिन यह दुख किससे कहें, दादी से बोलने पर वो तो ओर दुखी हो जायेगीं। उसे अपने एक खास दोस्त की याद आयी। वह तुरंत खेत की ओर चल पड़ा. वहाँ लगे आम के पेड़ के तने से लिपट कर खूब रोया। यह पेड़ ही उसका खास दोस्त था। जब भी वह अपने पिता के साथ खेत आता था तो इसी के छाया में बैठ कर सभी लोग खाना खाते थे। फिर पिताजी तो खेत के काम में लग जाते थे लेकिन जीतू खटिया बिछा कर यहा सो जाता था। धीरे धीरे उसकी दोस्त आम के पेड़ से हो गई। जब भी जीतू अपने पिता के साथ उसके छाया में आता था, पेड़ बाबा जानबूझ कर कुछ आम उसके खाने के लिए गिरा देते थे। जिसे वह बड़े चाव से खाता और फिर प्यार से उसके तने से लिपट जाता था।

आज जीतू को रोता देख आम का पेड़ भी बहुत उदास हो गया। उसे जीतू के साथ घटी घटना के बारे में मजदूरों के आपसी बातचीत से पता चल चुका था। वह कितना हताश और दुखी है। पेड़ बाबा को लगा कि जीतू को सहारे की बहुत जरुरत है। उससे बात करना जरुरी है। ‘जीतू बेटा’. 

 ‘कौन’ उसने आसपास देखा लेकिन दूर तक कोई दिखायी नही दिया। 

वह घबरा गया ‘कौन हो तुम सामने क्यों नही आते’. 

 ‘जीतू बेटा मैं तुम्हारा दोस्त पेड़ बाबा हू।’

‘क्या आप सच में पेड़ बाबा है’, 

‘हा, बेटा आज से पहले कभी तुमसे बात करने की जरुरत ही महसूस नही हुई लेकिन आज तुम्हे उदास देख कर लगा कि मुझे तुमसे बात करनी चाहिए।’

जीतू दौड कर फिर से पेड़ बाबा से लिपट गया, पेड बाबा की टहनियों और शाखाओं ने उसे प्यार से अपनी बाहों में ले लिया। ‘पेड़ बाबा मैं बहुत अकेला हो गया हू। बाबा आपको पता नही है मेरे साथ क्या अनहोनी घट गई है।’ ‘मुझे सब पता है बेटा परन्तु तुम अकेले नही हो, मैं तुम्हारे साथ हू और हमेशा  साथ रहूगा। तुम्हें जब भी मन करे मेरे पास आ जाया करना, हम दोनो मिल कर खूब सारी बातें करेगें।’

‘बाबा कुछ भी करने का मन नही करता है। स्कूल जाने का मन भी नही होता है।’


‘बेटा याद है एक दिन जब तुम अपने पिता के साथ यही मेरी छाया में बैठे थे तब उन्होनें कहा था कि वो तो ज्यादा पढ़ नही पाये लेकिन उनका सपना है कि तुम खुब पढ़ो और नाम कमाओ। जीतू शिक्षा ही जीवन का सार है, इस कठिन समय में अपने को संभालो और अपने पिता के सपने को पूरा करो और खूब मन लगा कर पढ़ो।’

‘पेड़ बाबा आपसे बात कर मन बहुत हल्का हो गया। बाबा मैं अब रोज आपसे बात करने आऊॅगा।’ 

‘बिलकुल आना लेकिन मेरी दो शर्त है।’  ‘क्या बाबा?’ 

‘पहली शर्त है कि तुम बहुत मन लगा कर पढ़ोगे’.

 ‘बाबा मैं आपसे वादा करता हू कि रोज स्कूल जाऊॅगा और खूब मन लगा कर पढ़ुगा और पिता जी के सपने को पूरा करुगा।’ 

‘दूसरी शर्त है, मैं तुम्हें रोज ढेर सारे फल दूगा जिसमें से आधे तुम बाजार में बेच देना लेकिन आधे फल के बीज को इन्ही खेतों में लगा देना।’

 ‘जी बाबा ऐसा ही होगा लेकिन ऐसा क्यों करना होगा?’. ‘इसका कारण तुम्हे कुछ सालों बात बताऊॅगा’.

उस दिन के बाद से जीतू रोज पेड़ बाबा के पास आने लगा और दोनो मिल कर खूब बाते करतें। जीतू उन्हें स्कूल और पढ़ाई के बारे में बताता। कभी कोई समस्या आती तो सलाह मांगता। बात खत्म होने के बाद पेड़ बाबा अपनी टहनियों को हिलाते और खूब सारा फल गिरा देते। जीतू उन्हें घर ले आता और शर्त के मुताबिक आधे फलों को बेचता और आधे फलों को खेतों में बो देता। 

इस तरह जीतू और पेड़ बाब के बीच संवाद कई सालों तक चलता रहा। अब पेड़ बाबा बुढे हो चले थे। उन पर फल लगने बंद हो गये। जीतू भी अब बच्चे से नौजवान बन गया था। उस दिन जब वह पेड़ बाबा के पास आया ‘बेटा अब तुम बड़े हो गये हो और मैं बुढ़ा हो चला हू। अब तुम्हे मेरी आवश्यकता नही है। मुझ पर फल भी नही लगते। आज मेरा फर्ज पूरा हुआ। अब तुम्हे यहा आने की जरुरत नही है। मैं तुम्हे अब कुछ नही दे पाऊॅगा।’ पेड बाबा ने बड़े उदास लहजे में बोला। आज स्थिति बिलकुल उल्टी हो गई थी। अब वह अकेला और बुढ़ा हो गया है। 

‘मैं भी यही कहने आया था बाबा’.

यह सुन कर पेड़ बाबा दुखी हो गये, मन ही मन सोचा ‘देखो यह भी कितना स्वार्थी है। जबतक मैं फल देता रहा तबतक मेरे पास आता रहा और आज कह रहा है कि नही आयेगा। अब जबकि मैं बुढा हो गया हू और मुझे इसकी जरुरत है तो यह मेरा साथ छेाड़ रहा है। वाकई मनुष्य बहुत स्वार्थी होता है।’ यह सोच कर उसके आँख से आंसू आ गये।’

‘बाबा मैं आपसे यह कहने आया था कि भले आप मुझे फल नही दे पायेगें,लेकिन मैं फिर भी आपसे बात करने आया करुगा। मुझे आज समझ में आ गया कि आपने क्यों आम के आधे फल के बीज इस खेत में वापस लगाने की शर्त रखी थी। बाबा देखो आज हमारा खेत आम के पेड़ो से भरा है। आपकी बुद्मता से मैं आम का सबसे बड़ा व्यापारी हो गया हू। अभी तब आपने अपना फर्ज पूरा किया है। अब मेरी बारी है। मुझे अपना फर्ज पूरा करना है। अब तक आप मेरी देखभाल करते थे लेकिन आज से मैं आपकी देखभाल करुगा और आपकी बातों, अनुभवों को सुनने आया करुगा। बाबा हमारा साथ कभी नही छुटेगा। आप मेरे लिए और मैं आपके लिए हमेशा रहेगें।’  यह सुन पेड़ बाबा खुश हो गये और प्यार से अपनी कुछ बची हुई टहनियों और शाखाओं ने जीतू को गले लगा लिया। 

                              उपासना बेहार
                              ई मेल –upasana2006@gmail.com

डा0हेमन्त कुमार की रचना : गौरैया से






प्यारी गौरैया
क्यों रूठ गई हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।



मेरा आंगन घर
और खपरैले पर फ़ैली
लौकी की बेल
सब बाट जोह रहे
तुम्हारी वापसी का।

तुम्हारी
चीं चीं चूं चुं से ही
हमारी सुबह होती थी
आंगन में तुम्हारे फ़ुदकने
के साथ ही तो
हम भी
शुरू करते थे धमाचौकड़ी।

प्यारी गौरैया
फ़िर क्यों रूठ गयी हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।

याद होगा तुम्हें भी
हमारा बचपन
सबेरे जब मां आंगन में
बंसेहटी पर हमें
खाना खिलाने बैठती
कितना निडर होकर
तुम आ बैठती थी
बंसेहटी के पावे पर
मां चीखती
बड़ी ढीठ गौरैया।

कहीं तुम इसी से तो
नाराज नहीं हो गयी?

प्यारी गौरैया
सुना है आज
पूरी दुनिया भर में
तुम्हें मनाने
आंगन में वापस बुलाने
और
तुम्हारी प्रजाति बचाने
के लिये
गौरैया दिवस मना रहे हैं
सारे लोग
तुम्हें वापस बुलाने के
ढेरों उपाय और जतन
कर रहे हैं
दुनिया भर के लोग।


प्यारी गौरैया
एक बार ---
सिर्फ़ एक बार तुम
माफ़ कर दो
हम सभी को
लौट आओ फ़िर से हमारे
आंगन और खपरैलों पर
मैं तुम्हें कर रहा हूं आश्वस्त
अब नहीं कहेंगी मां तुम्हें कभी
ढीठ गौरैया
नहीं रंगेंगे पिताजी
तुम्हारे कोमल पंखों को
गुलाबी रंग से
नहीं डांटेगा
तुम्हें कोई भी
शैतान गौरैया कहकर।
बोलो
प्यारी गौरैया
तुम वापस आओगी न
फ़िर से
मेरे आंगन में?


                               डा0हेमन्त कुमार
                               इन्दिरानगर
                               लखनऊ 

बाल साहित्य के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव की रचना : हुए साक्षर चूहे राम




    अ-आ ,इ-ई,उ-ऊ पढ़कर ,
     हुए साक्षर चूहेराम |
     कागज कलम किताबें लेकर,
     किया शुरू लिखने का काम |

     दिन भर कड़ा परिश्रम करते ,
     पैसे खूब कमाते |
     शाम  ढ़ले ही किसी बैंक में ,
    |जाकर जमा कराते |

      उन्हें बैंक से एक पास बुक ,
      और चैक बुक आई |
      बड़े जतन से, बहुत सुरक्षित ,
      बिल में ही रखवाई |

     दिवस दूसरे सुबह उठे तो ,
     देखा खेल निराला |
     हाय! चेक बुक और पास बुक
     को खुद ने खा डाला |

     माथा रहे पीटते दिन भर ,
     अपना चूहा भाई |
     अपनी ही आदत  खुद को ही ,
     हो जाती दुखदाई |








                       प्रभु दयाल श्रीवास्तव
                       छिंदवाड़ा
                       मध्य  प्रदेश 

गुरुवार, 16 मार्च 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : जंगल में होली






जंगल में होली




जब से फागुन  माह आया है , जंगल  में  मस्ती छा गई थी   चिंटू बन्दर इस डाल से उस डाल  पर कूदकर  खेल  कूद  कर  रहा  है  ।  कोयल के मीठे गीतों से जंगल संगीतमय हो गया है ।  पेडों  पर नये पत्ते  आ गये हैं ।  इसी संगीतमय वातावरण  में  कौवे राम ने  अपना संगीत  घोलना प्रारंभ  कर  दिया ।   होली में  तो सब चलता है  ।  किसी  ने  भी   कौवे के कर्कश  गाने  का बुरा  नही माना  ।    किसी  बात की परवाह  किये  बगैर,  बिना  किसी  रोक टोक के,   शेर महाराज  के मांद के  ठीक  ऊपर वाले  पेड़  पर,  शेर के  सोने के समय,  कौवे ने  अपना बेसुरा  गाना  शुरू  कर  दिया   ।   शेर  के  महासचिव  गीदड़  लाल ने  जब  कौवे को डाँट  लगाई , तो  कौवे ने ढिठाई से  कहा " होली है  भाई  होली है  बुरा न मानो  होली  है  " और यह कह कर गीदड  के  सिर पर बीट कर दिया  ।    गीदड़  ने नाराज होकर,  महाराजा  शेर सिंह  को  एक बात की  चार बात लगाकर कौवे  की  शिकायत  कर दी ।    महाराजा शेर सिंह   बहुत  नाराज  हुए ।   उन्होंने   एक बार  जोर से  गर्जना  की  कि यह कैसी गन्दी सन्दी होली  खेली  जा  रही  है  ।   अब  से कोई  होली नहीं  खेलेगा ।

 बन्नी खरगोश तो  अपनी  पिचकारी  में  रंग  भरकर  हिरन के  ऊपर रंग  डालने वाला  था  ।   भेड़िया  और भालू  गुलाल लेकर   एक दूसरे के  मुँह  पर मलने  वाले
 थे उसी समय महाराजा शेर सिंह ने  होली नहीं  खेलने  का  आदेश  जारी  कर  दिया ।
अब  क्या  था  जंगल  में  खलबली  मच गई  थी  ।   साल भर के त्यौहार  मनाना  भी  आवश्यक  था ।   सब लोगों  ने  जब कौवे  को भला  बुरा  कहा  तब उसे  समझ  में  आया कि  उसने  क्या  गलती  की  है ।   उसने  सब जानवरों  से  माफी  मांगी  ।  जंगल  के  जानवरों  की  एक  बैठक हुई  ।   बैठक  में  निर्णय  लिया  गया  कि  पहले कौवा,  महासचिव  गीदड़  लाल से   क्षमा मांगे फिर गीदड़    से ही   महाराजा  शेर सिंह  के  कोप को  कम करने  का  उपाय  भी  पूछा  जाए  ।    जानवरो  की  एक टीम  महासचिव  गीदड़  लाल के पास कौवे को  अपने साथ  लेकर  गई ।   वहाँ  जाते ही कौवे ने पहले अपनी  भूल  स्वीकार  की और महासचिव  गीदड़  लाल जी  से  माफी मांगी ।   गीदड़ लाल  ने कहा कि  कौवे की  टांय  टांय  के  कारण  महाराज  सो नहीं  पाया रहे  हैं  ।  आपलोग कुछ ऐसा  करो कि महाराज  को नींद  आ  जाय तब महाराज  खुशीखुशी  सब लोगों  को  होली  खेलने  की  इजाजत दे देगें, एक  बात और है  कि  किसी  को  भी  गन्दी  तरह  होली  नही  खेलने  दी जाएगी  ।   फिर  क्या  था  सब जानवर खुश  हो  गए ।  कोयल  ने खूब  सुरीला  राग छेडा ,  धीरे  धीरे मतवाली  हवा  चलने  लगी  कि  महाराज  शेर सिंह  को  नींद  आ गई  ।     सोकर  उठते ही  उन्होंने  खुशी  खुशी  सब जानवरों  को  होली  खेलने  की  अनुमति  दे दी और जंगल  में  फिर  खुशियाँ  वापस आ  गई


भुवन बिष्ट की रचना : तितली आई (कविता )





तितली आई तितली आई,
रंग - बिरंगी  तितली आई,
फूल - फूल  पर  बैठ रही,
बगिया  सुंदर  महक  रही,
फूलों का  रस लेने को,
तितली रानी घूमने आई,
तितली आई तितली आई,
रंग - बिरंगी  तितली आई

कोई हरे बैंगनी नीले पीले
कोई सुंदर हैं कोई चमकीले,
घूम -घूम कर फूलों पर ,
बैठ रहे कभी देख रहे हैं,
सुंदर बगिया के हैं फूल,
तितली के मन को है भायी,
तितली आई तितली आई,
रंग - बिरंगी  तितली आई,...

तितली बनकर जैसे परियां,
बगिया में सब है पहुंच गयी,
कभी बैठती कभी हैं उड़ती,
कभी गाती हैं कभी इतराती,
तितली के आने से अब तो,
बगिया में  सुंदरता  छायी,
तितली आई तितली आई,
रंग - बिरंगी  तितली आई,....
   
         
भुवन बिष्ट
                रानीखेत (उत्तराखण्ड)



भूखा बंदर 

                

छ्त   से   उतरा   बंदर    भूखा .

खाना  था  बस   रूखा    सूखा .

बंदर  जी   का  दिल   ललचाया .

खाना  खूब   दबा  कर    खाया


 .

लगा     तड़फने   कोई     आओ .

पेट  दर्द   की   दवा      दिलाओ .

डॉक्टर     भालू    भागा   आया .

नब्ज   देख   उसको   धमकाया .

पहले   उल्टा    पुल्टा       खाते .

फिर तुम पेट   पकड़   चिल्लाते .


उठो ,  अब  खुद  को   संभालो .

आँखों   में  ये   सुरमा     डालो .

बंदर    बोला    यूँ      हकलाते .

पेट....दर्द....की ..औषध..लाते .

भालू  ने   ये    कह   समझाया .

बीमारी   का    करूँ    सफाया .

गर   ठीक   से    देख   पाओगे .

बासी    भात    नहीं    खाओगे .



                          राजपाल सिंह गुलिया

                          राजकीय प्राथमिक पाठशाला भटेड़ा 

                        तहसील व जिला - झज्जर ( हरियाणा )

                        पिन - 124108

                        मोबाइल # 9416272973

 ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जी की रचना : परीक्षा





परीक्षा

मुझ से तुम न घबराना

चुपके से आ कर कहें परीक्षा.

घबराने से गायब होती

याद की थी जो बातेंशिक्षा.



याद रहा है जितना तुम को

लिख दो उस को, कहे परीक्षा.

सरल—सहल पहले लिखना

कानों में यह देती शिक्षा.



जो भी लिखना, सुंदर लिखना

सुंदरता की देती शिक्षा.

जितना पूछे, उतना​ लिखना

कह देती यह खूब परीक्षा.


 ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

सशि, पोस्ट आफिस के पास,

रतनगढ़ — 458226 मप्र

जिला— नीमच भारत

9424079675



डा प्रदीप शुक्ल की रचना : अम्मा हम इस्कूलै जइबे







हम ना भंइसि चरइबे अम्मा 
हम इस्कूलै जइबे

एबीसीडी सीखब हुअनै 
सीखब हुएं पहाड़ा 
पहिनब बेल्ट, न बांधब अब हम 
पइजामा का नाड़ा 

घुट्टम घुट्ट न रहिबे अम्मा 
हमहूँ बार बढ़इबे


लउटब जब इस्कूल ते अम्मा 
हम ख्यालब फुटबाल
तुरतै खोलि क भंइसी 
ना लई जइबे वहिका ताल 

होमवर्क तो करिबे पर, ना 
घर का कामु करइबे 
हम ना भंइसि चरइबे अम्मा 
हम इस्कूलै जइबे

                                 डॉ  प्रदीप  शुक्ल
                                 लखनऊ 

सुशील शर्मा की हाइकु रचना : नीड़ घोसला





नीड़ घोंसला








नीरव नीड़
चिरवा चिरइया
अकेले बचे।

प्यारा घोंसला
तिनकों से बनाया
नेह से सजा

मैं चिड़िया सी
उड़ी आसमान में
नीड़ ढूंढती।

जीव है पंक्षी
शरीर है घोंसला
उड़ जाना है।

हम हैं पंछी
मिलकर रहते
एक नीड़ में।

नीर निर्माण
तृण से विनिर्मित
प्रेम अर्पित।

मन का नीड़
धूप लिए आँचल
छाँव तलाशे।

सजा है नीड़
अनुकंपित स्वर
प्रतीक्षारत।

                             सुशील  शर्मा 

(तेजी  से  ख्याति प्राप्त  करने  वाले राष्ट्रीय  स्तर  के  कवि )

टिप्पणी  : हाइकु  एक जापानी  काव्य  विधा है   जिसमे  5/7/5 अक्षरों का क्रम  होता  और दो  बिम्ब  होते  हैं 

डॉ प्रभास्क पाठक की रचना : होली के रंग





होली खेल रहा गुलमोहर
संग-संग नीम पलाश है,
बासंती गुल खिला रहा
महुआ चूने की आस है।



हुड़दंगी बच्चों की टोली
करती आई होली- होली,
सरपट भागा भागी करते
घर-घर खुशियों की ले  झोली।


सूखी लकड़ी और डमारा
सजी होलिका झाड़ झंकारा,
लगी सत्य की चिनगारी जब
जली बुराई,दुख हारा सारा।


उधर गुलाब की कलियाँ चटकी
पीत, हरित,केशर गुलाल की,
धूल उड़ी मग- मग उमंग  की
फाग चैत का कहता मन की। 







                           डाॅ प्रभास्क।
                           रांची  झारखंड