मौली एक बहुत प्यारी बच्ची हैं| गोल-मटोल गुड़िया की तरह,जो उसे देखता खुब स्नेह बरसाता|
अपने मम्मी-पापा की इकलौती बिटिया| लाड़-प्यार तो खूब मिलता हैं पर वो निहायत अकेली हैं|पापा ही ज्यादातर उसे संभालते| मम्मी तो किसी बहुत ऊँचे पद पर काम करती हैं| घर पर भी रहती तब भी उन्हें मौली से ज्यादा मतलब नहीं रहता बस जरा सा दुलार कर लेती| घर पर मम्मी या तो टी़वी से चिपकी रहती या मोबॉइल से| पापा ही उसे बहलाते थे |
अक्सर उसकी देखभाल के लिये दादी, मौसी या नानी आ जाते| वे सब उसे खूब प्यार करते| पर माँ का प्यार तो फिर भी नहीं मिलता|
मौली चाहती कि और बच्चोंबगगग की मम्मी की तरह उसकी मम्मी भी उसके लिये मजेदार टिफिन बना कर दे| पर माँ के पास तो टाइम नहीं था| न उसे खाना बनाने का कोई शौक था|
जब खाना पकाने वाली नहीं आती तो होटल से खाना आ जाता| मौली चुप सी रहने लगी थी| ये बात दादी ने समझ ली थी| उन्होनें मौली की मम्मी को कहा भी| पर उन्हें तो अपनी नौकरी प्यारी थी| उन्होनें यहाँ-वहाँ की बात बनाकर बात को वही खत्म कर दिया|
उस दिन मौली का रिर्पोट-कार्ड आया| मौली के मम्मी -पापा को स्कूल बुलाया गया था| मौली पढ़ाई में पिछड़ रही थी| कोई प्रश्न पूछने पर उसका उत्तर भी नहीं देती| अक्सर गुमसुम सी एक जगह बैठी रहती|
मौली के पापा को मामले की गंभीरता समझ आयी| प्यार से मौली से बात की|
"उसी को नौकरी करने वाली मम्मी क्यों मिली?और सहेलियों की मम्मी की तरह उसकी मम्मी क्यों नहीं बढ़िया टिफिन बना कर उसे दे पाती?" कह कर मौली खूब रोयी|
उस दिन के बाद से मौली की मम्मी ने मौली पर ध्यान देना शुरु कर दिया| सुबह जल्दी उठ कर वे मौली का टिफिन बनाती| मौली के पापा उनकी मदद करते| क्योकिं मौली की मम्मी को तो ज्यादा कुछ बनाना आता ही नहीं था| धीरे-धीरे वे अच्छा खाना बनाना सीख गयी|
आज मौली बहूत खुश हैं| बच्चों की मम्मी की कुकिंग प्रतियोगिता में मौली की मम्मी को प्रथम पुरस्कार जो मिला हैं|
अंजू निगम
इंदौर
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